संपादकीय विशेष

🚜 किसान आंदोलन (Farmers Protest) फिर गरमाया: सरकार की चुप्पी से भड़के किसान, दिल्ली कूच की तैयारी

भारत में किसानों का आंदोलन (Farmers Protest) कोई नई बात नहीं है, लेकिन हर बार जब भी किसान अपने हक के लिए खड़े होते हैं, सरकार की प्रतिक्रिया निराशाजनक ही होती है। हाल ही में Muzaffarnagar के कूकड़ा नवीन मंडी स्थल में आयोजित भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) की महापंचायत में किसानों की आवाज़ एक बार फिर बुलंद हुई।

राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के नेतृत्व में हजारों किसानों ने सरकार को चेतावनी दी कि अगर उनकी गन्ने का मूल्य, एमएसपी की गारंटी, कृषि उपकरणों पर जीएसटी खत्म करने, बिजली निजीकरण रोकने और कर्जमाफी जैसी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो इस बार आंदोलन दिल्ली-गाजीपुर बॉर्डर की तर्ज पर होगा

🚜 किसानों की हालत – एक नजर में

आज का भारतीय किसान सिर्फ खेत में हल चलाने वाला नहीं है, बल्कि वह देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। देश की 58% आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है, लेकिन जब नीति बनाने की बात आती है, तो किसानों की मांगों को बार-बार अनसुना कर दिया जाता है।

📌 गन्ने के भुगतान की समस्या:
सरकार अब तक गन्ने का समर्थन मूल्य घोषित नहीं कर पाई है। जबकि चीनी मिलों को सब्सिडी दी जाती है, किसानों को भुगतान के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है।

📌 कर्ज का बोझ:
बैंकों द्वारा किसानों को क्रेडिट कार्ड और लोन देकर कर्ज में धकेला जा रहा है, लेकिन जब फसलों के सही दाम नहीं मिलते, तो किसान ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाता है। इसके चलते आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं

📌 MSP की गारंटी का अभाव:
देशभर के किसान मांग कर रहे हैं कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी गारंटी दे, ताकि उनकी फसलें औने-पौने दामों पर न बिकें।

📌 कृषि उपकरणों पर GST का भार:
सरकार एक ओर ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की बात करती है, लेकिन दूसरी ओर कृषि उपकरणों पर भारी जीएसटी लगा रही है।

📌 बिजली निजीकरण की योजना:
सरकार अब बिजली को निजी हाथों में सौंपने की योजना बना रही है, जिससे छोटे किसानों की लागत और बढ़ जाएगी।

⚠️ सरकार की चुप्पी – किसानों की अनदेखी?

सरकार की नीति बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने वाली नजर आती है। किसानों के कर्जमाफी की बजाय उद्योगपतियों के हजारों करोड़ के लोन माफ किए जा रहे हैं। पिछले साल भी किसानों ने दिल्ली बॉर्डर पर एक साल तक आंदोलन किया, लेकिन जब तक 700 से ज्यादा किसानों की जान नहीं गई, तब तक सरकार ने बात तक नहीं की।

राकेश टिकैत ने साफ कहा है कि अब किसान बिना दबाव के कुछ नहीं पा सकता। उनकी यह बात सच लगती है क्योंकि इतिहास भी यही बताता है कि हर बार किसान को सड़कों पर उतरकर ही अपने हक की लड़ाई लड़नी पड़ी है।

🔥 क्या किसान फिर दिल्ली कूच करेंगे?

मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत से यह साफ हो गया है कि किसान फिर एक बड़े आंदोलन की तैयारी में हैं।

🔹 10 बड़ी महापंचायतें उत्तर प्रदेश में
🔹 इसके बाद हरियाणा, पंजाब और दिल्ली में आंदोलन
🔹 सरकार को प्रस्ताव भेजा जाएगा, अगर मांगे नहीं मानी गईं, तो दिल्ली में फिर से धरना-प्रदर्शन

💡 किसान आंदोलन की ऐतिहासिकता और इसकी शक्ति

भारत में किसान आंदोलनों का लंबा इतिहास रहा है।

1978: चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में मुजफ्फरनगर किसान आंदोलन
1988: दिल्ली के बोट क्लब पर भाकियू का बड़ा प्रदर्शन
2020-21: दिल्ली बॉर्डर पर ऐतिहासिक किसान आंदोलन, जिसमें केंद्र सरकार को तीन कृषि कानून वापस लेने पड़े

इतिहास बताता है कि जब भी किसानों ने एकजुटता दिखाई है, सरकार को झुकना पड़ा है।

🤔 सरकार की रणनीति – आंदोलन को कमजोर करना?

सरकार ने पहले भी किसानों को तोड़ने की कोशिश की है।

फूट डालो, शासन करो: सरकार यह प्रचार करती है कि सिर्फ पंजाब और हरियाणा के किसान आंदोलन कर रहे हैं।
विरोध को बदनाम करना: किसानों को ‘देशद्रोही’, ‘खालिस्तानी’ और ‘परजीवी’ कहा गया।
संवाद का दिखावा: किसान नेताओं को वार्ता के नाम पर बुलाया गया, लेकिन कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया।

✅ आगे की राह – क्या किसानों को संघर्ष जारी रखना चाहिए?

किसानों को इस बार अपने संघर्ष को और तेज करना होगा।

1️⃣ गांव-गांव में जनजागरूकता अभियान चलाना होगा।
2️⃣ सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर सही जानकारी फैलानी होगी।
3️⃣ शांतिपूर्ण लेकिन दबाव बनाने वाली रणनीति अपनानी होगी।
4️⃣ राजनीतिक दलों से कोई उम्मीद नहीं रखनी होगी – केवल किसानों को अपनी ताकत पर भरोसा करना होगा।

💬 निष्कर्ष नहीं, बल्कि संकल्प!

“ना झुकेंगे, ना रुकेंगे, हक लेकर ही रहेंगे!”

किसान सिर्फ अपनी फसल उगाने के लिए संघर्ष नहीं कर रहे, बल्कि वे देश की खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिए भी लड़ रहे हैं। अगर सरकार ने जल्द ही किसानों की मांगों पर ध्यान नहीं दिया, तो यह संघर्ष और भी उग्र रूप ले सकता है।

अब यह सरकार को तय करना है – क्या वह फिर से हजारों किसानों को दिल्ली बॉर्डर पर देखने के लिए तैयार है?

Dr. S.K. Agarwal

डॉ. एस.के. अग्रवाल न्यूज नेटवर्क के मैनेजिंग एडिटर हैं। वह मीडिया योजना, समाचार प्रचार और समन्वय सहित समग्र प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है। उन्हें मीडिया, पत्रकारिता और इवेंट-मीडिया प्रबंधन के क्षेत्र में लगभग 3.5 दशकों से अधिक का व्यापक अनुभव है। वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों, चैनलों और पत्रिकाओं से जुड़े हुए हैं। संपर्क ई.मेल- [email protected]

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