Akshay की कलम से…क्या कलाकारों की कलाकारी को गरीबी ने खा लिया?
बहुत दुख होता है जब समाज में कलाकारों की कलाकारी की दुर्दशा को देखता हूं ।अजीब सी विडंबना है हमारे समाज कि कलाकारों का वर्ग समाज में स्थान पाने के लिए संघर्षरत है।
आधुनिक समाज बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है, लोगों को कलाकारों की कलाकारी की दिन प्रतिदिन होती दुर्दशा की तनिक भी चिंता नहीं है। समाज में यह ऐसा वर्ग है जिसको पैसे के तराजू पर तोलना व्यर्थ सी बात है।
समस्या यह है कि यह वर्ग आज भी अपनी मूलभूत आवश्यकताएं भी पूरी करने में असमर्थ है। ऐसा प्रतीत होता है कुछ कलाकारों के लिए गरीबी विरासत की देन है। सभी कलाकार अपनी कलाकारी को समाज के समक्ष दिखाना तो चाहते हैं लेकिन एक अजीब सी दीवार गरीबी उनके सामने आ जाती है।
Akshay कुमार वत्स आज की भावी पीढी का प्रतिनिधित्व करने वाले युवा लेखक हैं। उनकी ही कृति “समाज में रंग का बढ़ता महत्व” आलोचको द्वारा बहुत ही सराही गयी हैं। शैक्षिक स्तर पर श्री वत्स ने बीएससी रसायन विज्ञान, बीटीसी, एमएससी रसायन विज्ञान अर्जित किये हैं और निरन्तर सामाजिक मुद्दो पर अपनी राय बेबाकी से अपने लेखो के माध्यम से प्रस्तुत करते रहते हैं।
जिस वजह से कलाकारी छिप जाती है और कलाकार समाज के आधुनिकरण के समक्ष छिप सा गया है ।हमारी भारतीय संस्कृति में विविधता बहुत है ।गांव के स्तर पर कलाकार हमेशा छिप ही जाता है वह संसाधन का अभाव समझ लीजिए या गरीबी की दीवार।
महत्वपूर्ण बात यह है कि कलाकार आशावादी होते हैं उनके लिए निराशा का कोई स्थान नहीं है आधुनिक समाज में कलाकार इसलिए भी दुखी है क्योंकि इस समाज में कलाकारी का अर्थ ही बदल गया है। आधुनिक समाज में नैतिकता के पैमाने बदले हैं इस समाज का एक रूप भारी दिखावा भी है।
कलाकार आज इस बात से ही संतोष कर लेता है कि यह कलाकारी भगवान की देन है।
यह बात सही भी है क्योंकि सभी लोग कलाकार नहीं होते और सभी लोगों को कला की समझ भी नहीं होती ।इससे शिक्षा यही मिलती है जीवन हमेशा आशावादी होना चाहिए