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Syria के गृहयुद्ध का रहस्य: अल-असद के शासन का पतन, Shia-Sunni संघर्ष और भारत में शिया मुस्लिमों की स्थिति

Syria में गृहयुद्ध अब अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। जहां एक ओर राष्ट्रपति बशर अल-असद की सरकार का पतन हो चुका है, वहीं दूसरी ओर उनके खिलाफ विद्रोहियों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया है। अल-असद, जो कि शिया इस्लामी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, अब रूस भाग चुके हैं, लेकिन उनकी सत्ता में कई वर्षों तक बनी रहने की कहानी बहुत गहरी और जटिल है। यह संघर्ष अचानक नहीं हुआ। इसके पीछे लंबा इतिहास है, जिसके जड़ें धार्मिक, राजनीतिक और सामरिक कारणों में गहरी समाहित हैं।

अल-असद का उत्थान और संघर्ष का इतिहास

सीरिया का इतिहास सदियों पुराना है, लेकिन यदि हम अल-असद के शासन की बात करें, तो यह 21वीं सदी के मध्य का सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक बदलाव है। बशर अल-असद का परिवार शिया मुस्लिम अलावित समुदाय से है, जबकि सीरिया की अधिकांश आबादी सुन्नी मुस्लिम है। यही धार्मिक विभाजन सीरिया के गृहयुद्ध का प्रमुख कारण बना। सवाल यह उठता है कि एक अल्पसंख्यक शिया समुदाय से ताल्लुक रखते हुए बशर अल-असद इतने वर्षों तक सत्ता में कैसे बने रहे? इसका उत्तर है उनके द्वारा सत्ता पर कड़ा नियंत्रण और सेना में शिया समुदाय के समर्थन को जुटाना।

अल-असद ने हमेशा सेना और सुरक्षा एजेंसियों पर कड़ा नियंत्रण बनाए रखा। सेना में अधिकतर अलावित समुदाय के लोग थे, जिन्होंने उन्हें सत्ता में बने रहने में मदद की। इस सामरिक समर्थन के साथ ही रूस और ईरान जैसे देशों ने हमेशा अल-असद सरकार का समर्थन किया। यह सहयोग सीरिया को स्थिर बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि ईरान और रूस ने अपने वैश्विक रणनीतिक हितों के तहत सीरिया में अपना प्रभाव बढ़ाया था।

Syria  में Shia-Sunni संघर्ष

Syria में धार्मिक विभाजन की गहरी जड़ें हैं। शिया और सुन्नी समुदाय (Shia-Sunni) के बीच मतभेद पहले से मौजूद थे, लेकिन अल-असद के शासनकाल में यह संघर्ष और बढ़ गया। शिया मुस्लिमों का मानना है कि इमामों की नियुक्ति पैगंबर मुहम्मद द्वारा ही की गई थी और यह पद वंशानुगत होता है, जबकि सुन्नी मुसलमानों का मानना है कि इमामों की नियुक्ति समुदाय द्वारा की जाती है। इसके अलावा, दोनों समुदायों की धार्मिक क्रियाओं में भी अंतर हैं, जैसे कि नमाज पढ़ने के तरीके, मोहर्रम मनाने के रीति-रिवाज आदि।

जब सीरिया में गृहयुद्ध शुरू हुआ, तो सुन्नी विद्रोहियों ने अल-असद सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला। अल-असद सरकार ने इन विद्रोहियों को कुचलने के लिए भारी हिंसा का सहारा लिया। इसके साथ ही शिया मुस्लिमों को ईरान का समर्थन प्राप्त था, जिससे सुन्नी मुसलमानों के बीच असंतोष और बढ़ गया। शिया मुस्लिमों द्वारा सत्ता में रहने के कारण सीरिया में सुन्नी मुसलमानों को लगातार उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, जिससे उनका गुस्सा और बढ़ा।

रूस और ईरान का समर्थन

रूस और ईरान का सीरिया में सक्रिय समर्थन बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ। रूस, जो हमेशा से सीरिया का एक महत्वपूर्ण साझीदार रहा है, ने सैन्य सहायता के माध्यम से अल-असद की सरकार को बचाए रखा। इसके अलावा, ईरान ने भी सीरिया में शिया समुदाय के समर्थन में अपनी सैन्य मदद प्रदान की। रूस और ईरान का यह गठबंधन न केवल सीरिया के गृहयुद्ध में महत्वपूर्ण था, बल्कि यह मध्य-पूर्व की राजनीति पर भी गहरा प्रभाव डाल रहा था।

भारत में शिया मुस्लिमों की स्थिति

अब भारत में शिया मुस्लिमों की स्थिति पर नजर डालें तो यहां भी शिया और सुन्नी मुस्लिमों के बीच तनाव की कुछ झलकियाँ मिलती हैं। भारत में शिया मुस्लिमों की संख्या लगभग 20% है और इनकी अधिकांश आबादी उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में निवास करती है। हालांकि, भारत में शिया मुस्लिमों को शांति और सहअस्तित्व के लिए जाना जाता है, लेकिन दोनों समुदायों के बीच मतभेद अब भी मौजूद हैं।

भारत में शिया और सुन्नी मुस्लिमों के बीच धार्मिक और सांस्कृतिक अंतर है। शिया मुस्लिमों का मानना है कि इमाम का चयन पैगंबर मुहम्मद द्वारा किया गया था और यह पद वंशानुगत होता है। वहीं, सुन्नी मुसलमानों का मानना है कि इमामों का चुनाव समुदाय के द्वारा किया जाता है। इस धार्मिक अंतर के कारण भारत में दोनों समुदायों के बीच कई बार संघर्ष हो चुका है, हालांकि बहुत से लोग शांतिपूर्वक एक-दूसरे के साथ रहते हैं।

भारत में शिया मुस्लिमों को सामाजिक और आर्थिक रूप से कई बार उपेक्षित किया गया है, जिससे उनमें असंतोष की भावना विकसित हुई है। हालांकि, भारत सरकार और अन्य संगठनों द्वारा कई कदम उठाए गए हैं, ताकि शिया मुस्लिमों को समान अधिकार और अवसर मिल सकें।

सीरिया और भारत के बीच समानताएँ और अंतर

सीरिया और भारत में शिया और सुन्नी समुदायों के बीच जो तनाव और संघर्ष होते रहे हैं, उनमें कुछ समानताएँ हैं, लेकिन इन दोनों देशों में परिस्थितियाँ बहुत अलग हैं। सीरिया में तो यह संघर्ष एक पूर्ण गृहयुद्ध का रूप ले चुका था, जबकि भारत में यह संघर्ष अपेक्षाकृत कमतर और सामाजिक रूप से नियंत्रित है। भारत में शिया और सुन्नी मुस्लिमों के बीच शांति के प्रयासों के बावजूद, सीरिया की स्थिति पूरी तरह से अलग है, जहां विदेशों से हस्तक्षेप और धार्मिक संघर्ष ने स्थिति को जटिल बना दिया है।

सीरिया का भविष्य और भारत में शिया मुसलमानों का रोल

सीरिया में राष्ट्रपति अल-असद के शासन के पतन के बाद, देश के भविष्य को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। अब यह देखना होगा कि क्या सीरिया में शांति बहाल हो पाएगी या यह संघर्ष और बढ़ेगा। वहीं भारत में शिया मुस्लिमों का रोल महत्वपूर्ण हो सकता है, क्योंकि उनके पास धार्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि है, जो दोनों समुदायों के बीच शांति और सामंजस्य स्थापित करने में मदद कर सकती है।

सीरिया के गृहयुद्ध और शिया-सुन्नी संघर्ष ने दुनिया भर में एक गहरी छाप छोड़ी है। अब यह समय है कि दुनिया इस संघर्ष से सीख लेकर शांति की दिशा में कदम बढ़ाए।

 

अस्वीकरण:इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन स्रोतों से प्राप्त की गई है और इसका उद्देश्य सीरिया में चल रहे संघर्ष, शिया-सुन्नी विवाद और भारत में शिया मुस्लिमों की स्थिति पर एक सामान्य दृष्टिकोण प्रस्तुत करना है। चूंकि यह लेख संवेदनशील धार्मिक विषयों से संबंधित है, हम पाठकों से निवेदन करते हैं कि वे जानकारी की स्वतंत्र रूप से सत्यता की जांच करें। हम पूरी सटीकता का दावा नहीं करते हैं, और यदि कोई जानकारी गलत या भ्रामक पाए, तो कृपया हमें सूचित करें। हमारा उद्देश्य सभी समुदायों और विश्वासों के प्रति समझ और सम्मान को बढ़ावा देना है।

Shyama Charan Panwar

एस0सी0 पंवार (वरिष्ठ अधिवक्ता) टीम के निदेशक हैं, समाचार और विज्ञापन अनुभाग के लिए जिम्मेदार हैं। पंवार, सी.सी.एस. विश्वविद्यालय (मेरठ)से विज्ञान और कानून में स्नातक हैं. पंवार "पत्रकार पुरम सहकारी आवास समिति लि0" के पूर्व निदेशक हैं। उन्हें पत्रकारिता क्षेत्र में 29 से अधिक वर्षों का अनुभव है। संपर्क ई.मेल- [email protected]

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