दिल से

आज कहीं खो जाने को-जी चाहता है

“जी चाहता है”

आज कहीं खो जाने को “जी चाहता है|”

किसी पेड़ की छांव तले सो जाने को “जी चाहता है|”

जैसे नाचे मोर जंगल में,

देख घटाएं काली ,

सावन की पावन ऋतु में ,

भीग जाने को “जी चाहता है|”

रीझे थे कभी श्याम राधा पे ,

मिले यमुना के तीरे,

बंसी की फिर उसी धुन पे,

रम जाने को “जी चाहता है|”

कूके कोयल आज कदंब पे,

मौसम हुआ सुहाना,

उनकी झील सी आंखों में अब,

डूब जाने को “जी चाहता है|”

प्रेम ‘प्रकाश’ में अलौकिक,

यह मन मेरा हुआ प्रकाशित,

हुआ नहीं ऐसा पहले कभी,

खो गया है मन मेरा,

देखते ही उन्हें, उन्हीं का,

हो जाने को “जी चाहता है|”

रचनाकार-

Op Min |ओम प्रकाश गुप्ता

(सम्पर्क: 9907192095)

डॉ0 ओम प्रकाश गुप्ता

डॉ. ओम प्रकाश गुप्ता (संपर्क: 9907192095) एक प्रखर राष्ट्रवादी लेखक और समाज सेवक हैं, जो अपनी विद्रोही रचनाओं और समसामयिक विषयों पर तीक्ष्ण टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं। शांत स्वभाव के बावजूद, उनके लेखन में सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज और राष्ट्रहित की गहरी प्रतिबद्धता झलकती है। उनकी रचनाएँ न केवल सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाती हैं, बल्कि राष्ट्रहित और गौ माता जैसे सांस्कृतिक प्रतीकों की रक्षा के प्रति जागरूकता उत्पन्न करती हैं।

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