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Kashi Vishwanath-Gyanvapi Mosque Case: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा कदम, एएसआई जांच की मांग पर नोटिस जारी

Kashi Vishwanath-Gyanvapi Mosque Case ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर के विवाद ने एक बार फिर राष्ट्रीय सुर्खियों में जगह बना ली है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बड़ा कदम उठाते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति को नोटिस जारी किया। यह नोटिस कुछ हिंदू याचिकाकर्ताओं की उस याचिका पर जारी किया गया है जिसमें मस्जिद के ‘वजूखाना’ क्षेत्र की एएसआई जांच की मांग की गई है।

क्या है मामला?

यह विवाद तब चर्चा में आया जब 16 मई 2022 को हिंदू याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाना क्षेत्र में एक ‘शिवलिंग’ पाया गया है। हालांकि, अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति ने इस दावे को खारिज करते हुए इसे एक फव्वारा बताया। इसके बाद मामले ने कानूनी मोड़ लिया और अब सुप्रीम कोर्ट ने इस विवादित क्षेत्र की जांच की मांग पर विचार शुरू कर दिया है।

वकीलों की दलीलें

हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने मीडिया से बातचीत में बताया कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में एक सीमित अंतरिम आवेदन (IA) के तहत लिस्ट किया गया था। उन्होंने कहा, “हमने सील किए गए क्षेत्र की एएसआई जांच की मांग की है ताकि सच्चाई सामने आ सके। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर नोटिस जारी कर अंजुमन इंतेजामिया को दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।”

अगले कदम

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 17 दिसंबर 2024 को तय की है। तब तक अंजुमन इंतेजामिया और अन्य संबंधित पक्षों को अपना जवाब दाखिल करना होगा। यह मामला अब कानूनी और धार्मिक दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील हो गया है, जहां दोनों पक्ष अपने-अपने तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं।

एएसआई जांच का महत्व

इस मामले में एएसआई की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। एएसआई का मुख्य उद्देश्य पुरातात्विक जांच के जरिए विवादित स्थल की ऐतिहासिक सच्चाई को उजागर करना है। यदि ‘शिवलिंग’ होने के दावे की पुष्टि होती है, तो इसका प्रभाव न केवल इस मामले पर, बल्कि पूरे देश की धार्मिक संरचना और राजनीति पर भी पड़ सकता है।

राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

ज्ञानवापी मामले ने धार्मिक विवादों को फिर से हवा दी है। यह मामला सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि राजनीतिक भी बन गया है। कई राजनीतिक दल इस मुद्दे को अपने-अपने एजेंडे के अनुसार पेश कर रहे हैं। हिंदू संगठनों का दावा है कि यह स्थल काशी विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा था, जिसे मुगल काल में तोड़कर मस्जिद में तब्दील किया गया। वहीं, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह मस्जिद लंबे समय से उनकी धार्मिक संपत्ति रही है।

इतिहास की परतें

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास सदियों पुराना है। काशी विश्वनाथ मंदिर को हिंदू धर्म में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक के रूप में पूजा जाता है। दूसरी ओर, ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट औरंगज़ेब के शासनकाल में हुआ था। यह विवाद इसी इतिहास से उपजा है और समय-समय पर इसे लेकर अलग-अलग दावे सामने आते रहे हैं।

स्थानीय लोगों की राय

वाराणसी के स्थानीय निवासियों के बीच इस मामले को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं हैं। कुछ का मानना है कि इस विवाद को सुलझाने के लिए एएसआई जांच एक सही कदम है, जबकि अन्य इसे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला मानते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का रुख

सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस मामले को संवेदनशील मानते हुए दोनों पक्षों को नोटिस जारी किया है और मामले की सुनवाई 17 दिसंबर को तय की है। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम विवाद को हल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है।

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