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Myanmar Earthquake: 1700 मौतों के बाद सैन्य सरकार ने विदेशी मीडिया पर लगाया प्रतिबंध! क्या छुपा रही है जुंटा सरकार?

Myanmar Earthquake म्यांमार में भयावह भूकंप के बाद मची तबाही के बीच सैन्य सरकार ने एक ऐसा कदम उठाया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सवाल खड़े हो गए हैं। जहां एक तरफ भूकंप से मरने वालों की संख्या 1700 तक पहुंच चुकी है, वहीं दूसरी ओर सैन्य शासन ने विदेशी मीडिया को प्रभावित क्षेत्रों में प्रवेश करने से रोक दिया है। क्या यह कदम पारदर्शिता को दबाने की कोशिश है?

भूकंप से मची तबाही, सैन्य सरकार का विवादास्पद फैसला

रविवार को आए 7.7 तीव्रता वाले भूकंप ने म्यांमार के कई हिस्सों को झकझोर दिया। हजारों लोगों के मकान ध्वस्त हो गए, बिजली और पानी की आपूर्ति ठप हो गई, और सड़कें जाम होने से राहत कार्यों में भारी बाधा आई। लेकिन, इन सबके बीच सबसे चौंकाने वाली खबर यह रही कि सैन्य सरकार ने विदेशी मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया।

सैन्य प्रवक्ता जॉ मिन टुन ने एक ऑडियो बयान में कहा, “विदेशी पत्रकारों के लिए यहां आना, रहना या रिपोर्टिंग करना संभव नहीं है। हम चाहते हैं कि हर कोई इस स्थिति को समझे।” लेकिन, क्या यह सिर्फ सुरक्षा का बहाना है या फिर सैन्य शासन कुछ ऐसा छिपा रहा है जिसे दुनिया की नजरों से दूर रखना चाहता है?

क्या मानवीय सहायता भी रोकी जा रही है?

इस प्रतिबंध के साथ ही यह आरोप भी सामने आए हैं कि सैन्य सरकार मानवीय सहायता को भी प्रभावित क्षेत्रों तक पहुंचने से रोक रही है, खासकर उन इलाकों में जहां उसका सीधा नियंत्रण नहीं है। 2021 में सत्ता पर कब्जा करने के बाद से म्यांमार की सेना विभिन्न विद्रोही गुटों के साथ संघर्ष में उलझी हुई है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में सेना ने हवाई हमले जारी रखे हैं, जिससे पीड़ितों की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। क्या यह प्रतिबंध सिर्फ मीडिया को रोकने के लिए है या फिर सेना चाहती है कि दुनिया उसकी कार्रवाइयों को न देख पाए?

अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने उठाए सवाल

म्यांमार नाउ जैसे स्वतंत्र मीडिया संगठनों ने दावा किया है कि सैन्य सरकार लगातार पत्रकारों को दबाने की कोशिश कर रही है। 2023 में, फोटो जर्नलिस्ट साई जॉ थाइक को चक्रवात मोचा की रिपोर्टिंग के दौरान गिरफ्तार किया गया था और बाद में उन्हें 20 साल की जेल की सजा सुनाई गई।

अब, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा के बीच भी मीडिया पर पाबंदी से स्पष्ट है कि जुंटा सरकार किसी भी तरह की आलोचना या जांच को रोकना चाहती है। अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने मांग की है कि म्यांमार में स्वतंत्र मीडिया और राहतकर्मियों को बिना रोक-टोक के काम करने दिया जाए।

क्या होगा अब?

भूकंप से हुई तबाही और सैन्य सरकार के कदमों ने म्यांमार की स्थिति को और भी जटिल बना दिया है। जहां एक तरफ लोगों को भोजन, पानी और दवाइयों की सख्त जरूरत है, वहीं दूसरी ओर सरकार की पाबंदियां राहत कार्यों में बाधा डाल रही हैं। क्या अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद सैन्य शासन अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगा? या फिर म्यांमार के लोगों को इस संकट से अकेले ही जूझना पड़ेगा?

एक बात तो साफ है – म्यांमार में इस वक्त जो कुछ भी हो रहा है, उसकी पूरी जानकारी दुनिया तक नहीं पहुंच पा रही है। और यही सबसे बड़ी चिंता का विषय है।


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