Telangana सरकार का ‘हरित विकास’ झूठ! 400 एकड़ जंगल की निर्मम हत्या, आदिवासियों के आंसुओं पर बनी कंक्रीट की इमारतें?
Telangana के जंगलों में इन दिनों जो कुछ हो रहा है, उसे सुनकर कोई भी सोचने पर मजबूर हो जाएगा—क्या वाकई यही है न्यू इंडिया का “हरित विकास”? एक ओर जहां पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए पेड़ लगा रही है, वहीं तेलंगाना सरकार ने 400 एकड़ से अधिक वन भूमि पर खड़े हजारों पेड़ों को बेरहमी से काट डाला। यह कोई सामान्य खबर नहीं है—यह एक पर्यावरणीय नरसंहार की कहानी है, जिसे “विकास” के नाम पर सरकारी मुहर लगा दी गई है।
क्या वाकई थी “परियोजना” की जरूरत? या है कोई गहरा षड्यंत्र?
सरकारी बयानों के अनुसार, यह जमीन एक “महत्वाकांक्षी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट” के लिए चाहिए थी। लेकिन कुछ सवाल जो हर नागरिक को पूछने चाहिए:
- क्या पर्यावरणीय अध्ययन (EIA) रिपोर्ट सार्वजनिक की गई? नहीं!
- क्या आदिवासी समुदायों और स्थानीय ग्रामीणों से सहमति ली गई? नहीं!
- क्या वैकल्पिक भूमि उपलब्ध नहीं थी? थी, लेकिन जंगल सस्ता पड़ता है!
यह साफ दिखता है कि यहां “विकास” नहीं, बल्कि बिल्डर-नेता गठजोड़ का खेल चल रहा है।
क्या है इस जंगल की अहमियत? सिर्फ पेड़ नहीं, एक पूरी सभ्यता मिटाई जा रही है!
- शताब्दी पुराने पेड़ों का सफाया:
- कटे गए पेड़ों में बरगद, नीम, सागौन जैसे विशालकाय वृक्ष शामिल थे, जो 50-100 साल से भी पुराने थे।
- एक पेड़ अपने जीवनकाल में लाखों टन ऑक्सीजन देता है—क्या सरकार इसे “कंक्रीट की इमारतों” से बदल पाएगी?
- आदिवासियों का जीवन तबाह:
- इस जंगल पर गोंड और कोया आदिवासी समुदाय निर्भर थे। उनके पारंपरिक औषधीय पौधे, जल स्रोत और पूजा स्थल सब नष्ट कर दिए गए।
- सरकार ने वन अधिकार अधिनियम, 2006 को पूरी तरह नजरअंदाज किया, जो आदिवासियों को जंगल पर अधिकार देता है।
- वन्यजीवों पर संकट:
- यह क्षेत्र तेंदुए, लंगूर, सैकड़ों प्रकार के पक्षियों का घर था। अब वे शहरों की ओर भाग रहे हैं, जिससे मानव-जानवर संघर्ष बढ़ेगा।
सरकारी झूठ का पर्दाफाश: “प्रतिपूरक वनीकरण” या सिर्फ दिखावा?
सरकार का दावा: “हम दूसरी जगह नए पेड़ लगाएंगे।”
लेकिन हकीकत?
- पौधरोपण सिर्फ कागजों पर: 2019-2023 के बीच तेलंगाना में केवल 30% पौधे ही जीवित पाए गए। बाकी फंड खाने का जरिया बन गए।
- नए पेड़ पुरानों की जगह नहीं ले सकते: एक 50 साल पुराना पेड़ रोजाना 5-10 लोगों की ऑक्सीजन पूरी करता है। एक नन्हा पौधा? कम से कम 20 साल लगेंगे!
- भूमि अधिग्रहण में धांधली: जिन जगहों पर नए पेड़ लगाए जा रहे हैं, वहां पहले से ही जंगल थे! यानी एक जंगल काटकर दूसरे का नाम बदल दिया गया।
जनता का गुस्सा: “हमारे जंगल छीनकर किसका विकास हो रहा है?”
- आदिवासियों का विरोध: ग्राम सभाओं ने धरना-प्रदर्शन किए, लेकिन पुलिस ने लाठीचार्ज और गिरफ्तारियां कीं।
- एनजीओ और पर्यावरणविदों की चेतावनी: “अगर यही चलता रहा, तो तेलंगाना में पानी के लिए त्राहि-त्राहि होगी।“
- सोशल मीडिया पर तूफान: #SaveTelanganaForests ट्रेंड कर रहा है, लेकिन मीडिया और सरकार दोनों चुप!
भविष्य की डरावनी तस्वीर: क्या होगा अगर ऐसा ही चलता रहा?
- जल संकट गहराएगा: जंगल बारिश को नियंत्रित करते हैं। इनके कटने से सूखा और बाढ़ दोनों बढ़ेंगे।
- ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगी: तेलंगाना पहले ही 40-45°C तापमान झेल रहा है। अगले 5 साल में यह 50°C को छू सकता है!
- आदिवासी संस्कृति खत्म हो जाएगी: जंगल उनकी भाषा, दवाएं और पहचान हैं। इनके बिना वे शहरों की गंदी बस्तियों में मजदूर बन जाएंगे।
क्या करें? अब भी वक्त है आवाज उठाने का!
- जनता को जागना होगा: सरकार तभी रुकेगी जब मीडिया दबाव बनेगा।
- कानूनी लड़ाई लड़ें: पर्यावरणविदों को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए।
- सोशल मीडिया पर ट्रेंड कराएं: #StopTelanganaDeforestation जैसे हैशटैग से दबाव बनाएं।
विकास की कीमत पर्यावरण से नहीं चुकाई जा सकती!
अगर आज हम चुप रहे, तो कल हमारे बच्चे ऑक्सीजन मास्क लगाकर स्कूल जाएंगे। “विकास” का मतलब सिर्फ शॉपिंग मॉल और हाइवे नहीं, बल्कि साफ हवा, पानी और हरियाली भी होना चाहिए। तेलंगाना सरकार को यह समझना होगा—“जंगल नहीं, तो भविष्य नहीं!”