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Nehru से विज्ञान का नाता: क्या एक ऐसी सोच ने भारत को आधुनिक बनाया?

इतने सालों बाद हमें शर्म से यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि धार्मिक आडंबरों, पाखंड और अंधविश्वास फैलाने वाले धर्मगुरुओं के बढ़ते प्रभाव और वोटों के लिए उन्हें मिलते राजनीतिक संरक्षण के इस दौर में वैज्ञानिक दृष्टिकोण की नेहरूवादी समझ और भारतीय संदर्भ में इसके वास्तविक उपयोग और कार्यान्वयन के बीच अब गहरी खाई तैयार हो चुकी है।

इसीलिए नेहरू (Nehru) आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस समय थे। आज देश में जब तमाम जगहों पर अंधविश्वास फैलाने वाले धर्मगुरुओं और नेताओं की बाढ़ आई हुई है, ऐसे में तकरीबन सत्तर साल पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) का यह कहना कि, “राजनीति मुझे अर्थशास्त्र की ओर ले गई और उसने मुझे अनिवार्य रूप से विज्ञान और अपनी सभी समस्याओं और जीवन के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की ओर प्रेरित किया।

सिर्फ विज्ञान ही भूख और गरीबी की समस्याओं का समाधान कर सकता है। विज्ञान ही वह इकलौता जरिया है जो भूख और गरीबी को मिटा सकता है।” यह विचार आज भी बेहद दूरदर्शिता से भरा और दृष्टिगामी हो जाता है।

Nehru की वैज्ञानिक सोच का महत्व

Nehru की वैज्ञानिक सोच की अवधारणा एक तर्कसंगत दृष्टिकोण है, जिसके बारे में उनका मानना था कि यह किसी की सोच और कार्यों का अभिन्न अंग होना चाहिए। विज्ञान और धर्म के बीच उनके मन में कोई अंतर्विरोध नहीं था। उनका मानना था कि विज्ञान धर्म जैसा नहीं है, जो अंतर्ज्ञान और भावना पर निर्भर करता है।

Nehru का मानना था कि विज्ञान लोगों को पारंपरिक मान्यताओं को एक नए नज़रिए से देखने में मदद कर सकता है, जबकि धर्म असहिष्णुता, अंधविश्वास और तर्कहीनता को जन्म दे सकता है। नेहरू के अनुसार वैज्ञानिक सोच जीवन जीने का एक तरीका है, सोचने की एक प्रक्रिया है, और काम करने का एक तरीका है। इसमें नए सबूतों के लिए खुला रहना, निष्कर्ष बदलना और देखे गए तथ्यों पर भरोसा करना शामिल है।

नेहरू का विज्ञान और धर्म पर दृष्टिकोण

नेहरू का मानना था कि वैज्ञानिक सोच के प्रसार से धर्म का दायरा कम हो जाएगा, और इस दृष्टिकोण का प्रभाव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर पड़ा। उन्होंने वैज्ञानिक सोच के महत्व पर जोर दिया और माना कि इसे व्यक्तिगत, संस्थागत, सामाजिक और राजनीतिक स्तरों पर बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले ही नेहरू ने सन् 1938 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस की एक बैठक में कहा था: “विज्ञान जीवन की वास्तविक प्रकृति है। केवल विज्ञान की ही सहायता से भूख, गरीबी, कुतर्क और निरक्षरता, अंधविश्वास एवं खतरनाक रीति-रिवाजों और दकियानूसी परम्पराओं, बर्बाद हो रहे हमारे विशाल संसाधनों, भूखों और सम्पन्न विरासत वाले लोगों की समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। आज की स्थिति से अधिक सम्पन्न भविष्य उन लोगों का होगा, जो विज्ञान के साथ अपने संबंध को मजबूत करेंगे।”

वैज्ञानिक दृष्टिकोण की परिभाषा

नेहरू ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनी पुस्तक डिस्कवरी ऑफ इंडिया में लोकहितकारी और सत्य को खोजने का मार्ग बताया था। वैज्ञानिक दृष्टिकोण किसी स्थिति के मूल कारणों के वस्तुगत विश्लेषण करने पर ज़ोर देता है। वैज्ञानिक कार्यपद्धति के प्रमुख या अनिवार्य गुणधर्म जिज्ञासा, अवलोकन, प्रयोग, गुणात्मक व मात्रात्मक विवेचन, गणितीय प्रतिरूपण और पूर्वानुमान हैं। नेहरू के मुताबिक यह कार्यपद्धति जीवन के सभी कार्यों पर लागू हो सकती है क्योंकि इसकी उत्पत्ति हम सभी की जिज्ञासा से होती है।

इसलिए, हर व्यक्ति चाहे वह वैज्ञानिक हो या न हो, वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपना सकता है। यह दृष्टिकोण जीवन की प्रत्येक घटना को समझने में मदद करता है और अंधविश्वासों और पूर्वाग्रहों से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।

नेहरू का दृष्टिकोण और उनकी कार्यप्रणाली

नेहरू अपनी पुस्तक 1946 की Discovery of India के पृष्ठ 512 पर लिखते हैं: “आज विज्ञान के अनुप्रयोग सभी देशों और लोगों के लिए अपरिहार्य और अटल हैं। लेकिन इसके अनुप्रयोग से कहीं ज़्यादा कुछ और भी ज़रूरी है। यह है वैज्ञानिक दृष्टिकोण, विज्ञान का साहसिक और फिर भी आलोचनात्मक स्वभाव, सत्य और नए ज्ञान की खोज, बिना परीक्षण और परीक्षण के किसी भी चीज़ को स्वीकार करने से इनकार करना, नए सबूतों के सामने पिछले निष्कर्षों को बदलने की क्षमता, पहले से तय सिद्धांत पर नहीं बल्कि देखे गए तथ्य पर भरोसा करना, मन का कठोर अनुशासन – यह सब सिर्फ़ विज्ञान के अनुप्रयोग के लिए ही नहीं बल्कि जीवन और उसकी कई समस्याओं के समाधान के लिए भी ज़रूरी है…”

नेहरू का यह बयान वैज्ञानिक दृष्टिकोण के महत्व को बहुत ही स्पष्ट रूप से उजागर करता है। उनका मानना था कि बिना तर्कशील दृष्टिकोण के न तो समाज का विकास संभव है, न ही विज्ञान का।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण का महत्व

नेहरू ने भारतीय समाज के विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी की अहमियत को स्वीकार किया। उनके अनुसार, भारत की स्वतंत्रता के बाद एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में भारत की कल्पना तभी पूरी हो सकती थी, जब वहां के लोग तर्क, विज्ञान और तात्त्विक सोच के आधार पर अपने निर्णय लेंगे। इस दृष्टिकोण का परिणाम यह हुआ कि स्वतंत्रता के बाद नेहरू ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी को राष्ट्र के विकास के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में मानते हुए, उन्होंने भारतीय विज्ञान कांग्रेस की बैठकों में हिस्सा लिया और वैज्ञानिक संस्थानों का निर्माण किया। उनका यह विश्वास था कि विज्ञान केवल ज्ञान का विषय नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक पहलू को सुधारने का एक तरीका है।

नेहरू और भारतीय विज्ञान का उन्नयन

नेहरू के नेतृत्व में भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए। उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान, परमाणु ऊर्जा आयोग और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) जैसी संस्थाओं की नींव रखी।

उनकी कार्यशैली में एक बहुत बड़ा योगदान उनके वैज्ञानिकों को विशेष महत्व देने का था। उन्होंने परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष अनुसंधान और औद्योगिकीकरण के लिए विशेष कदम उठाए, जिससे भारत का विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नया मुकाम हासिल कर सका।

नेहरू का वैज्ञानिक दृष्टिकोण: जीवन का तरीका

नेहरू ने हमेशा “वैज्ञानिक स्वभाव” और “विज्ञान की भावना” को प्रोत्साहित किया। यह उनके सामाजिक आदर्शों और राजनीतिक विश्वासों को स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। उन्होंने बार-बार यह कहा कि जीवन को एक तर्कसंगत तरीके से जीना चाहिए, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाए बिना संभव नहीं है।

उन्होंने यह भी कहा कि विज्ञान केवल तकनीकी और भौतिक विकास का साधन नहीं है, बल्कि यह मानवता के भले के लिए एक दृष्टिकोण है। उनके अनुसार, “वैज्ञानिक दृष्टिकोण वह मार्ग है, जिस पर एक स्वतंत्र व्यक्ति को अपनी जीवन यात्रा करनी चाहिए।”

आज जब धार्मिक कट्टरता और अंधविश्वास समाज में घातक रूप से फैल रहे हैं, पंडित नेहरू का वैज्ञानिक दृष्टिकोण अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। उनकी यह सोच न केवल हमें एक बेहतर समाज की ओर अग्रसर करती है, बल्कि यह हम सभी को जीवन को बेहतर समझने का एक तार्किक दृष्टिकोण भी देती है। इस दृष्टिकोण को अपनाकर हम न केवल समाज के भीतर बदलाव ला सकते हैं, बल्कि अपने राष्ट्र के विकास में भी योगदान दे सकते हैं।

यदि हमें नेहरू जी की श्रद्धांजलि अर्पित करनी है, तो हमें उनकी वैज्ञानिक सोच को हमारे जीवन में आत्मसात करना होगा और अपने बच्चों तथा समाज में इस दृष्टिकोण का विकास करना होगा, जिससे हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मजबूत और विकासशील राष्ट्र का निर्माण कर सकें।

kalpana Pandey

कल्पना पांडे महाराष्ट्र के महिला और बाल विकास विभाग में सेवारत हैं, जहाँ वे महिलाओं और बालकों से जुड़े सामाजिक मुद्दों पर सक्रिय रूप से काम करती हैं। शैक्षिक दृष्टि से (MSW) में अग्रणी रहते हुए, वे छात्र जीवन में विभिन्न शैक्षिक गतिविधियों का हिस्सा रही हैं। स्वतंत्र लेखक के रूप में, कल्पना कई प्रतिष्ठित संस्थानों से जुड़ी हुई हैं और उनके लेखन में सामाजिक परिवर्तन, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के विषय प्रमुख हैं। उनकी एक पुस्तक, "सर्कस", लेखनाधीन है, जो समाज के विभिन्न पहलुओं को परखने का प्रयास है। कल्पना पांडे का उद्देश्य समाज में सकारात्मक बदलाव लाना और महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाना है।

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