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मोसाद के 250 जासूसों की बगावत: Netanyahu पर बरसे पूर्व अधिकारी, गाज़ा युद्ध खत्म करने की उठी तेज़ मांग

तेल अवीव से एक बड़ी खबर आ रही है जो इसराइली राजनीति और समाज के भीतर उबाल को उजागर करती है। गाज़ा पट्टी में चल रहे इसराइल-हमास युद्ध ने अब खुद इसराइली खुफिया एजेंसी मोसाद के दरवाजे हिला दिए हैं। 250 से अधिक पूर्व मोसाद अधिकारियों ने इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन Netanyahu से युद्ध को तुरंत समाप्त करने की अपील की है। यह आवाज़ अब सिर्फ विरोध नहीं, बल्कि सरकार के खिलाफ एक संगठित चेतावनी बन चुकी है।

पूर्व जासूसों का सरकार को कड़ा संदेश: “बस बहुत हुआ!”

इज़रायली खुफिया एजेंसी मोसाद के तीन पूर्व प्रमुख – डैनी याटोम, एफ्रेम हेलेवी और तामीर पार्डो – सहित सैकड़ों वरिष्ठ पूर्व अधिकारियों ने मिलकर सरकार को एक ऐसा पत्र लिखा है जिसने राजनीतिक गलियारों में खलबली मचा दी है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि गाज़ा में निरंतर जारी युद्ध अब सिर्फ सैनिकों और बंधकों की जान को खतरे में डाल रहा है, न कि देश की सुरक्षा के लिए कोई लाभकारी कदम है।

पत्र में उन्होंने लिखा:

“यह लड़ाई अब किसी रणनीतिक लक्ष्य की पूर्ति नहीं कर रही है, बल्कि यह राजनीतिक हठधर्मिता और सत्ता में टिके रहने की ज़िद का परिणाम है।”

सुरक्षा नहीं, सत्ता का खेल?

गाज़ा में युद्ध अब धीरे-धीरे इज़राइल के भीतर ही विरोध की आग में जल रहा है। पूर्व सैन्य अधिकारियों का आरोप है कि यह युद्ध अब सुरक्षा की नहीं, बल्कि नेतन्याहू के राजनीतिक फायदे और समर्थन को मजबूत करने की चाल बन चुका है। युद्ध की आड़ में आम नागरिकों और सैनिकों को बेमतलब की लड़ाई में झोंका जा रहा है।

गौरतलब है कि हमास ने 7 अक्टूबर, 2023 को अचानक हमला करके दक्षिणी इज़राइल से 251 लोगों को बंधक बना लिया था। इनमें से अब तक 59 बंधक गाज़ा में फंसे हुए हैं, जिनमें सिर्फ 24 के ज़िंदा होने की संभावना जताई जा रही है।

एयरफोर्स से लेकर मेडिकल यूनियन तक, हर तरफ नाराज़गी

इज़रायली वायुसेना में भी इस पत्र का असर देखने को मिला। एयरक्रू सदस्यों द्वारा पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद एयरफोर्स चीफ टोमर बार ने कई रिज़र्विस्ट्स की सेवा समाप्त करने का फैसला लिया। सरकार की आलोचना करने वाले लोगों को सैन्य सेवा से बाहर निकालना, एक नए स्तर की असहिष्णुता को दर्शाता है।

इतना ही नहीं, करीब 200 सैन्य डॉक्टरों ने भी लड़ाई रोकने और बंधकों की सुरक्षित वापसी की मांग करते हुए याचिका पर हस्ताक्षर किए हैं। यह सब दर्शाता है कि नेतन्याहू सरकार का “युद्ध से ही समाधान” का रवैया अब खुद उनके अपने लोगों को ही रास नहीं आ रहा।

गाज़ा में शांति की कोशिशें, मगर नतीजा शून्य

जनवरी 2024 में इज़राइल और हमास के बीच एक तीन चरणों वाले संघर्षविराम पर सहमति बनी थी। पहला चरण 1 मार्च तक चला, मगर उसके बाद बातचीत में गतिरोध पैदा हो गया। फिर 18 मार्च को इज़राइली सेना ने गाज़ा में दोबारा सैन्य अभियान शुरू कर दिया।

इस निर्णय ने कई परिवारों को एक बार फिर आशंकाओं से भर दिया, खासकर उन लोगों को जिनके रिश्तेदार बंधक बने हुए हैं। बंधकों की सुरक्षित वापसी के लिए यह संघर्षविराम ही एकमात्र उम्मीद थी, जिसे नेतन्याहू सरकार ने खुद ही तोड़ दिया।

नेतन्याहू का पलटवार: “देशद्रोहियों का गिरोह”

इन तीखे पत्रों और अपीलों से बौखलाए प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इसे एक “चरमपंथी हाशिए के समूह” की करतूत बताया। उन्होंने हस्ताक्षरकर्ताओं पर आरोप लगाया कि वे “देश के भीतर से समाज को तोड़ने की कोशिश” कर रहे हैं। लेकिन सवाल ये उठता है कि जब देश के सबसे अनुभवी खुफिया अफसर, सैन्य डॉक्टर और वायुसेना के रिज़र्विस्ट ही युद्ध को आत्मघाती मान रहे हैं, तो क्या सरकार का यह रवैया वाकई राष्ट्रहित में है?

क्यों अलग है यह विरोध?

इज़राइल में सरकार के खिलाफ विरोध कोई नई बात नहीं, लेकिन मोसाद जैसे संगठन के इतने बड़े स्तर पर सामने आना ऐतिहासिक है। ये वही एजेंसी है जो दशकों से इज़राइल की सुरक्षा की रीढ़ रही है। जब उसके 250 अनुभवी अफसर एक स्वर में यह कहें कि “यह युद्ध अब देश के लिए खतरा बन गया है”, तो इसे नज़रअंदाज़ करना नामुमकिन है।

क़दम-क़दम पर बढ़ रहा आक्रोश

इज़राइली समाज में अब दो स्पष्ट खेमे बनते दिख रहे हैं—एक जो सरकार की युद्ध नीति का समर्थन करता है, और दूसरा जो मानता है कि अब बहुत हो चुका। जिन घरों के बेटे मोर्चे पर हैं, जिनके रिश्तेदार बंधक हैं, वे अब सरकार से जवाब मांग रहे हैं।

इज़राइल के कई शहरों में विरोध प्रदर्शन बढ़ रहे हैं। लोग सड़कों पर उतरकर Netanyahu के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं। ‘Bring them home’ (उन्हें घर लाओ) जैसे नारों के साथ नागरिक प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकार इन आंदोलनों को दबाने की कोशिश कर रही है, लेकिन विरोध की आग थमने का नाम नहीं ले रही।

अब आगे क्या?

वर्तमान हालात में सबसे बड़ा सवाल यही है—क्या नेतन्याहू सरकार देश की भावना को समझेगी या सत्ता की राजनीति में ही उलझी रहेगी? क्या मोसाद, वायुसेना, और सेना के अनुभवी अधिकारियों की चेतावनी को वह नजरअंदाज़ कर देगी?

गाज़ा युद्ध अब केवल सीमाओं तक सीमित नहीं रहा, यह एक राजनीतिक-सामाजिक युद्ध बन गया है, जिसमें सबसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है आम नागरिकों और सैनिकों को।


🔥 यह पूरा घटनाक्रम यह दिखाता है कि इज़राइल अब केवल हमास से नहीं, बल्कि अंदरूनी विरोध और अंतरात्मा की आवाज़ से भी जूझ रहा है। गाज़ा युद्ध का भविष्य चाहे जो भी हो, पर ये साफ है कि इज़राइल की राजनीति में उथल-पुथल अब लंबी चलने वाली है।

News-Desk

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