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चिली: जनमत संग्रह में नया संविधान बनाने की मांग को भारी बहुमत मिला

चिली में रविवार को हुए जनमत संग्रह में नया संविधान बनाने की मांग को भारी बहुमत मिला। नया संविधान बनाने की मांग पिछले साल अक्टूबर में शुरू हुए जन आंदोलन से उठी थी।

आंदोलन परिवहन किराये में बढ़ोतरी के विरोध में शुरू हुआ था, लेकिन बाद में बड़े बदलाव की मांग उससे जुड़ गई। ये आंदोलन पिछले नौ साल में हुए दो बड़े आंदोलनों की कड़ी में शामिल हो गया।

ये आंदोलन मुफ्त शिक्षा और सरकारी कोष से पेंशन के भुगतान की मांग के समर्थन में हुए थे। यानी इन तीनों जन आंदोलनों ने देश में पिछले चार दशक के दौरान अपनाई गई नव-उदारवादी नीतियों को चुनौती दी।

इन नीतियों का प्रावधान चूंकि चालीस साल पहले लागू हुए संविधान में था, इसलिए संविधान बदलने की मांग आंदोलन का केंद्रीय मुद्दा बन गया।

इस साल की शुरुआत में देश की दक्षिणपंथी सरकार ने नए संविधान को लेकर जनमत संग्रह कराने की मांग स्वीकार कर ली थी। लेकिन कोरोना वायरस महामारी आ जाने के कारण उसमें देर हुई।

जनमत संग्रह दो मुद्दों पर हुआ। पहला सवाल यह रखा गया कि क्या देश को नया संविधान चाहिए। दूसरा सवाल था कि नया संविधान बनाने के लिए संपूर्ण या मिश्रित संविधान सभा गठित की जाए।

वामपंथी संगठन संपूर्ण संविधान सभा का गठन चाहते थे। इस योजना के तहत नई संविधान सभा के सभी 155 सदस्य आगे होने वाले स्थानीय चुनाव के दौरान सिविल सोसायटी से चुने जाएंगे।

धनी-मानी और नव-उदारवादी तबके के लोग 172 सदस्यों की मिश्रित संविधान सभा चाहते थे, जिसमें आधे सदस्य मौजूदा सांसद होते। इससे वर्तमान सत्ताधारी तबकों को एक निर्णायक स्थान मिल जाता।

लेकिन जनमत संग्रह का नतीजा वामपंथी ताकतों की मांग के मुताबिक आया। पिछले साल शुरू होकर इस साल मार्च तक चले जोरदार जन आंदोलन से सारा देश अस्त- व्यस्त हो गया था। उस दौरान हुई हिंसा में 34 लोगों की जान गई और चार सौ से ज्यादा लोग स्थायी रूप से विकलांग हो गए थे। उसके बाद जाकर राष्ट्रपति सिबेस्टियन पिनेरा की सरकार नए संविधान के लिए जनमत संग्रह कराने पर राजी हुई थी। जनमत संग्रह में सत्तर फीसदी से से ज्यादा लोगों ने नए संविधान और संपूर्ण रूप से नई संविधान सभा के पक्ष में मतदान किया।
 
चिली का इतिहास ऐसा है कि वहां की घटनाओं में अंतरराष्ट्रीय दिलचस्पी रहती है। 1970 में वहां सोशलिस्ट नेता सल्वादोर अलेंदे प्रधानमंत्री चुने गए थे।

उन्होंने देश में समाजवादी नीतियों पर तेजी से अमल किया। उससे नाराज धनी-मानी तबकों के समर्थन से तब सेना ने उनका तख्ता पलट दिया। आरोप है कि इसमें अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की बड़ी भूमिका थी। तख्ता पलटने वाले अगस्तो पिनोशे की सैनिक तानाशाही सत्रह साल तक चली।

ये दौर मानवाधिकारों के घोर हनन के साथ-साथ नव उदारवादी नीतियों पर तेजी से अमल के लिए भी याद किया जाता है। उसी समय वर्तमान संविधान लागू किया गया था, जो पिछले एक दशक से जनता के आक्रोश का निशाना बना हुआ था। अब आखिरकार उसे बदलने का रास्ता साफ हो गया है।

पिछले हफ्ते दक्षिण अमेरिकी देश बोलिविया में सोशलिस्ट पार्टी की बड़ी जीत हुई थी। पिछले साल तख्ता पलट से सत्ता से बाहर हुई पूर्व राष्ट्रपति इवो मोरालेस की मूवमेंट टूवार्ड्स सोशलिज्म पार्टी फिर से वहां सत्ता में लौट आई है।

 

News Desk

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