Myanmar में फंसा शिवेंद्र: दस लाख रुपये फिरौती और डरावने हालात की कहानी?
लखनऊ: Myanmar में फंसे कल्याणपुर निवासी शिवेंद्र सिंह की कहानी दर्द और संघर्ष का प्रतीक बन गई है। अपने परिवार से सैटेलाइट फोन के जरिए संपर्क करने वाले शिवेंद्र ने अपने लिए दस लाख रुपये की फिरौती का इंतजाम करने की गुहार लगाई है। शिवेंद्र के पिता, राजेंद्र सिंह, का कहना है कि उनका बेटा हर दिन चंद मिनटों के लिए ही फोन कर पाता है। हर बार उसकी आवाज में घबराहट और दर्द झलकता है। हाल ही में हुई बातचीत में शिवेंद्र ने बताया कि उसे वहां खाने के लिए केवल ब्रेड मिल रही है और किसी भी तरह का सहारा नहीं है।
कैसे हुआ शिवेंद्र का अपहरण?
शिवेंद्र की यह भयावह स्थिति तब शुरू हुई जब एक एजेंट ने उसे म्यांमार भेजने का झांसा दिया। बेहतर काम की उम्मीदों में म्यांमार पहुंचा शिवेंद्र, धोखे का शिकार हो गया। वहां पहुंचते ही एजेंट ने उसे अज्ञात समूहों के हवाले कर दिया। शिवेंद्र का पासपोर्ट जब्त कर लिया गया, जिससे उसकी आजादी पूरी तरह छीन ली गई।
राजेंद्र सिंह ने बताया कि उनका बेटा मांसाहारी भोजन नहीं खाता, लेकिन वहां केवल मांसाहार उपलब्ध है। जब उसने इसका विरोध किया, तो उसे धमकियां दी गईं और जेल में डालने की चेतावनी दी गई। शिवेंद्र की स्थिति किसी कैद से कम नहीं है। उसके आसपास सिर्फ सुरक्षा कर्मियों और हथियारबंद पहरेदारों का साया है।
परिवार पर बढ़ा संकट
इस मुश्किल समय में शिवेंद्र का परिवार गहरे सदमे में है। उसके पिता ने बताया कि शिवेंद्र का भाई, दीपेंद्र सिंह, आईटी सेक्टर में काम करता था और बेंगलुरु की एक प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी करता था। परिवार ने इस स्थिति का सामना करने के लिए हर संभव प्रयास किया, लेकिन अभी तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला है।
राजेंद्र सिंह ने बताया कि शिवेंद्र ने ऑस्ट्रेलिया में अपने कुछ दोस्तों से संपर्क किया, जिन्होंने उसे थाईलैंड और म्यांमार में भारतीय राजदूतों का नंबर दिया। वहां से निर्देश मिला कि पहले एक एफआईआर दर्ज कराएं और उसकी कॉपी भेजें, ताकि मदद मिल सके।
म्यांमार में भारतीयों की स्थिति: एक नज़र
शिवेंद्र की कहानी अकेली नहीं है। हाल ही में कई भारतीय नागरिकों के फंसने और उनसे जबरन काम करवाने या फिरौती मांगने की खबरें सामने आई हैं।
- अवैध नेटवर्क और धोखाधड़ी:
म्यांमार और उसके पड़ोसी देशों में काम दिलाने के नाम पर भारतीय युवाओं को फंसाने के मामले तेजी से बढ़े हैं। एजेंट्स बेहतर वेतन और सुविधाओं का लालच देकर भोले-भाले युवाओं को ऐसे खतरनाक इलाकों में भेज देते हैं, जहां उनका पासपोर्ट और पहचान पत्र जब्त कर लिया जाता है। - सुरक्षा एजेंसियों की भूमिका:
भारतीय सुरक्षा एजेंसियां ऐसे मामलों में तुरंत कार्रवाई करती हैं, लेकिन कई बार स्थानीय प्रशासन की सीमाओं के कारण बचाव कार्य में देरी हो जाती है। - पीड़ितों का संघर्ष:
शिवेंद्र जैसे पीड़ितों को न केवल अमानवीय परिस्थितियों में रहना पड़ता है, बल्कि मानसिक और शारीरिक यातनाओं का भी सामना करना पड़ता है।
सरकार और परिवार का संघर्ष
शिवेंद्र के परिवार ने सरकार और प्रशासन से बार-बार गुहार लगाई है। इस मामले में एफआईआर दर्ज करने और दूतावासों से संपर्क साधने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। हाल ही में विदेश मंत्रालय ने म्यांमार में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा को लेकर सतर्कता बढ़ाने की बात कही है।
परिवार ने स्थानीय सांसद और जिला प्रशासन से भी मदद मांगी है। क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने इस मामले को केंद्र सरकार के संज्ञान में लाने का वादा किया है।
क्या है समाधान का रास्ता?
म्यांमार जैसे देशों में फंसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।
- सरकार की पहल:
भारतीय सरकार को ऐसे मामलों में कार्रवाई के लिए एक त्वरित प्रतिक्रिया टीम बनानी चाहिए। - एजेंट्स पर कार्रवाई:
फर्जी एजेंट्स के खिलाफ सख्त कार्रवाई और इनके नेटवर्क को खत्म करना अनिवार्य है। - सुरक्षा तंत्र में सुधार:
विदेशों में काम के इच्छुक लोगों के लिए एक मजबूत वेरिफिकेशन सिस्टम लागू किया जाना चाहिए।
एक परिवार की उम्मीद और दर्द
शिवेंद्र के परिवार को हर दिन उसकी सुरक्षित वापसी की उम्मीद है। राजेंद्र सिंह ने बताया, “हमें नहीं पता कि दस लाख रुपये कहां से लाएंगे, लेकिन हम अपने बेटे को हर हाल में वापस लाना चाहते हैं।”
इस मामले ने एक बार फिर ऐसे मामलों की गंभीरता को उजागर किया है, जहां मासूम लोग फर्जी वादों का शिकार बनते हैं। सरकार और समाज को मिलकर इस चुनौती का समाधान निकालना होगा, ताकि भविष्य में किसी और शिवेंद्र को यह दर्द सहना न पड़े।