महिंदा राजपक्षे ने श्रीलंका के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण की
श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने रविवार को देश के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण की। श्रीलंका के ऐतिहासिक बुद्ध मंदिर में महिंदा राजपक्षे ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। श्रीलंका में इस साल आम चुनाव में महिंदा राजपक्षे की पार्टी ने शानदार जीत हासिल की।
महिंदा राजपक्षे ने नवीं लोकसभा के लिए प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, उनके छोटे भाई और राष्ट्रपति गोतब्य राजपक्षे ने उत्तरी कोलंबो के एक उपनगर केलानिया में स्थित पवित्र राजमहा विहारया में महिंदा राजपक्षे को शपथ दिलाई। महिंदा राजपक्षे, श्रीलंका पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष हैं और उनकी पार्टी को 74 साल हो चुके हैं।
I am humbled by the opportunity given to me to serve my people again. The trust #SriLankans afford me, inspires me to continue serving my nation. President @GotabayaR, the new @PodujanaParty govt. & I will ensure that #lka embarks on a progressive journey during our tenure. pic.twitter.com/We5KWAkGfL
— Mahinda Rajapaksa (@PresRajapaksa) August 9, 2020
इस साल जुलाई महिंदा राजपक्षे ने अपने संसदीय राजनीति के 50 साल पूरे कर लिए। साल 1970 में 24 साल की उम्र में ही महिंदा राजपक्षे सांसद के तौर पर चुन लिए गए थे। तब से लेकर अबतक महिंदा दो बार राष्ट्रपति और तीन बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री बन चुके हैं।
महिंदा राजपक्षे की पार्टी को लोकसभा में इस बार आम चुनाव में दो तिहाई सीट मिली हैं। महिंदा राजपक्षे को इस बार पांच लाख से भी ज्यादा मतदान मिले, ये श्रीलंका के इतिहास में अब तक के सबसे ज्यादा रिकॉर्ड तो़ड़ वोट हैं। श्रीलंका पीपुल्स पार्टी ने 145 संसदीय क्षेत्र जीते और संसद में कुल 225 सीट है।
सोमवार यानि कि आज महिंदा राजपक्षे अपनी कैबिनेट, राज्य और डिप्टी मंत्रियों का शपथ ग्रहण समारोह करा सकते हैं। राजपक्षे परिवार, जिसमें श्रीलंका पीपुल्स पार्टी के फाउंडर और इसके राष्ट्रीय संगठनकर्ता 69 वर्षीय बासिल राजपक्षे ने दो दशक यानि कि 20 सालों तक श्रीलंका की सत्ता संभाली है।
महिंदा राजपक्षे इससे पहले 2005*-2015 यानि कि एक दशक तक श्रीलंका के राष्ट्रपति पद पर आसीन रहे। अब गोतब्य राजपक्षे ने एसएलपीपी पार्टी के टिकट से राष्ट्रपति का चुनाव जीता है। आम चुनाव में महिंदा राजपक्षे को 150 संसदीय सीट मिली हैं, जिससे अब उनकी सरकार किसी भी तरह का कोई भी संवैधानिक बदलाव कर सकती है।
कुछ ऐसे कार्यकर्ता है जो पहले से ही देश में असंतोष और आलोचना के लिए कम हो रही जगह से भयभीत थे, इस तरह के कदम से डर था कि सत्तावाद हो सकता है।
इस बार के चुनाव में सबसे खराब और हैरान कर देने वाली बात यह रही कि देश की सबसे पुरानी पार्टी यूनाइटेड नेशनल पार्टी केवल एक ही सीट जीत पाई।