ज़रुरत क्या है?
बेवजह घर से निकलने की ज़रुरत क्या है?
मौत से आँख मिलाने की ज़रुरत क्या है?
सबको मालूम है की बाहर की हवा कातिल है,
यूँ ही कातिल से उलझने की ज़रुरत क्या है?
खुदा की बख्शी एक नियामत है ज़िंदगी उसे संभल कर रख,
कब्रिस्तान को सजाने की ज़रुरत क्या है?
खुद को बहलाने की घर में ही वजह काफी हैं ऐ साकिब,
यूँ ही गलियों में भटकने की ज़रुरत क्या है?
साकिब फारूख क्रीपक
(संकलनकर्ता जम्मू-कश्मीर का मूल निवासी है एवं वर्तमान में दीवान वी एस इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, मेरठ (उ0 प्र0) में बी0 टेक0 सिविल इंजीनियरिंग-अंतिम वर्ष का छात्र है) (सौजन्य- प्रोफेसर राजुल गर्ग, निदेशक)
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