अपनी कलम से : अंजाम ए इश्क़
तेरे बिछड़ जाने के बाद भी, बाद ऐ सबा चल रही है
उम्र ए मोहब्बत अब आईस्ता आईस्ता ढल रही है ।
ख्याल ए वस्ल तो मेरे जहन में आज भी उठ रहा है,
अब फिज़ाओं में मेरे हक की मोहब्बत बदल रही है।
विशाले ए वस्ल को याद कर ये दिल मायूस होता है,
तेरे जाने के बाद,अब किस्तों में जां निकल रही है।
यकीं ना था, रुकसत के दिन भी इतने करीब होंगे,
ना जाने अब वो किसकी बाहों में, संभल रही है।
खुद को आज भी बस, तेरे लिए संभाल कर रखा है,
खवाइशे टूटकर बिखर जाने को,कब से मचल रही है।
अशारो में भी उसके नाम का,जिक्र नहीं करता “दीप”,
तमाम हसरतें दिल की, दिल में ही पिघल रही है ।।
बाद ऐ सबा – सुबह की ठंडी हवा
ख्याल ए वस्ल – प्रेमी से मिलन का ख्याल
विशाले ए वस्ल – प्रेमी से मिलन
रुकसत – जुदा होना
अशारो – शेर
♥इं0 दीपांशु सैनी
(सहारनपुर, उत्तर प्रदेश)