Happy Married Life Secret: अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय कैसे रखे?
Happy Married Life Secret: आज कहीं किसी विवाहिता ने दुःखी होकर आत्महत्या कर ली या किसी विवाहिता ने नींद की गोलियां खाकर चिरनिद्रा का वरण कर लिया । कहीं किसी नव – वधू को दहेज के लोभियों का शिकार होना पड़ा आदि समाचारों से आए दिन दैनिक के समाचार पत्रों के कालम भरे होते हैं ।
पास – पड़ौस में बैठे तो यह चर्चा सुनाई पड़ती है कि किसी ने अपनी विवाहिता को छोड़ दिया या कोई विवाहिता पति के व्यवहार से तंग आकर मायके में आ बैठी है । कोई नारी पति के हाथों यातनायें भुगतती हुई नारकीय जीवन जीने के लिए विवश है तो कोई पत्नी से संत्रस्त पति किसी अन्य स्त्री से अभिसार किए बैठा है।
स्वच्छन्द स्वतंत्र जीवन
अपने चारों ओर गृहस्थियों – की हाहाकार करते देख नई पीढ़ी के नवयुवक नवयुवतियाँ वैवाहिक जीवन पर ही प्रश्न चिह्न लगाने लगे हैं । वे सोचते हैं कौन ऐसे झमेले में फँसे | स्वच्छन्द स्वतंत्र जीवन छोड़कर काहे मुसीबत को गले लगाया जाए । विवाह जैसी पवित्र संस्था आज दुःखों का धाम बनी हुई है।
आज के इस वैज्ञानिक युग में जब कि मानव चन्द्रमा पर बसने के स्वप्न ले रहा है । धरती पर निराशा और दुःख के बादल उमड़ते घुमड़ते दिखाई पड़ रहे हैं । मानव समाज पथभ्रष्ट होकर हाथों विनाश के बीच पीस रहा है। स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक है । एक ओर अपने यह ही सुख – सुविधाओं के अम्बार और दूसरी और अपने ही हाथों चरक का निर्माण ।परमात्मा ने इस सृष्टि का सर्वोत्तम सुख मानव जन्म के लिए ही सुरक्षित रखा है ।
मानव जीवन की तीन अवस्थाएँ हैं – शैशव , यौवन और बुढ़ापा | शैशव तो जीवन का प्रारम्भ है जब मनुष्य कुछ न कुछ सीखता हुआ ज्ञान का आंचल पकड़कर क्रमशः अज्ञान , अन्धकार से प्रकाश की ओर बढ़ता है । वृद्धावस्था तो जीवन की सांझ है जब जीवन का प्रकाश धूमिल पड़ने लगता है अतः यौवन ही वह स्वर्णिम काल है जब मनुष्य संसार के सुखों का उपभोग कर धरती पर निर्माण के बीज बोता है । यौवन की सार्थकता है विवाहित जीवन में.
एक दूसरे के बिना दोनों का ही जीवन अधूरा
संसार का सारा सुख विधाता ने स्नेही दम्पति के आंचल में भर दिया है । स्वर्गे अगर कहीं है तो वह विवाहित जीवन के प्रागण में ही उतरता है मनुष्य जीवन का पथ इतना कण्टकाकीर्ण और समस्याओं से घिरा हुआ है कि न अकेला पुरुष न अकेली स्त्री इस जीवन यात्रा की निर्बाध पार कर लेने में सक्षम है । जीवन की नैया को नर और क नारी मिलकर ही खे सकते हैं.
एक दूसरे के बिना दोनों का ही जीवन अधूरा है । अतः दोनों को मिलकर साथ – साथ आगे बढ़ते हुए एक दूसरे के उत्तरदायित्व को निभाने के लिए वचनबद्ध होने का नाम ही दिवा है । हमारे पूर्वजों ने मनुष्य जीवन को पल्लवित पुणित व आकर्षक बनाने के लिए ही विवाह की व्यवस्था प्रारम्भ की थी।
इससे बढ़कर सुख से जीने का सुन्दर उपाय दूसरा हो ही नहीं सकता । इसका कोई विकल्प ही नहीं है । ‘ सुखमय जीवन की सर्वोत्तम प्रणाली वैवाहिक जीवन को सारे विश्व के धर्म एवं संस्कृतियां अंगीकार करती हैं । किन्तु कितने दु : ख और आश्चर्य का विषय है कि जो व्यवस्था समाज में सुख और शांति को ” बढ़ाने की दृष्टि से प्रारम्भ की गई थी वहीं ” व्यवस्था दुःख और अशांति को जन्म देने का कारण बने । आज चारों ओर गृहस्थ जीवन नरक धाम के रूप में दिखलाई पड़ रहे हैं।
धरती की गोद में सुख भरने वाली मशीनरी-Happy Married Life Secret
जहाँ आसू है निराशा है , है , आक्रोश है विद्रोह है । वेदना में घुल – घुलकर जीवन ढाये जा रहे हैं । घर से इस दारुण वातावरण में नई पीढ़ी का निर्माण या नए जीवन का सौरभ जो कि विवाह का मुख्य उद्देश्य था कहीं तिरोहित हो गया है । लड़ते हुए माता – पिता के घरों में लड़का – लड़की ही जन्म ले रहे हैं सपत्र -और सुपुत्रियों का अभाव सा हो गया है । ” धरती की गोद में सुख भरने वाली मशीनरी को ही जंग लग रहा है । परिवारों की यही अशांति विश्व में हिंसा और युद्ध वातावरण को जन्म देने का कारण बन रही है । आइए हम वैवाहिक ” सुखमय न हो पाने के दृष्टिपात करें । विवाहित जीवन के सुखमय न होने का पहला कारण आज के युग में धन को ही सर्वोपरि महत्व दिया जाना है । शास्त्रों में मनुष्य के लिए पुरुषार्थ बताये हैं धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष।
आज हम येन केन प्रकारे धन कोल्ही – सब कुछ मान बैठे हैं । अवश्य है पर वह साधन कोटि कर साध्य कोटि में आ जाए तो फिर सुख के स्थान पर दुःख का ही कारण बन जाता है । विवाह के लिए जब वर – वधू होता है तो पहली दृष्टि धन पर ही है लड़की वाले धनी वर के पास ही जाते हैं तो लड़के वाले अधिक से अधिक बंधन देने की क्षमता वाले परिवार की लड़की चाहते हैं यहीं से वैवाहिक जीवन का मूल्यांकन धन की तुला पर लगता है।
सौभाग्य का मापदण्ड
विवाह में सब की दृष्टि वैवाहिक धूमधाम और लेन – देन पर केन्द्रित होती है । लड़की के घर से आए हुए सामान को परखन के लिए सम्बन्धी उत्सुक से जान हते हैं और फिर शुरू होता है आलोचना ‘ टीका – टिप्पणी हास्य और व्यग्य का दौर । इन्हीं घटिया वैचारिक पृष्ठभूमि पर वैवाहिक ” जीवन का श्री गणेश होता है । लड़की वर द्वारा दिए आभूषण व उस के घर के वैभव को ही अपने सौभाग्य का मापदण्ड मानती है । यही वह राह की छाया है . जिसने हमारे वैवाहिक जीवन को स्पर्द्धा व असंतोष से भर दिया है । जब तक शिक्षित नवयुवक व नवयुवतियां चेतनः की अपेक्षा जड चीजों को ही महत्त्व देती रहेंगी तब तक सुख की कल्पना , मृग – मरीचिका मात्र ही रहेगी सच्चरित्रता से ऊपर भौतिकता को महत्व देना हमारे वैचारिक स्तर की निम्नता का प्रतीक है ।
विवाह के पश्चात् भी दम्पत्ति अपने घर को आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित करने में जितने तत्पर दिखाई देते हैं काश ! उसका चतुर्थांशि भी जीवन को सूख का साधन से निकल को चुनाव जाती खोज में जुट तुलने भी समृद्ध करने में दिया जाए तो बहुत से मन मुद्राव के कारण स्वयं ही समाप्त हो जाए । परमात्मा ने इस सृष्टि को दो रूपों विभाजित किया है – जड़ और चेतन गई हैं
पर जब चेतन की उपेक्षा कर जड़ जड़ वस्तुएं चेतन के प्रयोग के लिए बनाई को अधिक महत्व दिया जाता है तो समझो नरक का द्वार खुलता जा रहा चेतन के गुण कर्म स्वभाव ही उसके भूषण एक दूसरे के गुण कर्म स्वभाव को भली प्रकार परखकर ही आपस में जीवन की की शपथ चाहिए । विवाह की मानी जाती जानकर स्वयं है । एक शपथ लेना साथी बनाने के लिए। इसीलिए प्राचीन काल में उत्तम प्रथा स्वयंवर विवाह थी कन्या पुरुष के गुणों को उस ओर आकृष्ट हो उसका वरण करती थी तभी वह वर कहलाता था । एक – दूसरे होकर विवाह के गुणों के प्रति आकृष्ट सूत्र में बंधना वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए अति आवश्यक है । धन या रूप से आकृष्ट होकर किया गया विवाह कालान्तर में अपना आकर्षण खो बैठता है
मंत्रों का पाठ
आज के वैवाहिक जीवन के दुःखमय 2 होने का दूसरा कारण स्वार्थ- परता अर्थात् त्याग की भावना का अभाव । पुरुष अपने अहम् को प्राथमिकता देता है- और स्त्री के अहम् को स्वीकार करना तो दूर उसके अहम को कुचलने में पुरुषत्व की सार्थकता समझता परिस्थिति जीवन को नरकमय बना देती है । विवाह संस्कार के मंत्रों में वैवाहिक ए जीवन को सुखमय बनाने के लिए बड़ोग सुन्दर नुस्खे बतलाए गए हैं किन्तु आजकूल तो राम के नाम पर मंत्रों का पाठ भर कर लिया जाता है उसमें छिपे गूढ़ उपदेशों को हृदयंगम नहीं किया जाता
विवाह संस्कार के मन्त्रों में पहला मन्त्र वर वधू दोनों मिलकर पढ़ते हैं वह इस प्रकार है . समजन्तु विश्वे हृदयानि नौ सं मातरिश्वा सं धाता समुदेष्ट्री क दधातुतौ ।। ( ऋ ० १०/८५/४७ ) की तरह एक जन्म दें नौ अर्थात् हम दोनों के हृदय जल क दूसरे से मिलकर शांति को अपनी अस्तित्व एक दूसरे में विलीन कर लें जिस प्रकार वायु सब को सुखी करता है उसी तरह हमारा आचरण एक दूसरे को सुखी करे । हम सुखों को धारण करने के लिए नवजीवन को अंगीकार करते हैं ।
नए जीवन का निर्माण-Married Life Secret
वर कहता है धौरहं पृथ्वी त्व जैसे पृथ्वी और सूर्य मिलकर सारे संसार को सुखों से भर रहे हैं हम भी एक दूसरे 5 के देवताओं की भावनाओं को अंगीकार करे जीवन को सुखी बना सकते हैं । दोनों 1 मिलकर कहते हैं मम व्रते ते हृदयं दधामि मम चित्तं अनु चित्तं ते मम बाचमेकमना जुप्रैस्व प्रजापतिस्त्वा बिनियुनक्तु मह्यम् । हम दोनों का चिन्तन एक हो हम दोनों की वाणियाँ हमारे मनों को परस्पर मिलाने का कार्य करें तोड़ने का नहीं । प्रजापति परमात्मा ने हम दोनों को एक दूसरे के लिए नियुक्त किया है ।आओ हम दोनों मिलकर सूखी और नए जीवन का निर्माण करें । सप्तपदी में सातवाँ और मिलकर उठाते हुए वर – वधू को सखे कहकर सम्बोधित करता है मित्रता ही एक ऐसा सम्बन्ध है जिसमें न कोई छोटा भी न कोई बड़ा । रथ के दोनों पहिए समान दिशा में अग्रसर होंगे जीवन के अनुपस सुखाने के लिए।
आज से वे अपने लिए नहीं दूसरे के लिए जिएंगे । ” एक दूसरे की मिठान खिलाने के पीछे भी यही भावना परिलक्षित दूसरे के लिए जीने में ही मानव सार्थकता है । वैसे तो सन्तानोत्पत्ति के लिए पशु – पक्षी भी कुछ समय साथ रहते हैं । किन्तु सनुष्य जीवन भर के लिए एक दूसरे के हाथ अपने को सौंप देता है ।
हमारी प्राचीन संस्कृति की सबसे · अमूल्य धरोहर है म्यागमण जीवन और यहां परिवार को समाज का राष्ट्र क सुखमय बनाने का अचूक उपाय विवाहित जीवन के सर्वोच्च आदर्श बिन्दु होने मात्र से राम और सीता युगों – युग से हमारे मन प्राण में बसे हुए हैं उनकी अलौकिकता ने उन्हें इतना लोकप्रिय नहीं बनाया है वरन् एक दूसरे के प्रति उनके अनन्य प्रेम ने भारतवासियों के पोर पोर में उन्हें बसा दिया है । वनवास के उन घोर कठिन समय में भी जहाँ कि धन सम्पदा • का सर्वथा अभाव था प्रेम की डोर में बंधे । वे कितना सुखमय जीवन बिता रहे थे ! • जिस प्रकार मिठाई का प्राण शक्कर की वह चाशनी है जो भिन्न – भिन्न वस्तुओं को जोड़कर उसे सुन्दर आकार एवं स्वाद प्रदान करती है उसी प्रकार पति – पत्नी कें हृदय का स्नेह ही उन्हें एक दूसरे के लिए उत्सर्ग करने की प्रेरणा प्रदान कर जीवन को सुखों से भर देता है । रा म जिस ने स्वप्न में भी पर नारों के दर्शन नहीं किए सीता जिन्होंने स्वप्ने में भी पर पुरुष को ध्यान नहीं किया ।
मधुपर्क की विधि
यह केवल राम और सीता की कोरी प्रशंसात्मक विरुदावली नहीं है , वैवाहिक जीवन के भवन की दृढ़ता के लिए आवश्यक नींव की तरह ” अटल नुस्खा ही है । विवाह संस्कार में सर्वप्रथम मधुपर्क की विधि केवल एक दिन की मधू यामिनी/सुहागरात/ हनीमून मनाने का ही संकेत नहीं करतीं अपितु जीवन को मिठास से भर लेने का दिव्य संकल्ला करने की ओर • प्रेरित करती है ” मधु वाती ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः माध्वीनः सन्त्वौषधीः । भु मधु नक्तमुतोयसो मधुमत्यार्थिव रजः मधु औरस्तु नः ि मधुमालो बनस्पतिर्मधुमां अस्तु सूर्यः माध्वीगावो भवन्तु भवन्तु नः । हमारे व्यवहार और वाणी में इतनी मिठास है कि उसके सामने संसार का सारा दिव्यताएँ फीकी पड़ जायें ।
बहती हुई पवन चमकता हुआ चन्द्र और सूर्य हरियाली की चादर ओढ़े धरती जला से पूरित नदियाँ , नीलाम्बर से झरती फुहारें यहीं सब तो जीवन में मधुमास भरते हैं तो आओ इन सबकी विशेषताओं को हर्म समेट लें और अपने वैवाहिक जीवन को मधुमय बनाएँ कितनी उदात्त कल्पना है ईश्वरीय आदेश वेद मंत्रों की । कई लोग वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने का सारा उत्तर दायित्व स्त्री के ऊपर डालकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं तो कई लोग पुरुषों को ही सुखमय जीवन का एकमात्र आधार बतलाते हैं
समान उत्तरदायित्व
किन्तु वेद माता ने दोनों पर ही समान उत्तरदायित्व डाला है तभी तो मनु महाराज कहते हैं सन्तुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्ता भार्या तथैव च तरिमन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवं ।। जिस कुल में पति से पत्नी और पत्नी से पति संतुष्ट होकर जीवन यापन करते हैं उसी कूल में सुख और शांति स्थिर रहती है यही कल्याण का पथ पति और पत्नी दोनों ही एक दूसरे का अप्रिय आचरण कभी न करें यही सुखमय जीवन की कुंजी है ।
इस तरह वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के मुख्य तीन नुस्खों पर हमने विचार किया ।पहला अपने में अधिक गुणों का महत्व, परस्पर मीठी वाणी और मित्रता का व्यवहार और एक दूसरे पर अनन्य प्रेम और अटूट विश्वास । प्रभु कृपा करें कि समाज इन गुणों को अपने वैवाहिक जीवन में धारण कर सुखमय जीवन की ओर अग्रसर हो ।
Mental health: घातक हो सकता है आपका मानसिक तनाव (Stress), Depression का सामना