Yashpal: क्रांतिकारी से साहित्यकार तक, एक महान स्वतंत्रता सेनानी ‘यशपाल’ की अनकही कहानी
भारत की स्वतंत्रता संग्राम की अनगिनत कहानियाँ हैं, जिनमें से कुछ पात्र इतिहास में अमिट छाप छोड़ गए। कई ऐसे महापुरुष हुए जिन्होंने अपने जीवन और संघर्षों से न केवल देश को स्वतंत्रता दिलाई, बल्कि समाज और साहित्य को भी एक नई दिशा दी। इनमें से एक प्रमुख नाम था – यशपाल (Yashpal)। प्रसिद्ध हिंदी कथाकार और निबंधकार यशपाल का जन्म 3 दिसम्बर 1903 को पंजाब के फिरोजपुर जिले में हुआ था। उनका जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीर गाथाओं से जुड़ा था और उनकी लेखनी ने देश के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य को चुनौती दी। यशपाल का जीवन संघर्ष, शौर्य, और साहित्य की महानता का प्रतीक बन गया।
यशपाल का बचपन और शिक्षा
यशपाल (Yashpal) का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था। उनके पिता हीरालाल एक दुकानदार और तहसील क्लर्क थे, और उनकी मां प्रेमादेवी एक शिक्षिका थीं। यशपाल का बचपन ऐसे समय में बीता जब ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ भारतीयों के दिलों में घृणा और विद्रोह का भाव तीव्र हो चुका था। यशपाल का दिल बचपन से ही देशभक्ति और स्वाधीनता की भावना से भरा हुआ था।
वह अपनी शिक्षा के लिए गुरुकुल कांगडी गए, जहां आर्य समाज के प्रभाव में उनका चरित्र और व्यक्तित्व गढ़ा गया। नेशनल कॉलेज, लाहौर में उनका प्रवेश हुआ, जो उस समय राष्ट्रीय विचारधारा का केंद्र था। यही वह समय था जब यशपाल का संपर्क भगत सिंह, सुखदेव और भगवतीचरण वोहरा से हुआ, और यहीं से उनके भीतर देश की स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारी विचारों का जन्म हुआ।
क्रांतिकारी आंदोलन में यशपाल (Yashpal) का योगदान
यशपाल (Yashpal) ने 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया। इसके बाद उनका विश्वास उन आंदोलनों में घटने लगा, जो उनके अनुसार, ब्रिटिश शासन को झकझोरने के बजाय भारतीय समाज के गरीब और आम लोगों की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं ला रहे थे। यशपाल ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र क्रांति की दिशा में कदम बढ़ाया और भगत सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय भागीदार बन गए।
उन्होंने 1929 में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड इरविन की ट्रेन में बम रखा और कई अन्य क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया, जिनमें पुलिस कांस्टेबलों की हत्या और भगत सिंह को जेल से छुड़ाने का प्रयास भी शामिल था। 1931 में चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत के बाद यशपाल को हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) का कमांडर नियुक्त किया गया।
जेल जीवन और वैवाहिक जीवन
यशपाल (Yashpal) का जीवन संघर्षों से भरा था। 1932 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर कई मामलों का मुकदमा चला। जेल में रहते हुए यशपाल ने न केवल कई भाषाएं सीखी, बल्कि उन्होंने अनेक साहित्यिक कृतियाँ भी लिखीं। उनका जेल जीवन उनके विचारों और लेखनी के विकास का एक महत्वपूर्ण दौर था। उन्होंने अपनी काव्यात्मक और साहित्यिक दृष्टि को जेल में रहते हुए आकार दिया और अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘पिंजरे की उड़ान’ सहित कई कहानियाँ और निबंध लिखे।
यशपाल का जीवन एक और कारण से भी याद किया जाता है, और वह है उनका जेल विवाह। प्रकाशवती, जो उनके साथ क्रांतिकारी आंदोलन में सक्रिय थीं, ने यशपाल से विवाह करने का प्रस्ताव दिया। 1936 में बरेली जेल में यशपाल और प्रकाशवती का विवाह हुआ। यह घटना भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय उदाहरण बन गई, क्योंकि यह पहली बार था जब किसी कैदी ने जेल में विवाह किया।
प्रकाशवती बहुत कम उम्र से ही यशपाल के काम से प्रभावित थीं। जेल मैनुअल में कैदियों के विवाह के संबंध में कोई नियम नहीं था, जिसके कारण ब्रिटिश अधीक्षक ने विवाह की अनुमति दे दी। पुलिस इतने खतरनाक कैदी को बिना हथकड़ी के शादी के लिए बाहर लाने को तैयार नहीं थी। और यशपाल हथकड़ी पहन कर शादी करने को तैयार नहीं थे. आखिरकार कमिश्नर खुद आए और जेल में ही शादी कराने पर समझौता हुआ।
अगस्त 1936 को केवल एक गवाह के साथ बरेली जेल में शादी हुई। यशपाल ने शादी का पंजीकरण कराते समय अपना धर्म रेशनलिस्ट या बुद्धिवादी लिखने को कहा। शादी के बाद, दूल्हे को फिर से उसके बैरक में डाल दिया गया और दुल्हन डेंटल सर्जन के रूप में अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए कराची चली गईं। यशपाल-प्रकाशवती का जेल विवाह भारत के इतिहास में अपनी तरह की एकमात्र ऐसी घटना थी। इसकी अखबारों में भी बड़ी चर्चा हुई। इस हंगामे के परिणामस्वरूप, सरकार ने बाद में जेल मैनुअल में एक विशेष खंड जोड़ा, जिससे भावी सजायाफ्ता कैदियों को जेल में शादी करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
‘विप्लव’ पत्रिका और पत्रकारिता
जेल से रिहा होने के बाद यशपाल ने ‘विप्लव’ नामक पत्रिका का प्रकाशन किया, जो उस समय के सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक मंचों में से एक बन गई। यह पत्रिका न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के विचारकों के विचारों का संकलन थी, बल्कि इसमें गांधीवादी, मार्क्सवादी, और समाजवादी विचारधाराओं को भी स्थान मिला। यशपाल के नेतृत्व में ‘विप्लव’ पत्रिका ने स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन को एक नया दृष्टिकोण दिया और उसे व्यापक जनसमूह तक पहुंचाया।
साहित्यिक यात्रा और महत्वपूर्ण कृतियाँ
यशपाल (Yashpal) की लेखनी ने भारतीय साहित्य को एक नई दिशा दी। उनके लेखन में समाज के प्रति गहरी संवेदनाएँ, क्रांतिकारी विचारधारा, और मानवीय संघर्ष की वास्तविकताएँ दिखती हैं। उन्होंने कई महत्वपूर्ण उपन्यासों और कहानी संग्रहों की रचना की, जिनमें ‘दादा कॉमरेड’, ‘वो दुनिया’, ‘दिव्या’, ‘झूठा सच’, ‘पार्टी कॉमरेड’ जैसे महत्वपूर्ण उपन्यास शामिल हैं। उनका ‘मार्क्सवाद’ नामक पुस्तक समाजवाद की अवधारणा को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण कृति मानी जाती है।
उनकी रचनाओं में समाज के विभिन्न पहलुओं, जैसे वर्ग संघर्ष, धर्म, और राजनीति पर गहरी आलोचना की गई है। यशपाल का उपन्यास ‘दिव्या’ एक क्रांतिकारी महिला के जीवन की कहानी है, जो समाज के काले पक्ष को उजागर करती है। ‘दादा कॉमरेड’ में उन्होंने क्रांतिकारियों के मानसिक और नैतिक संघर्ष को बेहद सजीव और स्पष्ट रूप से चित्रित किया है।
स्वतंत्रता संग्राम के बाद यशपाल का योगदान
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, यशपाल ने अपनी लेखनी से भारत के सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को उजागर किया। उन्होंने ‘विप्लव’ पत्रिका के पुनः प्रकाशन के साथ ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बाद की राजनीति पर भी अपनी टिप्पणी दी। उनके लेखन ने समाज की अन्यायपूर्ण संरचनाओं और सत्ता की तानाशाही को बेनकाब किया।
यशपाल (Yashpal) के लेखन में एक विशेष प्रकार की मौलिकता और साहस था। उन्होंने भारतीय समाज के हर पहलु को अपने साहित्य में गहराई से पेश किया। उनके विचार आज भी समाज और राजनीति में नई राह दिखाने का काम कर रहे हैं।
यशपाल का व्यक्तित्व और उनकी धरोहर
यशपाल (Yashpal) का व्यक्तित्व बहुआयामी था। वह एक क्रांतिकारी, लेखक, समाज सुधारक और विचारक थे। उनके विचारों में कभी कोई समझौता नहीं हुआ, और उनका लेखन समाज की बेहतरी और स्वतंत्रता के लिए एक अमूल्य धरोहर बन चुका है। उनका जीवन न केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का हिस्सा है, बल्कि वह साहित्यिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
यशपाल की मृत्यु 26 दिसंबर 1976 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुई। उस समय वे क्रांतिकारी आंदोलन की स्मृतियों पर लिखी अपनी पुस्तक ‘सिंहावलोकन’ के चौथे भाग पर काम कर रहे थे। उनके निधन से एक आधुनिक मार्क्सवादी, एक बेहद जागरूक लेखक चला गया, जिसे हिंदी ने उन कठिन दिनों में तैयार किया था। वह एकमात्र ऐसे लेखक थे जिन्होंने हर जगह व्यक्तिवाद और अलगाव की लहर के कठिन समय में कलम उठाई थी।
‘विप्लव‘ के लेखक एवं संपादक के रूप में यशपाल के रूप में हिंदी साहित्य को सामाजिक एवं राजनीतिक सुधारों का एक प्रबल समर्थक मिला। चूंकि महिलाओं के प्रति उनका दृष्टिकोण प्रगतिशील और आधुनिक था, इसलिए उनकी कहानियों में महिला पात्रों को स्थिति से लड़ते हुए और उससे बाहर निकलने का रास्ता बनाते हुए दिखाया गया। महात्मा गांधी और कांग्रेस पार्टी के विचारों और कार्यक्रमों की निरर्थकता को देखते हुए यशपाल उनके साहित्य और चिंतन पर मार्क्सवाद के प्रभाव को स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हैं।
यशपाल की रचनाएँ आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं, और उनकी लेखनी की गूंज स्वतंत्रता, समानता और न्याय के पक्ष में आज भी महसूस की जाती है। उनके द्वारा छोड़ी गई धरोहर भारतीय साहित्य और समाज में सदैव जीवित रहेगी।