स्वास्थ्य

टाइफाइड /इन्टेरिक/मियादी फीवर: लक्षण, होमियोपैथिक चिकित्सा

 यह मियादी बुखार के नाम से भी जाना जाता है साल्मोनेला नामक जीवाणु के कारण होता है . इस जीवाणु की वैसे तो चार प्रजातियां होती हैं ; किन्तु इनकी साल्मोनेला टाइफी प्रजाति ही टाइफायड का प्रमुख कारण होती है .

रोग की तीव्र अवस्था में यह जीवाणु रोगी के मल व मूत्र में उपस्थित रहते हैं , परन्तु रोग की जीर्ण अवस्था में जीवाणु पित्ताशय व पित्तवाहिका में मिलते हैं . कभी – कभी किडनी , पेल्विस में भी टाइफायड के काफी समय तक निष्क्रिय पड़े रहते हैं . जीर्ण अवस्था ही टाइफायड को अधिक फैलाती है .

लक्षण

टाइफायड का बुखार रोगी को उपचार न मिलने पर बहुत दिनों तक लगाता बना रहता है . बुखार के साथ – साथ ठंड भी लगती है . तेज सिर दर्द तथा शरीर के अन्य भागों में भी दर्द होता है

रोगी को भूख नहीं लगती है , पेट में गड़बड़ी प्रारम्भ हो जाती है . रोगी को सुस्ती आती है . चेतनावस्था ठीक नहीं रहती है . साथ ही रोगी बहुत कमजोरी का अनुभव करता है . तेज बुखार के बाद भी रोगी की हृदय गति कम होती है . कभी – कभी रोगी की नाक से रक्त आने लगता है . गला भी खराब हो जाता है 

रोगी की जीभ पर लाल ड्रॉप्स की एक परत सी जम जाती है रोगी को पतले दस्त होत – उपरोक्त सभी लक्षण टाइफायड के सामान्य लक्षण होते हैं , किन्तु जब टाइफायड तीव्र अवस्था में होता है तो उसके लक्षण भिन्न होते हैं . रोगी को तीव्र अवस्था के लक्षण : रोगी को पहले से अधिक तेज बुखार आता है तथा शाम को भी तेज बुखार बना रहता है 

रोगी के पेट पर व शरीर के अन्य भागों पर भी हल्के लाल रंग के चकत्ते से उठ आते हैं . यह बहुत अधिक संख्या में निकलते हैं और रोग के सातवें से दसवें दिन तक दिखाई पड़ने लगते हैं और पूर्णतया प्रकट होने के 3-4 दिन बाद कम होना प्रारंभ हो जाते हैं . इस अवस्था में रोगी की चेतनावस्था गिरने लगती है 

रोगी को सिर दर्द नहीं होता है , परन्तु कई बार रोग की अति तीव्र अवस्था होने पर रोगी को झटके आने लगते हैं . पेट दर्द होता है . तिल्ली बढ़ जाती है तया छूने पर दर्द करता है 

पेट फूल जाता है , रक्तचाप कम होने लगता है . इस अवस्था में नाड़ी HINETRE बहुत कमजोर हो जाती है तथा हृदय गति बढ़ जाती है . रोगी को गहरे हरे पतले दस्ते होते हैं . रोग की अन्तिम अवस्था में रोगी को बेहोशी आती है . धीरे – धीरे रोगी पूर्णतया बेहोश हो जाता है . रोगी को आंत से रक्तश्राव होता है और कभी – कभी तो टाइफायड के कुछ रोगियों की आंत तक फट जाती है . सांस फूलना सामान्य होता है , ऐसा निमोनिया के कारण होता है 

रक्त की जांच करने में रक्त में हीमोग्लोबिन कम आता है . टाइफायड के कारण रोगी की पित्त की थैली में सूजन आ जाता है इसी के साथ अस्थि संधियों में भी सूजन की शिकायत हो जाती है . रोग अर्थात् टाइफायड के बढ़ने के साथ ही रोगी को यकृतः शोथ , गुर्दो में संक्रमण एवं सूजन की शिकायत भी उत्पन्न हो जाती है 

टाइफायड के रोगी का प्रयोगशाला परीक्षण : रक्त का परीक्षण : रक्त का परीक्षण सबसे आवश्यक होता है . इसके अन्तर्गत श्वेत रक्त कणिकाओं की कुल संख्या काफी कम हो जाती है . डी . एल . सी . के अन्तर्गत न्यट्रोफिल की संख्या बहुत कम हो जाती है तथा हीमोग्लोबिन का प्रतिशत भी घटा हुआ रहता है 

ब्लड कल्चर : टाइफायड रोगी का रक्त कल्वर कराने पर पहले सप्ताह में 90 प्रतिशत से अधिक रोग के कल्वर पॉजीटिव आते हैं , क्लाट कल्वर : क्लाट कल्चर , ब्लड कल्चर की अपेक्षा अधिक सुगाही होता है . जिन रोगियों में ब्लड कल्चर निगेटिव होता है टाइफायड के उन रोगियों का क्लाट कल्चर पॉजीटिव होता है .

अस्थि मज्जा कल्चर टाइफायड के रोगियों में यह कल्चर सर्वाधिक सुग्राही होता है . जिन रोगियों में क्लाट कल्चर निगेटिव होते हैं उनमें अस्थि कल्वर पॉजीटिव होते हैं . विडाल टेस्ट : यह परीक्षण टाइफायड के रोगियों में रोग निदान के लिए सर्वाधिकता से उपयोग में लाया जाता है . इसके लिए ( 0 ) ओ तथा ( एच ) एंटीबॉडी का उपयोग कर रोगी के सीरम 0 तथा H एंटीजन की उपस्थिति मात्रा का पता लगाया जाता है .

यह परीक्षण रोग के 10 वें दिन से पॉजीटिव आना प्रारंभ हो जाता है और 18 से 24 दिन के बीच इसका स्तर उच्चतम रहता है . यदि परीक्षण के समय एंटीबॉडी लेवल बहुत बढ़ा हुआ मिले तो ( 1 / 160-1 / 160 ) यह तुरन्त हुए रोग को प्रदर्शित करता है . 1/40 स्तर पर टेस्ट पॉजीटिव होना टाइफायड ज्वर की ओर संकेत करता है .

विडाल टेस्ट का निगेटिव होना इस तथ्य का प्रमाण नहीं होता है कि रोगी को टाइफायड नहीं है . : स्टूल कल्चर यह टेस्ट तीसरे सप्ताह में टाइफायड के अधिकांश रोगियों में पॉजीटिव प्रकट होते हैं 

परन्तु कुछ रोगियों में टेस्ट पहले सप्ताह से ही पॉजीटिव प्रकट होते हैं . : मूत्र कल्चर टाइफायड के कुछ रोगियों के मूत्र में इसे उत्पन्न करने वाले जीवाणु होते हैं . इन रोगियों का यूरिन कल्चर पॉजीटिव होता है ; परन्तु यह बहुत कम रोगियों में और बहुत कम समय के लिए होता है .

वायल कल्चर : टाइफायड के रोगियों के लिए वायल कल्चर सर्वाधिक सुग्राही होता है . जीर्ण रोगियों में जब अन्य विधियां काम नहीं आती है तो यही सार्थक सिद्ध होती है 

बचाव एवं रोकथाम

1. रोगी का कमरा बिल्कुल स्वच्छ रखना चाहिए . 2. रोगी को साफ एवं उबला हुआ पानी देना चाहिए . 3. सब्जियों को गरम पानी में धोने के बादः पकाना चाहिए .

4. रोगी को गाय का दूध , फलों का जूस , मूंग की दाल , अखरोट बिस्किट , साबुदाना इत्यादि को सेवन कराना चाहिए 

होमियोपैथिक चिकित्सा : 1. बेलाडोना 1 एम : – चेहरा और सिर गर्म शेष शरीर ठंडा हो , आन्तरिक गर्मी तथा रात में पसीना होने के लक्षण पर , 2 . बैप्टिशिया- 200 : – सर्दी लगने के साथ सारे शरीर में आमवाती दर्द और दुःखन .

3. ब्रायोनिया- 200 : – नसें कठोर या तीव्र सूखी खांसी . जरा – सी मेहनत करने पर खट्टी गंध वाला पसीना का होना , आंत्रिक ज्वर के साथ कब्ज का रहना 

4. जेल्सेमियम 200 : – ज्वर तेज हो साथ ही स्टुपर जड़िया भ्रमि और मू , प्यास का न लगना . 5 टाइफाडियम इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है .

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

seventeen − 11 =