भारतीय पक्ष ने जानबूझकर सामरिक रूप से महत्वपूर्ण डेपसांग के मुद्दे को नहीं उठाया
भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जारी तनाव को कम करने के लिए चार बार कॉर्प्स कमांडर स्तर की वार्ता हो चुकी है। इन वार्ताओं में भारत ने लद्दाख के डेपसांग में चीनी प्रवेश का मुद्दा नहीं उठाया है।
जबकि यह क्षेत्र अन्य गतिरोध वाले बिंदुओं की तुलना में रणनीतिक रूप से अधिक महत्वपूर्ण है। यहां चीनी सेना भारतीय सेना को गश्त करने से मना कर रही है।
इसने सुरक्षा विशेषज्ञों में चिंता पैदा कर दी है कि डेपसांग पर जारी भारतीय चुप्पी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र में एक नई स्थिति पैदा कर सकती है। जहां चीन ने प्रभावी ढंग से 18 किलोमीटर पश्चिम में अपने वास्तविक नियंत्रण क्षेत्र को स्थानांतरित कर दिया है।
यह भारत को दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) हवाई क्षेत्र के करीब स्थित महत्वपूर्ण हिस्से तक पहुंच से वंचित कर देगा और चीन को रणनीतिक डार्बूक-श्योक-डीबीओ (डीएसडीबीओ) सड़क के बहुत करीब ले आएगा।
उत्तरी सेना के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल (सेनानिवृत्त) डीएस हुड्डा ने कहा, ‘पैंगोंग झील की तुलना में डेपसांग हमारे लिए सामरिक और रणनीतिक रूप से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
यह भारत के लिए दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी के साथ-साथ काराकोरम क्षेत्र तक पहुंच के लिहाज से महत्वपूर्ण है। यहां से डीएसडीबीओ सड़क लगभग छह किलोमीटर दूर है। एलएसी में किसी भी तरह का बदलाव नुकसानदेह होगा।’
उन्होंने कहा, ‘एलएसी को पश्चिम की ओर धकेलने से, चीन को लगता है कि वह अपने पश्चिमी राजमार्ग को और सुरक्षित कर देगा जो शिनजियांग और तिब्बत के बीच की मुख्य कड़ी है।
वहीं सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि डेपसांग को अभी तक चीन के सामने इसलिए नहीं उठाया गया है क्योंकि यह गतिरोध का क्षेत्र नहीं है। वहीं एलएसी पर चार प्वाइंट पर गतिरोध है जहां से सेनाओं के पीछे हटने को लेकर चर्चा की जा रही है।
हालांकि सुरक्षा विशेषज्ञों के एक वर्ग का दावा है कि भारतीय पक्ष ने जानबूझकर अब तक सामरिक रूप से महत्वपूर्ण डेपसांग के मुद्दे को नहीं उठाया है क्योंकि वह चाहता है कि चीनी सैनिक पैंगोंग क्षेत्र से पीछे हट जाएं।
डेपसांग पर चुप्पी साधकर, अप्रैल के महीने तक पैंगोंग में जारी यथास्थिति बहाल करने के लिए चीनी पक्ष को प्रोत्साहित करने की उम्मीद की जा रही है। (Article from AU Website)