आज कहीं खो जाने को-जी चाहता है
“जी चाहता है”
आज कहीं खो जाने को “जी चाहता है|”
किसी पेड़ की छांव तले सो जाने को “जी चाहता है|”
जैसे नाचे मोर जंगल में,
देख घटाएं काली ,
सावन की पावन ऋतु में ,
भीग जाने को “जी चाहता है|”
रीझे थे कभी श्याम राधा पे ,
मिले यमुना के तीरे,
बंसी की फिर उसी धुन पे,
रम जाने को “जी चाहता है|”
कूके कोयल आज कदंब पे,
मौसम हुआ सुहाना,
उनकी झील सी आंखों में अब,
डूब जाने को “जी चाहता है|”
प्रेम ‘प्रकाश’ में अलौकिक,
यह मन मेरा हुआ प्रकाशित,
हुआ नहीं ऐसा पहले कभी,
खो गया है मन मेरा,
देखते ही उन्हें, उन्हीं का,
हो जाने को “जी चाहता है|”
रचनाकार-
ओम प्रकाश गुप्ता
(सम्पर्क: 9907192095)