Empowering Women: हर घर में खुशियों और स्वास्थ्य के स्तम्भ सशक्तिकृत महिलाएं…
Empowering Women: स्त्री जगत जननी है। वह ईश्वर की सृष्टि को प्रचारित करती हैं और स्त्रियों के माध्यम से ही पृथ्वी पर जीवों की उत्पत्ति होती है। स्त्री ही लक्ष्मी है। जिस घर की स्त्री बहुत चतुर और उदार चित्तवाली होती है, वहां सुख का साम्राज्य बना रहता है।
सन्तानों के पालन-पोषण का भार और उन्हें भविष्य में सुखी बनाने का एकमात्र आधार उनकी माता हैं, परंतु जो स्वयं सुखी और आरोग्यशाली नहीं हैं, उनके लिए दूसरों को सुखी बनाना कठिन नहीं है, बल्कि असम्भव है। इसलिए माता (स्त्री) का स्वयं आरोग्य बना रहना परम आवश्यक है। स्त्री कुछ भी कर सकती है, उसमें सभी गुण हैं, परंतु आज-कल के व्यवहार से इन अवलाओं को पूर्णत: अनुष्ठान करना कठिन है।
उन्हें स्वतंत्रता से अपने भावों को प्रकट करने का अवसर नहीं मिलता। वे सर्वदा घर के अंदर रहकर और पर्दे की बुरी प्रथा में अत्यंत संलिप्त होकर प्रायः रोगों का शिकार बनी रहती हैं। आज-कल के मानवों का इतना निर्बल और डरपोक होने का एक विशेष कारण भी उनकी माताओं का रूमावस्था में रहना है। अतः प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि प्राचीन काल के मनुष्यों की तरह स्त्रियों का सम्मान करें। निश्चय ही हमारी भविष्य की उन्नतियाँ उन्हीं पर निर्भर हैं। जब से पश्चिमी देशवासियों ने अपने यहां की स्त्रियों को पूर्ण अधिकार दिए हैं, वहां की स्त्रियां हृष्ट-पुष्ट और बलवान हो गई हैं।
स्त्री शक्ति का संवर्धन करना ना केवल समाज की बल्कि एक राष्ट्र की विकास की कुंजी है। समाज में स्त्री को समर्थ, स्वतंत्र, और समानता का मानवाधिकार समझना चाहिए। समाज को स्त्री के प्रति समर्पित बनाने के लिए उसे शिक्षित बनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
स्त्रियों का स्वास्थ्य समाज की उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आरोग्यशाली स्त्री समाज के लिए सकारात्मक असर डालती है और अपने परिवार को सुरक्षित रखने का एक महत्वपूर्ण कारण बनती है। स्त्री को स्वास्थ्य की देखभाल के लिए समर्थ बनाए रखना समाज की प्रगति की दिशा में महत्वपूर्ण है।
सामाजिक दृष्टिकोण से, स्त्री को समाज में समानता के साथ सक्रिय भूमिका मिलनी चाहिए। उसे शिक्षा, रोजगार, और समाज में प्रतिबद्धता के लिए अधिक अवसर मिलने चाहिए। समाज को स्त्री के योगदान की महत्वपूर्णता को समझते हुए, समाज में उसकी भूमिका को समर्थन करना चाहिए।
इस प्रकार, स्त्री जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए समर्थ होनी चाहिए, उसका स्वास्थ्य समृद्धि का कारण बनना चाहिए, और समाज में उसका सम्मान बढ़ाना चाहिए। यह सभी पहलुओं के सही विकास से ही सम्भव है।
भारतीय संस्कृति में, स्त्री को देवी का रूप माना जाता है और उसे समाज में महत्वपूर्ण भूमिका दी जाती है। लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे सामाजिक परिवर्तनों के कारण, कई स्त्रियां अब भी समाज में समानता की प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रही हैं।
भारत में स्त्रियों को शिक्षा में समाहित होने का अधिकार है, लेकिन कई जगहों पर इसे पूरी तरह से अनुपलन किया नहीं जा रहा है। स्त्रियों को सक्षम बनाने के लिए सामाजिक रूप से समर्थ होने का समर्थन मिलना चाहिए, ताकि वे अपने पूरे पोटेंशियल को पूरा कर सकें।
स्त्री स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। मातृत्व और बाल संबंधित स्वास्थ्य सेवाओं के पहुंच में सुधार की आवश्यकता है। स्त्रियां अच्छे स्वास्थ्य का अधिकारी होने पर ही समाज में अधिक योगदान कर सकती हैं और उन्हें अपने परिवार और समाज के साथ मिलकर सशक्त बनाए रखा जा सकता है।
भारतीय समाज में स्त्री को समाज में अपनी भूमिका को पूर्णत: निभाने का अधिकार है। उसे समाज में समानता, समर्पण, और आत्मनिर्भरता के साथ समर्थ बनाए रखने के लिए सही सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों की आवश्यकता है।
सार्थक शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं का सुधार, और समाज में स्त्रियों के योगदान की पहचान, ये सभी क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं जो स्त्रियों को भारतीय समाज में समाज में समानता और सशक्तिकरण की प्राप्ति में सहायक हो सकते हैं।
तथा वहां के अधिवासी वीर हुये हैं , जिससे उनका आधिपत्य सारे भूमण्डल पर होगया है । इस हेतु प्रत्येक मनुष्य का परम धर्म है , कि स्त्रियों को स्वतन्त्रता पूर्वक भाव प्रकट करने का पूर्ण अवकाश दे । जिससे वह अपने स्वास्थ्य के प्रति स्वतंत्र होकर के अपने चिकित्सा स्वयं करने का संकल्प बना सके और इस संकल्प को पूरा करने के लिए डॉ वेद ने एक नए होम्योपैथिक वर्कशॉप (विशेषकर महिलाओं के लिए) का ओपनिंग करने जा रहे हैं।वह भी आप ही की राष्ट्रभाषा हिंदी में । जिससे आप लोग कम पढ़े लिखे होने के बावजूद इसे आसानी से सीख सकते हैं।
वालिका स्त्री कब समझी जातीहै ? ,रजस्वला का समय, ऋतुश्राव को समय, स्त्रीगमन अर्थात् बाल उत्पत्ति, ऋतुधर्म में देर ,ऋतुधर्म का बन्द हो जाना, ऋतुश्राव में कष्ट जल्दी २ और अधिक २ ऋतु का होना, श्वेत प्रदर तथा रजविकार, गर्भाशय का फूल जाना, गर्भाशय में फुन्सियों का होना, गर्भाशय का टेढ़ा पड़ना अर्थात् ( घसक जाना ), भग – नली के रोग, भग – रोग भग की गिल्टियाँ ,बन्ध्या रोग, पुरुष गमन की अधिक इच्छा, हिस्टीरिया, गर्भवती होने पर उलटी अथवा कै होना, मुंह में पानी आना , भोजनादि का न पचना , दांत में दर्द मालूम होना, अजीर्न का होना, दस्त में कब्ज होना
पेट में दर्द होना , मूत्र रोग होना,गर्भवती होने पर, कमर और जांघ में दर्द होना ,गर्भवती होने पर शिरमें दर्द होना, गर्भवती होने पर पैर का फूल जाना, गर्भाशय में बच्चा का चलना ,गर्भपात ,प्रसव घर, प्रसव पीड़ा का लक्षण, प्रसव पीडा प्रसव काल, नारपुरैन लोचिया, प्रसव के बाद शरीर में ऐठन होना, प्रसव के बाद शरीर में जहरीला ज्वर, दृध पिलाने की विधि ,अधिक अधिक दूध होना, दूध न होना,नेपल टेढ़ा हो जाना, स्तन में फुन्सियों का होना
स्तन में दर्द ,बालक रखने की विधि, प्रसूती का निर्वल हो जाना, बाल रोग ,अचानक दम घुट कर मर जाना, टेटनस अर्थात् जमुंहा, हार्निया ,जौनडीस ,कौलिक मल में कब्ज, बाल जवर, निद्रामें मूत्र का होना, दस्त, बच्चों के दांत निकलते समय परेशानी आदि इन सारे बिंदुओं पर होम्योपैथिक की एक सफल प्रयोग बताया जाएगा