कालाजार (Black Fever) के लक्षण, कारण और Homeopathic इलाज
कालाजार (Black Fever) एक ऐसा रोग है जो शीघ्रता से फैलता है तथा एक ही क्षेत्र के बहुत से लोगों पर एक साथ आक्रमण करता है . ज्यादातर कालाजार (Black Fever) रोग का शिकार गंगा तथा ब्रहामुत्र नदियों के तटवर्ती क्षेत्रों पर निवास 1496 काल आसाम , कर रहे लोग होते हैं.
इतना ही नहीं भारत के पूर्वी क्षेत्रों जैसे पश्चिम बंगाल , बिहार , उत्तर प्रदेश , सिक्किम , उड़ीसा और तमिलनाडु भी इस रोग को चपेट से बच नहीं पाते हैं
संक्रमण : –
कालाजार (Black Fever) एक परजीवी कशाभी एककोशिकीय जन्तु , लीशमानिया डोनोवानी के द्वारा उत्पन्न होने वाला रोग है इस रोग का संक्रमण प्रायः एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में मिलता है जो कि मादा फ्लीबोटामाइन सैन्ड फ्लाई के द्वारा ही एक व्यक्ति से दूसरे में संक्रमण स्थापित हो पाता है.
भारत में कालाजार (Black Fever) ज्यादातर 9 वर्ष अथवा 9 वर्ष से कम आयु वाले बच्चे को ही अपना शिकार बनाता है ; परन्तु कभी – कभी यह वयस्कों का भी नहीं छोड़ता है . पारिस्थितक कारकों को दृष्टि से यह पाया गया है कि यह रोग अपनी चरम सीमा पर अप्रैल और सितम्बर माह में होता है.
कालाजार (Black Fever) लक्षण:
1. बुखार , सिर दर्द , खांसी , नाक से खून आदि
2. प्लीहा वृद्धि .
3. यकृत वृद्धि .
4. अनीमिया या लाल रक्तकणिकाओं की संख्या में कमी ,
5. वजन घटना .
6. चेहरा , हाथ – पैर एवं उदर की त्वचा का रंग गहरा होना
कालाजार (Black Fever) – जांच :
1.रक्त जांच . TLC कणिकाओं में कमी . इस्नोफिल की संख्या में कमी , श्वेतरूधिर , लिम्फोसाइट और मोनोसाइट की संख्या में वृद्धि .
2. रक्त में अल्बुमिन की मात्रा में कमी एवं गामाग्लोबलिन की मात्रा में वृद्धि .
3. मानटिनेग्रो त्वचा जांच . 4. एलीसा .
5. पी . सी . आर .
कालाजार (Black Fever) -Homeopathic उपचार
( 1 ) फेरम मेट : डॉ . प्रायः ऐसे व्यक्तियों में जो कि कमजोर अनीमिक और क्लोरोटिक दिखते हैं फेरम मेट अच्छा कार्य करती हैं . झिल्ली वत्र पीला पड़ जाता है , + त्वचा तथा श्लेष्मिका हाथ तथा पैर का ज्वर की अवस्था में ठंडा पड़ जाना तथा सिर और मुंह का गरम होना
( 2 ) आर्सेनिक एल्ब : कालाजार में आर्स एल्व बहुत अच्छा कार्य करती है . छटपटाहट तथा रात में रोग का बढ़ना . मियादी बुखार का पाया जाने का मुख्य लक्षण है . जलन में प्रायः गर्म से से आराम मिलना आर्स एल्ब को दर्शाता है
( 3 ) फेरम आर्स : जब प्लीहा वृद्धि और यकृत दोनों ही ज्वर की अवस्था में पायी जाए . त्वचा सूखी होना . सामान्य और पनिर्सियस अनिमिया की अवस्था में फेरम आर्स का प्रभाव बहुत अच्छा देखने को मिलता है