घर में बैठो स्वस्थ रहो तुम देश पे ये एहसान करो
क्या सरहद पर जाकर लड़ना है या आग में तुमको जलना है
देशभक्ति के नाते केवल घर में ही तो रहना है।
सड़कों पर पहरेदारों से सीखो उन बेबस परिवारों से
उन योद्धाओं का ध्यान करो जो मौत से आज है खेल रहे
जो देश के खातिर आज वतन की गोली सी है झेल रहे।
ना माने गर देशवासियों तो फिर घोर प्रलय आ सकती है
जो ना सोचा हो सपनों में स्थिति उस मंजर तक जा सकती है।
रुके रहो घर में ही यू मौत को ना तुम दावत दो
मानो या ना मानो फिर तुम चाहे देश को खाक करो।
जितनी तुम देर करोगे उतना यह तड़पाएगी
सोचो फिर आर्थिक स्थिति की मार कहां तक झेली जाएगी।
जिसे जरूरत हो जिसकी हो तुम पर वो तो दान करो
घर में बैठो स्वस्थ रहो तुम देश पे ये एहसान करो।
रखो हौसला जीतेंगे हम इस बेबस बीमारी से
करो प्रतिज्ञा न बढ़ने देंगे अपनी पूरी तैयारी से।
अपनी कविता से समाज को इस विषम परिस्थिति में न हारने और प्रण लेने के लिए लक्षित करते अभिषेक तिवारी, मेरठ के दीवान इंस्टिट्यूट में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के छात्र हैं। देशभक्ति से ओतप्रोत लेखन एवम काव्य रचनाएं करना उनकी अभिव्यक्ति हैं।
Nice