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SBI ने Supreme Court को बताया- चुनाव आयोग को सौंपा इलेक्टोरल बांड का ब्योरा

भारतीय रिजर्व बैंक (SBI) और चुनाव आयोग के बीच चल रहे इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने खबरों में चर्चा का विषय बना है। इस मामले में SBI ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसने चुनावी बॉण्ड का ब्योरा चुनाव आयोग को सौंप दिया है। बैंक ने कोर्ट को बताया कि चुनाव आयोग 15 मार्च तक इसे सार्वजनिक कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने एक दिन पहले ही बैंक को आदेश दिया था कि वह 12 मार्च तक इस ब्योरे को चुनाव आयोग को सौंप दे।

SBI ने मंगलवार को Supreme Court को बताया है कि उसने चुनावी बॉण्ड का ब्योरा चुनाव आयोग को सौंप दिया है. बैंक ने कोर्ट को बताया कि चुनाव आयोग 15 मार्च तक इसे सार्वजनिक कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने एक दिन पहले ही बैंक को आदेश दिया था कि वह 12 मार्च तक इस ब्योरे को चुनाव आयोग को सौंप दे.

बता दें कि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई की याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें उसने विवरण देने की समयसीमा 30 जून तक बढ़ाने की मांग की थी. शीर्ष अदालत ने एसबीआई से कहा था कि वह चुनाव आयोग के समक्ष 12 मार्च को कामकाजी समय समाप्त होने तक चुनावी बॉण्ड का विवरण सौंप दे.

इलेक्टोरल बॉन्ड का मसला 2017 से शुरू हुआ. फाइनेंस बिल में इलेक्टोरल बॉण्ड योजना को पेश किया गया था. 14 सितंबर 2017 को एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) एनजीओ ने शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल कर योजना को चुनौती दी थी. इसके बाद 3 अक्टूबर, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने PIL पर केंद्र सरकारऔर चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया था. हालांकि 2 जनवरी, 2018 को केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉण्ड योजना को अधिसूचित कर दिया था.

यही नहीं सरकार ने 7 नवंबर, 2022 को विधानसभा चुनाव होने पर साल में बिक्री के दिनों को 70 से बढ़ाकर 85 करने के लिए इलेक्टोरल बॉण्ड योजना में बदलाव किया था. 16 अक्टूबर, 2023 को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने योजना के खिलाफ याचिकाओं को 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेज दिया. 31 अक्टूबर, 2023 को चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने योजना के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की.

दो नवंबर, 2023 को शीर्ष न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रख लिया. फिर 15 फरवरी, 2024 को कोर्ट ने योजना को रद्द करते हुए सर्वसम्मति से फैसला सुनाया और कहा कि यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार के साथ-साथ सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है.

एसबीआई ने 4 मार्च को सुप्रीम कोर्ट से राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए प्रत्येक चुनावी बॉण्ड के विवरण का खुलासा करने की समयसीमा 30 जून तक बढ़ाने की मांग की थी. 7 मार्च को एसबीआई के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग करते हुए कोर्ट में याचिका दाखिल की गई. याचिका में आरोप लगाया गया कि बैंक ने छह मार्च तक चुनावी बाण्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को दिये गये चंदे का विवरण प्रस्तुत करने के शीर्ष अदालत के निर्देश की जानबूझकर अवज्ञा की. 11 मार्च को कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने समय बढ़ाने की मांग करने वाली एसबीआई की याचिका खारिज की और उसे 12 मार्च को तक निर्वाचन आयोग को चुनावी बाण्ड का विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया.

यह विवाद वास्तव में इलेक्टोरल बॉन्ड की महत्वपूर्णता को उजागर करता है, जो भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इलेक्टोरल बॉन्ड का मुख्य उद्देश्य चुनावी धन से संबंधित भ्रष्टाचार को कम करना है, जो एक महत्वपूर्ण मानवीय मुद्दा है। यह उद्देश्य सार्थक बनाने के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में विस्तार से सुनवाई की है और अब तक कई फैसले भी सुनाए हैं।

इस मामले में दिखाई दे रही राजनीतिक खेलबड़ी और सरकारी बैंक के बीच की विवादित संबंधों की विस्तारपूर्ण चर्चा हो रही है। यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है कि चुनावी बॉन्ड के माध्यम से पार्टियों को गुप्त रूप से धन देने की संभावना भी होती है, जिससे चुनावी प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

इस संदर्भ में, सुप्रीम कोर्ट के फैसले और चुनाव आयोग की कड़ी मेहनत से यह सुनिश्चित होना चाहिए कि इलेक्टोरल बॉन्ड की प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी और निष्पक्ष हो। राजनीतिक दलों को भ्रष्टाचार से दूर रखने के लिए इस प्रक्रिया को मजबूत और सुरक्षित बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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