अपनी कलम से -पैग़ाम ए मुल्क
मुल्क ने स्वतंत्रता प्राप्ति के सुखद ७३ वर्षों को पूरा किया तथा हम १५-०८-२०२० को स्वतंत्रता दिवस की ७४ वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे है । मै आप सभी देशवासियों को अग्रिम शुभकामनाएं देता हूं तथा मै उन सभी पुण्यात्माओं के सामने नतमस्तक हूं जिन्होंने आजादी के हवनकुंड में अपने प्राणों की आहुति देकर, उस यज्ञ को सफल बनाया ।
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लाख खवाईशे ना सही, बस पूरा एक अरमान हो जाए,
ये लहू मेरी रगो का भी, मेरे वतन पर कुर्बान हो जाए।
पहचान मेरी इतनी बहुत है, कि जमीं मेरी हिंदुस्तान है
मिटाकर मजहबी दूरियां, इन्कलाब की एक शाम हो जाए।
परवाह मुझे ये नहीं है कि, उन्हें मेरे वतन से नफरत है,
मुद्दा बस इतना है कि, मेरी सरजमीं ना गुलाम हो जाए।
जरा कह दो उनको, जिनकी आंखो में हम खटकते है,
दुनिया के नक्शे से खत्म ना उनका, अपना नाम हो जाए।
गुजर गया वो दौर, जब पांव में बेड़ियां थी गुलामी की,
अब तो वतन के गद्दारों की नीलामी, सर ए आम हो जाए।
मोहब्बत की जमीं पर अब भी, कुछ नफरतों के शहर है
अब तो इन दिलो की रंजिशो का, काम तमाम हो जाए।
गुज़ारिश बस इतनी सी है तुमसे, ए मेरे वतन के बाशिंदों,
काम कोई ऐसा ना करना कि अपना वतन बदनाम हो जाए।
हासिल कुछ ना होगा, वतन को मिटाने की साज़िश में “दीप”
इस आजादी पर मुल्क के, चैन आे अमन का पैग़ाम हो जाए।।
रचनाकार:
इं0 दीपांशु सैनी (सहारनपुर, उत्तर प्रदेश) उभरते हुए कवि और लेखक हैं। जीवन के यथार्थ को परिलक्षित करती उनकी रचनाएँ अत्यन्त सराही जा रही हैं। (सम्पर्क: 7409570957)