शिवगिरी मठ और राजनीति: आध्यात्मिक स्थल या चुनावी मंच? सनातन धर्म पर Pinarayi Vijayan के विवादित बयान का असर
शिवगिरी मठ, एक ऐसा स्थान जहाँ न केवल धर्म की बात होती है, बल्कि हर साल वहां हर राजनीतिक पार्टी अपने प्रभाव बढ़ाने के लिए अपनी चालें चलती है। यदि आप सोच रहे हैं कि यह मठ केवल आध्यात्मिक ध्यान और साधना का केंद्र है, तो आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह Shivgiri Math हर दल के नेताओं के लिए अपनी बात रखने का एक शानदार मंच बन चुका है। कोई कह सकता है कि शिवगिरी मठ ने इसे “पार्टी पॉलिटिक्स के आध्यात्मिक मठ” में बदल दिया है!
मठ के आयोजनों में नेताओं की रैलियाँ?
हर साल जब शिवगिरी यात्रा का आयोजन होता है, तो आपको वहां राजनीतिक हस्तियों की भीड़ दिखेगी, जैसे मोदी जी, शाह साहब, सोनिया गांधी, राहुल गांधी – जैसे इनके बिना यात्रा अधूरी हो। हाल ही में केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन (Pinarayi Vijayan) को भी अपने कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया गया था। यह देख कर यह सोचने की जरूरत है कि क्या शिवगिरी मठ अब एक धार्मिक स्थल है या फिर नेताओं का चुनावी मेला?
पिनराई विजयन का बयान: गुरु की निंदा करने की नई शैली
पिनराई विजयन (Pinarayi Vijayan) ने 31 दिसंबर 2024 को श्री नारायण गुरु के समाधि स्थल पर बयान देते हुए गुरु को सनातन धर्म से बाहर रखने का न केवल साहस दिखाया, बल्कि इस पर खूब तर्क भी दिया। उनका कहना था कि गुरु कभी भी सनातन धर्म के अनुयायी नहीं थे। तो फिर क्यों न सनातन धर्म के नाम पर समाज को बांटने की साजिश में गुरु की तस्वीर को भी सजा लिया जाए? यह तो वही बात हो गई – “गुरु को अगर हम सिर्फ अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, तो क्या बुरा है?”
गुरु के संदेश को तोड़-मरोड़ कर पेश करना
गुरु का महान संदेश “एक जाति, एक धर्म, और एक ईश्वर” था, लेकिन अब उसे राजनीतिक रंग देने का नया फैशन बन चुका है। पिनराई विजयन ने कहा कि श्री नारायण गुरु का उद्देश्य समाज में सुधार लाना था, न कि सनातन धर्म को बढ़ावा देना। अच्छा हुआ, जो अब तक धर्म के नाम पर समाज में जातिवाद और भेदभाव का खेल चलता था, अब उसे एक “सामाजिक सुधारक” की छवि में छिपाया जा रहा है। गुरु का विरोध करने के बजाय उनके संदेश का इतना सामर्थ्य था कि वह खुद ही उन भेदभावों को नष्ट करने के लिए खड़े हुए।
सनातन धर्म: राजनीतिक गुमराहियों का नया मुद्दा
अब सवाल यह उठता है कि यह सनातन धर्म का विरोध किसके खिलाफ है? क्या यह गुरु के खिलाफ एक साजिश है? या फिर एक बड़े राजनीतिक आंदोलन का हिस्सा? जो कुछ भी हो, पिनराई विजयन ने सनातन धर्म को सिर्फ भारत की सनातनी व्यवस्था के रूप में खड़ा करने का विरोध किया और इस बात को बहुत ही प्रभावशाली तरीके से बताया कि गुरु ने किस प्रकार से जातिवाद को चुनौती दी थी। उनकी मान्यता थी कि “सनातन धर्म के अंदर गुरु का संदेश फिट नहीं बैठता।” तो क्या समाज सुधारक और धार्मिक नेता अब एक दूसरे से परे हो गए हैं?
जातिवाद की चुप्पी और उसका विरोध
श्री नारायण गुरु ने जितनी मेहनत से समाज में समानता स्थापित करने का काम किया, उतना ही कठिन था उन शक्तियों का विरोध जो समाज में जातिवाद का जहर घोल रहे थे। वे केवल आध्यात्मिक नेता नहीं थे, बल्कि एक दृढ़ विचारक थे जिन्होंने “जातिवाद”, “वर्ण व्यवस्था” और “अस्पृश्यता” को चुनौती दी। अब हमें ये समझने की जरूरत है कि ये सामाजिक सुधारक सिर्फ मंदिरों की दीवारों को तोड़ने वाले नहीं थे, बल्कि उन्होंने हर व्यक्ति के अधिकार को समान रूप से माना। तो क्या अब उनके विचारों को राजनीति के तिजोरी में बंद किया जा रहा है?
मठ का एक आध्यात्मिक बयान: “हम सब साथ हैं”
आजकल के धार्मिक संस्थान और मठों में, जहाँ पुजारी से लेकर नेतृत्व तक राजनीतिक धारा को साथ लेकर चलते हैं, मठ का दृष्टिकोण बदल चुका है। एक तरफ तो वे सनातन धर्म के विरोध में अपने बयान दे रहे हैं, और दूसरी तरफ वे सत्ता के धागे भी अपने हाथ में रखते हैं।
मठ के नेताओं का कहना है कि वे “सभी दलों के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखते हैं,” ताकि वे सभी के विचारों का सम्मान कर सकें। लेकिन यह भी सवाल है कि क्या ये सभी दल अपने धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण को मठ के माध्यम से थोपा जा रहे हैं?
निरंतर विरोध: क्या राजनीतिक लाभ के लिए धर्म का शोषण हो रहा है?
हमें यह सोचने की जरूरत है कि इस धार्मिक स्थल के आस-पास जो राजनीति हो रही है, वह क्या सिर्फ एक साधारण खेल नहीं है? शिवगिरी मठ के फैसले और सिद्धांत अब अपने आप में एक बड़ा सवाल बन गए हैं। क्या यह मठ सचमुच में धार्मिक है, या फिर इसे केवल अपनी राजनीतिक और सामाजिक स्थिति के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है?