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Asaduddin Owaisi का तुर्की को करारा जवाब: भारत में 22 करोड़ मुसलमान हैं, पाकिस्तान के ठेकेदार मत बनो!

नई दिल्ली। एक बार फिर से कश्मीर मुद्दे पर तुर्की ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हस्तक्षेप की कोशिश की, लेकिन इस बार उसे करारा जवाब भारत से नहीं, बल्कि भारत के एक प्रमुख मुस्लिम नेता से मिला है। AIMIM प्रमुख और हैदराबाद से सांसद Asaduddin Owaisi ने तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के उस बयान पर जमकर प्रतिक्रिया दी जिसमें उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ ‘गंभीर चर्चा’ करने की बात कही थी।

🔴 एर्दोगन की ‘मध्यस्थता’ की कोशिश पर उठा तूफान

तुर्की के राष्ट्रपति ने कहा था कि वे कश्मीर विवाद का ‘मानवाधिकार आधारित हल’ चाहते हैं और तुर्की इसके लिए मध्यस्थ की भूमिका निभाने को भी तैयार है। उन्होंने यह भी कहा कि तुर्की इस मामले को अंतरराष्ट्रीय संगठनों के माध्यम से सुलझाना चाहता है। इस बयान के तुरंत बाद भारतीय राजनीति में उबाल आ गया, खासकर जब तुर्की ने इस मुद्दे पर एकतरफा पाकिस्तान का समर्थन किया।

ओवैसी ने खोली तुर्की की पोल, बताया इतिहास

असदुद्दीन ओवैसी ने एर्दोगन के बयान पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “तुर्की को पहले अपने इतिहास को याद करना चाहिए। भारत और तुर्की के ऐतिहासिक संबंध बहुत गहरे रहे हैं। क्या तुर्की को याद नहीं कि भारत की हैदराबाद और रामपुर रियासतों के लोगों ने तुर्की के इसबैंक (İşbank) में पैसा जमा किया था?”

उन्होंने आगे कहा, “तुर्की भूल गया है कि 1920 के दशक तक उनके हज यात्री लद्दाख होकर मुंबई पहुंचते थे। भारत ने हमेशा तुर्की का सम्मान किया है, लेकिन अब तुर्की को यह समझना चाहिए कि भारत में 22 करोड़ मुसलमान रहते हैं, जो पाकिस्तान की कुल आबादी से भी ज्यादा हैं। ऐसे में पाकिस्तान को मुस्लिमों का प्रतिनिधि मानना न केवल भ्रामक है, बल्कि अपमानजनक भी।”

🔍 “पाकिस्तान इस्लाम का ठेकेदार नहीं” — ओवैसी

ओवैसी ने साफ शब्दों में कहा कि पाकिस्तान को इस्लाम का ठेकेदार मानना बंद करना चाहिए। उन्होंने तुर्की को चेताया कि वह भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना बंद करे। “भारत का संविधान हमें बराबरी का दर्जा देता है, और हम यहां अपने हक के लिए खड़े हैं, पाकिस्तान या तुर्की की मेहरबानी के मोहताज नहीं हैं,” ओवैसी ने दो टूक कहा।

📊 भारत में मुस्लिमों की संख्या और सशक्त उपस्थिति

भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा मुस्लिम समुदाय से है। 2025 तक भारत में अनुमानित रूप से 22 करोड़ मुस्लिम नागरिक हैं, जबकि पाकिस्तान की कुल जनसंख्या ही लगभग 24 करोड़ है, जिसमें मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। लेकिन भारत के मुस्लिमों की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक भागीदारी कहीं ज्यादा विविध और लोकतांत्रिक व्यवस्था में निहित है।

🧠 तुर्की को चाहिए सोच-समझ कर कूटनीति

ओवैसी ने तुर्की को याद दिलाया कि यदि उसे भारत के साथ अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को बनाए रखना है, तो उसे पाकिस्तान की ‘वन-साइडेड’ राजनीति से बचना होगा। भारत ने कभी भी तुर्की के आंतरिक मामलों में दखल नहीं दिया, ऐसे में तुर्की से भी यही अपेक्षा है।

🗣️ राजनीतिक हलकों में मिली ओवैसी को सराहना

ओवैसी की यह प्रतिक्रिया सोशल मीडिया पर भी जमकर वायरल हुई। देश के विभिन्न मुस्लिम बुद्धिजीवियों, राजनीतिक विश्लेषकों और आम लोगों ने भी ओवैसी के बयान का समर्थन किया और तुर्की की भूमिका पर सवाल उठाए। यह पहली बार नहीं है जब ओवैसी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के मुसलमानों की गरिमा को लेकर मुखर रुख अपनाया है।

🔴 तुर्की-पाकिस्तान गठजोड़: क्या भारत को चिंता होनी चाहिए?

विशेषज्ञों का मानना है कि तुर्की और पाकिस्तान का गठबंधन दक्षिण एशिया की कूटनीति में नया मोड़ ला सकता है। दोनों देशों ने हाल के वर्षों में रक्षा, व्यापार और सांस्कृतिक सहयोग को गहराया है। लेकिन कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर तुर्की का खुला समर्थन भारत के लिए चिंता का विषय बन सकता है, खासकर जब वह इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश करता है।

📌 भारत की विदेश नीति पर असर?

भारत ने हमेशा कश्मीर को अपना आंतरिक मामला बताया है और किसी भी प्रकार की तीसरी पार्टी की मध्यस्थता को खारिज किया है। भारत सरकार ने अभी तक इस तुर्की-पाक बातचीत पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन ओवैसी जैसे नेताओं का विरोध यह दर्शाता है कि तुर्की की इस कार्रवाई से भारत के भीतर असंतोष पनप रहा है।

🛑 “तुर्की को भारत के मुसलमानों की आवाज़ सुननी चाहिए” — AIMIM

Asaduddin Owaisi ने अंत में यह भी कहा कि तुर्की को भारत के मुसलमानों की आवाज़ सुननी चाहिए, न कि पाकिस्तान की बयानबाज़ी पर भरोसा करना चाहिए। “हम भारत में बराबरी के हकदार हैं। हमें किसी देश की सिफारिश या दया की जरूरत नहीं है। तुर्की अगर वास्तव में मुस्लिम एकता की बात करता है, तो उसे भारत के मुसलमानों का सम्मान करना चाहिए,” AIMIM प्रमुख ने जोड़ा।

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तुर्की और पाकिस्तान की नजदीकियों के बीच असदुद्दीन ओवैसी की आवाज़ ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत के मुसलमान खुद को किसी भी विदेशी ‘मसीहा’ की जरूरत से ऊपर मानते हैं। भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में उन्हें जो अधिकार और सम्मान मिला है, वह किसी भी इस्लामी राष्ट्र से कहीं ज्यादा व्यापक और गारंटीकृत है। ओवैसी की इस कड़ी प्रतिक्रिया से तुर्की को एक बार फिर सोचना पड़ेगा कि वह अपनी विदेश नीति में किस दिशा में जा रहा है।

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