स्वास्तिक की कलम से: सिहरती हुई मानवता को संदेश
हाल ही में डॉ रेड्डी के साथ हुए हादसे से विहवल हो छात्र स्वास्तिक ने अपनी कलम से अपने भावों को एक कविता के माध्यम से अभिव्यक्त करने – सिहरती हुई मानवता को संदेश देने का प्रयास किया हैं।-
अब न मिलेगी शह तुझे।
कैसे दे दी हामी तेरे ज़मीर ने?
कैसे हो पायी इतनी दरिंदगी हावी तुझ पर?
कि चीख पड़ी इंसानियत भी सुन,
और शर्मिंदा हो गई हैवानियत भी देख।
क्या नहीं दहला तेरा अंतर्मन देख उसको छटपटाता?
क्या नहीं काँपी तेरी काया सुन उसकी चीखें?
क्या नहीं रोयी तेरी रूह कर उसे राख़?
क्या नहीं था ख़ौफ रब-ए-जलाल का?
कब तक शर्मसार करेगा अपने जन्मदाता को?
कब तक अपमानित करेगा राखी के उस वचन को?
कब तक जलील करेगा रिशतों के पवित्र बन्धनों को?
कब तक, आखिर कब तक?
जान और समझ ले तू ये,
कि ये नाज़ुक और ख़ूबसूरत जिस्म,
अब न सहेंगे तेरे वहशीपन को,
वो दिन दूर नहीं कि जब पासा पलट जाएगा।
वह जो उषा की पहली किरण है,
रात का घना अंधेरा बन जाएगी।
वह जो सौम्य-सरल मुस्कान है,
रौद्र रूप धर तांडव रचाएगी।
वह जो प्रेम का विशाल सागर है,
सुनामी बनकर छा जाएगी।
होश में आजा,
अब बस, बहुत हुआ।
हुंकार उठा है स्त्रीत्व और
जाग उठी है मानवता।
माँऐं और अपने ही कर देंगे इंसाफ,
अब न मिलेगी शह तुझे।
♣ युवा कवि:
स्वास्तिक साहनी
कक्षा 11, दीवान पब्लिक स्कूल, मेरठ,
उत्तर प्रदेश
They used a new strategy called “sideways” that’s spreading like wildfire.