Muzaffarnagar: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल होना – वरदान या 1 अभिशाप?
Muzaffarnagar (मुजफ्फरनगर) उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक शहर, जब 9 जून 2015 को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में शामिल हुआ, तो इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा गया था। यह उम्मीद जताई गई थी कि शहर में विकास के नए अवसर खुलेंगे, बेहतर बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध होंगी और शहरवासियों का जीवन स्तर सुधरेगा। लेकिन अब जब इसके 10 साल पूरे होने जा रहे हैं, तो यह सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का हिस्सा बनने से मुजफ्फरनगर के लिए कोई असल बदलाव आया, या फिर यह सिर्फ एक सपना साबित हुआ? क्या एनसीआर का हिस्सा बनकर मुजफ्फरनगर को वरदान मिला या फिर अभिशाप?
नगर पालिका Muzaffarnagar की स्थिति – सबसे बुरी हालत में
शहर में बुनियादी सुविधाओं की सबसे बड़ी समस्या नगर पालिका की लापरवाही से जुड़ी है। नगर पालिका मुजफ्फरनगर ने शहर में सफाई, सड़कों की मरम्मत और अन्य बुनियादी ढांचों के निर्माण के लिए कई योजनाएं शुरू कीं, लेकिन वास्तविक स्थिति बहुत ही अलग है। मुजफ्फरनगर की सड़कों की हालत हर किसी के सामने है – गंदगी के ढेर, टूट-फूट से भरी सड़कों, और अतिक्रमण की वजह से लोग अक्सर परेशान रहते हैं।
नगर पालिका चेयरपर्सन ने कभी भी शहर के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा करने का समय नहीं निकाला। इसका परिणाम यह हुआ कि शहर की ज़्यादातर समस्याएं जस की तस बनी रही। लोहिया बाजार, महावीर चौक, मीनाक्षी चौक, शिव चौक, मालवीय चौक, खादरवाला, लद्दावाला जैसी मुख्य सड़कों पर अतिक्रमण और जाम की समस्या रोज़मर्रा की बात बन चुकी है। इन क्षेत्रों में सफाई की स्थिति बदतर हो चुकी है और जिन सरकारी अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई है, वे अपनी जिम्मेदारियों से भागते नजर आते हैं।
कभी-कभी लगता है जैसे नगर पालिका ने शहरवासियों के मुद्दों पर कोई ध्यान ही नहीं दिया। गंदगी, टूट-फूट और अतिक्रमण को देखते हुए लगता है कि क्या वास्तव में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल होना मुजफ्फरनगर के लिए फायदेमंद रहा है?
सड़कों पर अतिक्रमण और वाहनों का भारी दबाव
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल होने के बाद, शहर के यातायात में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। पहले से ही जाम की समस्या थी, लेकिन अब इसमें और भी बढ़ोतरी हो गई है। ई-रिक्शा और अत्यधिक संख्या में बढ़े वाहनों के कारण शहर की सड़कों पर जाम की समस्या और भी गंभीर हो गई है।
ई-रिक्शा के लिए कोई तय मार्ग (रूट) नहीं हैं, जिसके कारण मुजफ्फरनगर के प्रमुख बाजार क्षेत्रों जैसे लोहिया बाजार, ख़दरवाला, लद्दावाला, जानसठ पुल, अंसारी रोड, टिकैत चौक,विश्वकर्मा चौक आदि में अक्सर सड़कें ब्लॉक हो जाती हैं। इन क्षेत्रों में हर रोज़ जाम लगना एक सामान्य घटना बन चुकी है, जिससे शहरवासियों को बहुत अधिक असुविधा का सामना करना पड़ता है।
जैसे-जैसे शहर में ई-रिक्शा और अन्य वाहनों की संख्या बढ़ी है, वैसे-वैसे सड़कें ट्रैफिक की चपेट में आ गई हैं। कोई भी विनियमित मार्ग न होने के कारण, गाड़ी चालक, रिक्शा चालक, और पैदल चलने वाले लोग सभी सड़कों पर अराजकता का सामना करते हैं। ऐसी स्थिति में यह सवाल उठता है कि क्या नगरपालिका या प्रशासन ने इस समस्या के समाधान के लिए कोई ठोस कदम उठाए हैं?
साफ-सफाई के लिए कोई ठोस उपाय नहीं
शहर में सफाई की स्थिति और भी ज्यादा चिंताजनक हो चुकी है। सफाई व्यवस्था की कोई दिशा-निर्देश नहीं हैं। विभिन्न ठेकेदारों को कूड़ा उठाने का काम सौंपा गया था, लेकिन समय के साथ कूड़ा उठाने की प्रक्रिया सुसंगत नहीं हो पाई। कूड़े के ढेर, जहां-तहां पड़े रहते हैं, और नगर निगम द्वारा किसी भी क्षेत्र में सफाई कार्य नहीं किया जाता। शहर के मुख्य मार्गों पर कूड़ा पड़ा रहता है, और यह स्वच्छता अभियान पूरी तरह से विफल हो गया है।
कुछ समय पहले, कूड़ा उठाने के लिए ठेकेदारों को जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन जैसे ही ठेकेदार बदलते हैं, वैसे ही यह सिस्टम फिर से ठप हो जाता है। नगर निगम द्वारा शुरू किए गए स्वच्छता अभियान पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। आखिर क्यों शहर में सफाई की स्थिति पहले जैसी बनी हुई है?
वाहनों की पंजीकरण और प्रदूषण नियंत्रण से जुड़ी समस्याएं
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल होने के बाद, शहर के वाहनों के लिए भी नई शर्तें लागू की गईं। डीजल और पेट्रोल वाहनों के लिए पंजीकरण की उम्र सीमा तय की गई। पेट्रोल वाहनों के लिए यह सीमा 15 साल और डीजल वाहनों के लिए 10 साल रखी गई। इस नियम के चलते, कई वाहन मालिकों को अपनी पुरानी गाड़ी बेचनी पड़ी और उन्हें नई गाड़ी खरीदने के लिए मजबूर किया गया। यह उन लोगों के लिए आर्थिक बोझ साबित हो रहा है, जिनकी गाड़ियां अच्छी स्थिति में थीं, लेकिन उन्हें प्रदूषण नियंत्रण के कारण इन्हें त्यागने पर मजबूर होना पड़ा।
इसके अलावा, पेट्रोल और डीजल की कीमतें भी आसमान छू रही हैं, जिससे आम आदमी के लिए वाहन चलाना मूल्यवर्धन का कारण बन गया है। सड़कों पर गंदगी, वाहन पंजीकरण की सीमा, और प्रदूषण नियंत्रण के नियमों के चलते शहरवासियों की समस्याएं बढ़ रही हैं, जबकि प्रशासन इन समस्याओं के समाधान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा।
क्या एनसीआर में शामिल होना Muzaffarnagar के लिए वरदान साबित हुआ?
मुजफ्फरनगर का राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल होना केवल कागजों पर अच्छा कदम प्रतीत होता है। अगर हम सच्चाई से देखें, तो शहर के नागरिकों को कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। शहर की सफाई, यातायात, सड़कें, और प्रदूषण जैसी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं।
नगर पालिका की लापरवाही, यातायात की अव्यवस्थित स्थिति, और सफाई की खराब व्यवस्था ने इस उम्मीद को धरातल पर असफल कर दिया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल होने से शहर में कोई बदलाव आएगा। क्या यह बदलाव केवल शहरी विकास के नाम पर हुआ था? क्या सिर्फ सड़कों का चौड़ीकरण और अत्यधिक निर्माण कार्य ही शहर का विकास है, जबकि बुनियादी सुविधाओं की स्थिति जस की तस बनी रहती है?
नगर पालिका और प्रशासन से अपेक्षाएं
मुजफ्फरनगर के नागरिकों का आक्रोश प्रशासन और नगर पालिका के प्रति दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। शहरवासियों की अब यही प्रमुख मांग है कि नगर पालिका मुजफ्फरनगर को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और शहर की सफाई और यातायात के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए। नगर पालिका के चेयरपर्सन को अब शहर की समस्याओं का सकारात्मक समाधान निकालना चाहिए, न कि इन समस्याओं को नजरअंदाज करना चाहिए।
अगर नगरपालिका और प्रशासन नागरिकों की जरूरतों को प्राथमिकता देते हुए ठोस कदम उठाते हैं, तो मुजफ्फरनगर का भविष्य वास्तव में बेहतर हो सकता है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल होने के बाद, अगर नागरिकों के मुद्दों का समाधान नहीं किया जाता, तो यह सिर्फ एक सपना बनकर रह जाएगा।
संक्षेप में
Muzaffarnagar का राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल होना यदि नागरिकों की बुनियादी जरूरतों को नजरअंदाज करके किया गया, तो यह एक अभिशाप साबित होगा। वहीं, अगर प्रशासन ने सचमुच नागरिकों के कल्याण के लिए काम किया होता, तो यह एक वरदान बन सकता था।