शांति की खोज में Kashi आई रूसी महिला इंगा: अपनाया सनातन धर्म
काशी नगर, जिसे हम प्रेम से बाबा विश्वनाथ के नाम से भी जानते हैं, भारतीय संस्कृति का एक अमूल्य रत्न है। यहाँ का माहौल, इसकी सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक माहौल, सभी एक साथ मिलकर इसे एक अद्वितीय स्थान बनाते हैं। विदेशी यात्री भी इस नगर की अद्वितीयता को महसूस करते हैं और कुछ लोग इसी अद्वितीयता के चक्कर में सनातन धर्म का आदर्श लेने के लिए इस नगर की ओर आते हैं।
Kashi शांति की खोज में आई रूसी महिला ने अपने जन्मदिन पर तंत्र पूजा की दीक्षा लेते हुए सनातन धर्म को अपना लिया और फिर इंगा से इंगानंदमयी बन गई. वाराणसी के शिवाला घाट के करीब वागयोग पीठम में इंगानंदमयी ने यह दीक्षा ग्रहण की है.
बताते चलें कि इंगा रूस के मास्को की रहने वाली है. इस दीक्षा से पहले वो पूरी तरह से भारतीय वेशभूषा को धारण किया और फिर पूजा में बैठ कर सनातन धर्म की प्रक्रिया का पूरा पालन करते हुए उन्होंने हिन्दू धर्म को अपनाया और अनुष्ठान किया. इंगा ने पंडित आशापति त्रिपाठी के द्वारा दीक्षा प्राप्त की और दीक्षा लेने के बाद उन्होंने पूरे विधि-विधान से भगवान शिव का भी रुद्राभिषेक किया.
पंडित आशापति त्रिपाठी ने बताया कि यह अपने जीवन में शांति के तलाश के लिए वाराणसी पहुंचीं थी. उन्होंने बताया कि वैसे तो इन्होंने पहले से तांत्रिक दीक्षा प्राप्त की थी. लेकिन अशांति के कारण अब उन्होंने सनातन धर्म को अपना लिया है.
इतना ही नहीं उन्होंने भगवान शिव का रुद्राभिषेक कर रूस-यूक्रेन युद्ध के शांति की प्रार्थना भी की. सनातन धर्म अपनाने के बाद रूसी महिला इंगानंदमयी ने बताया कि अब उन्हें काफी शांति महसूस हो रही है.
अभी हाल ही में एक रूसी महिला, इंगा, ने अपने जीवन के एक महत्वपूर्ण संघर्ष के बाद सनातन धर्म का आदर्श अपनाया। उनकी कहानी दिल छू लेने वाली है, क्योंकि वह एक दूरसंचार के जरिए किसी और धर्म से नहीं, बल्कि सनातन धर्म की शांति और संतोष के संदेश से प्रेरित हुई।
इंगा एक रूसी महिला है जो मॉस्को में रहती हैं। उनके जीवन में कई कठिनाइयाँ थीं और उन्हें शांति और सकारात्मकता की तलाश थी। उन्होंने कई धार्मिक तथा आध्यात्मिक अनुभवों का अध्ययन किया, लेकिन उन्हें असली संतोष नहीं मिला। तब एक दिन, उन्हें लगा कि वे काशी नगर में अपनी शांति और आत्मिक संतुष्टि की खोज कर सकती हैं।
काशी नगर उनके लिए एक मार्गदर्शक बना, जहां उन्हें पंडित आशापति त्रिपाठी जैसे आदर्श गुरु मिले। इस महान गुरु के मार्गदर्शन में, इंगा ने सनातन धर्म का अध्ययन किया और उसके महत्व को समझने लगीं। उन्होंने सनातन धर्म की प्रणाली को अपनाया और ध्यान, पूजा और अनुष्ठान के माध्यम से अपने आत्मा को प्राप्त करने का संकल्प किया।
उन्होंने वाराणसी के शिवाला घाट पर वागयोग पीठम में गुरु के मार्गदर्शन में शिव के भक्ति अनुष्ठान का अभ्यास किया। उन्होंने पूजा में भाग लिया, मंत्र जप किया, और शिव के ध्यान में व्यस्त रहते हुए अपने आत्मा की खोज में लगे।
इंगा ने अपने जन्मदिन पर तंत्र पूजा की दीक्षा लेते हुए सनातन धर्म को अपना लिया, और उन्होंने पंडित आशापति त्रिपाठी के द्वारा शिक्षा प्राप्त की। इस दीक्षा के बाद, उन्होंने पूरी विधि-विधान से भगवान शिव का भक्ति अनुष्ठान किया, जिसमें उन्होंने भगवान शिव का रुद्राभिषेक भी किया।
उन्होंने अपने नए धार्मिक मार्ग पर चलते हुए भगवान शिव से शांति और संतुष्टि की प्रार्थना की, और अपने संघर्षों के समापन की कामना की। सनातन धर्म को अपनाने के बाद, इंगा की जीवन में एक नई ऊर्जा और आत्मविश्वास का संचार हुआ, और उन्हें अब शांति की सच्ची अनुभूति हो रही है।
इस रूसी महिला की कहानी हमें यह सिखाती है कि सनातन धर्म की अद्वितीयता और आत्मिक संवाद की गहराई को समझने के लिए हमें ध्यान और श्रद्धा की आवश्यकता होती है। यह एक प्रेरणादायक कथा है जो हमें यह बताती है कि चाहे हम कहाँ भी हों, हमें अपने आत्मा की खोज में समर्थ और उत्साही रहना चाहिए। और जब हम इसे ध्यान से और उत्साह से करते हैं, तो हमें आत्मिक शांति और संतुष्टि की प्राप्ति होती है।