मैं कोरोना बोल रहा हूं…
मैं दुनिया को सीख सिखाने आया हूँ, प्रकृति को फिर से जीवित करने आया हूँ , हे मानव, तेरी औकात बतलाने मैं आया हूँ। ईर्ष्या, द्वेष , कलह -लोभ को मिटाने मै आया हूँ , पूंजीवाद को निशाना बनाने मै आया हूँ, एकता का संदेश लेकर मैं आया हूं।।
विश्वव्यापी महामारी से जूझता विश्व जनसामान्य की जीवन शैली में अत्यधिक परिवर्तन करके जाएगा यह तो निश्चित है लेकिन क्या इंसान प्रकृति के अत्यधिक दोहन, ईर्ष्या, कलह, द्वेष, लोभ इत्यादि को त्यागकर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला पाएगा?
यह कहना थोड़ा कठिन है। पूंजीवादी देशों ने इंसानों की सुरक्षा को प्राथमिकता न देकर अपनी मुश्किलें और बढ़ा ली हैं लेकिन दूसरी तरफ भारत जैसे देशों ने इंसानों की सुरक्षा को प्राथमिकता देकर एक संदेश उन सभी देशों को दिया है जो आज भी पूंजीवाद को ही सर्वोच्च मानते हैं।
बेशक कोरोना विश्व की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा वही दूसरी तरफ कोरोना यह संदेश देना चाहता है कि विश्व की समृद्धि का रास्ता इंसान के जीवन मूल्य होने चाहिए। जनसामान्य का त्याग ही यह सुनिश्चित करेगा कि इस विश्वव्यापी महामारी से लोग कितने प्रभावित होते है।
इस विश्वव्यापी महामारी ने भारतीय संविधान में वर्णित प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा करना, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास इत्यादि मौलिक कर्तव्यों की प्रासंगिकता की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया है।
लॉकडाउन के बढ़ते दिनों के साथ-साथ लोगों में अपने रोजगार के प्रति चिंताएं, भविष्य की चिंताएं इत्यादि को लेकर असमंजस उत्पन्न हो गया है।
वर्तमान समय में सरकार के समक्ष यह सबसे बड़ी चुनौती होगी कि वह लोगों के इस असमंजस को दूर करने में कितना सफल हो पाती है।
देश के सभी लोग इस विश्वव्यापी महामारी से लड़ने के लिए लॉकडाउन का पालन पूरी गंभीरता से कर रहे हैं। जनसामान्य ,संकट से निजात दिलाने में जुटे सभी लोगों का उत्साहवर्धन करें। निश्चित ही भारत इस महामारी को हराने में सफल रहेगा।
लेखक:अक्षय कुमार वत्स