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Ayodhya भूमि विवाद की जांच करने वाले अधिकारियों के 4 रिश्तेदारों ने ट्रस्ट से ख़रीदी बरहटा मांझा गांव मेंज़मीन

Ayodhya में जमीन खरीद में हुई गड़बड़ी और कंफ्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट का मामला सामने आया है। दलित समुदाय के लोगों से खरीदी गई जमीन में हुई गड़बड़ी की जांच कर रहे अधिकारियों के चार रिश्तेदारों ने ट्रस्ट से जमीन खरीदी है।  लेन-देन के इस नेटवर्क के केंद्र में महेश योगी द्वारा स्थापित महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट (MRVT) है, जिसने 1990 के दशक की शुरुआत में राम मंदिर स्थल से 5 किमी से भी कम दूर बरहटा मांझा गांव और अयोध्या में आसपास के कुछ अन्य गांव में बड़े पैमाने पर भूमि का अधिग्रहण किया था। इस जमीन में से लगभग 21 बीघा जमीन नियमों का उल्लंघन करते हुए दलितों से खरीदा गया था।

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता नियम के अनुसार किसी भी गैर-दलित द्वारा दलित व्यक्तियों से संबंधित कृषि भूमि ( 3.5 बीघा से कम स्वामित्व वाली) का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता है, जब तक उसको जिला मजिस्ट्रेट द्वारा मंजूरी नहीं मिली हो। लेकिन महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट ने एक नाली का हवाला देकर ट्रस्ट के ही एक दलित कर्मचारी रोंघई की मदद से 1992 में लगभग एक दर्जन दलित ग्रामीणों से जमीन खरीद लिया।

रिकॉर्ड के अनुसार जमीन का लेनदेन रोंघई के नाम पर ही दर्ज किया गया। इसके बाद रोंघई ने जून 1996 में एक अपंजीकृत दान-पत्र पर हस्ताक्षर किए और यह सब महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट को दान कर दिया। द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा सत्यापित रिकॉर्ड के अनुसार यह खतौनी में सूचीबद्ध था और 3 सितंबर 1996 को ट्रस्ट के नाम पर दर्ज किया गया।

द इंडियन एक्सप्रेस  द्वारा की गई जांच में पता चला कि यह पूरी जमीन ट्रस्ट द्वारा रोंघई के माध्यम से लगभग 6.38 लाख रुपये में खरीदी गई थी। मौजूदा सर्कल रेट (अगस्त 2017 से लागू) के अनुसार इस जमीन का लगभग मूल्य 3.90 करोड़ रुपये से लेकर 8.50 करोड़ रुपये के बीच है।

महादेव नाम का शख्स भी उन दलित लोगों में शामिल है जिसकी जमीन रोंघई के द्वारा खरीदी गई और बाद में ट्रस्ट को दान कर दिया गया। महादेव के अनुसार उनका 3 बीघा जमीन खरीदा गया था और इसके लिए उसे 1.02 लाख रुपए मिले। सितंबर 2019 में जब ट्रस्ट ने रोंघई के माध्यम से खरीदी गई जमीन को बेचना शुरू किया तो उसने जमीन को अवैध रूप से स्थानांतरित करने की शिकायत राजस्व बोर्ड से की।  

महादेव की शिकायत पर इस मामले की जांच के लिए अतिरिक्त आयुक्त शिव पूजन और तत्कालीन अतिरिक्त जिलाधिकारी गोरेलाल शुक्ला के नेतृत्व में एक कमेटी गठित की गई। रिकॉर्ड के अनुसार  

1 अक्टूबर, 2020 को तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट अनुज कुमार झा ने इस समिति की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी थी। जिसमें अपंजीकृत दान पत्र के माध्यम से अनुसूचित जाति के व्यक्ति की जमीन अवैध रूप से स्थानांतरित करने को लेकर ट्रस्ट और कुछ सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई थी।

18 मार्च, 2021 को अयोध्या के आयुक्त एमपी अग्रवाल द्वारा इसकी मंजूरी भी दी गई और 22 अगस्त को अयोध्या में सहायक रिकॉर्ड अधिकारी (एआरओ) भान सिंह की अदालत में इस साल 6 अगस्त को एक मामला भी दायर किया गया था। राजस्व आदेशों के पुनरीक्षण के लिए दायर आवेदनों के अपीलीय प्राधिकारी एमपी अग्रवाल ने भी जांच रिपोर्ट को कार्रवाई के लिए राजस्व बोर्ड को भेजा था। जबकि उनके रिश्तेदारों ने भी ट्रस्ट से जमीन खरीदी। दरअसल एमपी अग्रवाल के ससुर और साले ने भी 10 दिसंबर 2020 को बरहटा मांझा गांव में ट्रस्ट से क्रमश: 2,530 वर्ग मीटर और 1,260 वर्ग मीटर जमीन खरीदी थी।

तत्कालीन मुख्य राजस्व अधिकारी (सीआरओ) पुरुषोत्तम दास गुप्ता और पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) दीपक कुमार के करीबी रिश्तेदार ने भी ट्रस्ट से 12 अक्टूबर, 2021 को 1,130 वर्ग मीटर और 1 सितंबर, 2021 को 1,020 वर्ग मीटर खरीदा। पुरुषोत्तम दास गुप्ता लगभग तीन वर्षों तक अयोध्या में मुख्य राजस्व अधिकारी थे। सीआरओ के रूप में वे अयोध्या में जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सौंपे गए सभी भूमि मामलों के लिए जिम्मेदार थे।

बरहटा मांझा गांव में ट्रस्ट से जमीन खरीदने वाले लोगों में अयोध्या जिले के गोसाईगंज से विधायक इंद्र प्रताप तिवारी और सेवानिवृत आईएएस अधिकारी उमाधर द्विवेदी का नाम भी शामिल है। भाजपा विधायक इंद्र प्रताप तिवारी ने 18 नवंबर, 2019 को 2,593 वर्ग मीटर और उमाधर द्विवेदी ने 23 अक्टूबर, 2021 को 1,680 वर्ग मीटर जमीन खरीदी।

इन अधिकारियों के रिश्तेदारों द्वारा खरीदी गई जमीन विवादित 21 बीघे का हिस्सा नहीं है लेकिन स्थानीय अधिकारियों के अनुसार इस सभी मामलों में विक्रेता ट्रस्ट ही है। जिसके ऊपर जमीन विवाद में मामला दर्ज है।  

ट्रस्ट ने जिस रोंघई के माध्यम से दलित समुदाय से जमीन खरीदी वह अपने परिवार के साथ प्रयागराज से करीब 25 किलोमीटर दूर सहवपुर गांव में रहता है। इस मामले को लेकर जब रोंघई से संपर्क करने की कोशिश की गई तो वे अपने घर पर मौजूद नहीं थे। रोंघई की पत्नी घब्रेन और बहू कछराही ने कहा कि उनके पास 2 बीघा से भी कम जमीन है। साथ ही उन्होंने कहा कि वे अयोध्या की किसी जमीन के बारे में नहीं जानते हैं और न ही उन्हें किसी तरह के लेनदेन के बारे में पता है। वह कई सालों से अयोध्या गए भी नहीं है।

इसी मामले को लेकर जब भूमि विवाद की शिकायत करने वाले महादेव से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि हमने जमीन का एक हिस्सा बेच दिया था लेकिन ट्रस्ट ने कई वर्षों तक इसका कब्जा नहीं लिया था। हमें तब पता चला जब प्रॉपर्टी डीलरों ने हमें बताया कि उन्होंने जमीन खरीद ली है। वे इसके साथ लगी हुई उस जमीन पर भी कब्जा करना चाहते थे जिसे मैंने नहीं बेचा था।

Courtesy Source: WebsiteLink. द इंडियन एक्सप्रेस- श्यामलाल यादव, संदीप सिंह. (Taken as it is available on Internet)

News Desk

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