Gyanvapi Case: तहखाने में पूजा रोकने को मुस्लिम पक्ष हाईकोर्ट पहुंचा
Gyanvapi Case वाराणसी की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद स्थित व्यास जी के तहखाने में हिंदू पक्ष को पूजा का अधिकार दिया था. 31 साल बाद वहां पहली बार पूजा की गई. जिसे रोकने की मांग को लेकर मुस्लिम पक्ष अब हाईकोर्ट पहुंच गया है. अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की है और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की मांग की है.
जैसे ही यह खबर सामने आई, व्यास जी परिवार के शैलेंद्र पाठक भी हाईकोर्ट पहुंच गए. उन्होंने कैविएट दाखिल कर याचिका पर उन्हें भी सुनवाई का अवसर देने की मांग की. मुस्लिम पक्ष ने जिला अदालत में भी एक अर्जी दी है, जिसमें पूजा को कम से कम 15 दिन के लिए रोकने की गुहार लगाई गई है.
इसके पीछे हाईकोर्ट में अपील की दलील दी गई है. मसाजिद कमेटी के लोगों का कहना है कि जब मामला हाईकोर्ट में पहुंच गया है, तो एक बार वहां फैसला हो जाने दिया जाए. इसके बाद अदालत जो कहेगी उसके हिसाब से होगा. डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में इस पर 5 फरवरी को सुनवाई होनी है.
इससे पहले डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के आदेश के बाद जिला प्रशासन ने आधी रात को ज्ञानवापी परिसर की बैरिकेडिंग हटाई थी. कर्मकांडी गणेश्वर शास्त्री और मंदिर के अधिकारी कौशल राज शर्मा ने वहां पूजा की.
वाराणसी के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने हाल ही में ज्ञानवापी मस्जिद स्थित व्यास जी के तहखाने में हिंदू पक्ष को पूजा का अधिकार देने का फैसला किया है। इसके बाद से ही चर्चा और इस पर विभिन्न तरीकों से अभिव्यक्ति का संचार हो रहा है। इस मामले के चारों ओर चर्चा की जा रही है, लेकिन इसे हिंदू-मुस्लिम संबंधों की नजर से देखा जा रहा है।
ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में हाईकोर्ट पहुंचे मुस्लिम पक्ष ने एक बार फिर से रोक लगाने की मांग की है। इस मुद्दे में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की है और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के फैसले को रोकने की मांग की है।
मस्जिद के पक्ष से यहां तक की गई मांगें जनमानस को एक बार फिर से सोचने पर मजबूर कर रही हैं। हाईकोर्ट की सुनवाई के बाद ही फैसला होगा, इसे अपना इंतजार करना चाहिए।
इस मामले के पीछे की रूपरेखा में देखा जाए, तो 1991 में तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार के आदेश पर व्यासजी के तहखाने में पूजा बंद करवा दी गई थी और वहां लोहे की बैरिकेडिंग कर दी गई थी। इसके बाद से ही हिंदुओं के बीच में आक्रोश था।
इस मामले में आए फैसले ने हिंदू-मुस्लिम संबंधों को एक नए मोड़ पर ले जाने का प्रयास किया है। हार-जीत, जीत-हार की नहीं, बल्कि सांविदानिक मूल्यों और समर्थन की भावना का होना चाहिए। हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की बातें कहने के बजाय, इस मामले को सांविदानिक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए।
गंगा-जमुना तहज़ीब की चरम सीमा पर होने वाले इस मुद्दे को हमें सांविदानिक दृष्टिकोण से ही देखना चाहिए। हर धर्म और सम्प्रदाय को उनके अपने अधिकार और स्वतंत्रता का आनंद लेने का अधिकार है, लेकिन इसके साथ ही उन्हें दूसरों के अधिकारों का सम्मान करना भी आवश्यक है।
इस मुद्दे को राजनीतिक रंग में ना देखकर, हमें इसे सांविदानिक दृष्टिकोण से ही समझना चाहिए। अगर हम एक दूसरे की भावनाओं और संवेदनाओं का सम्मान करना सीखते हैं, तो हम सभी मिलकर एक सशक्त और समृद्धि शील समाज की ओर बढ़ सकते हैं।
इस दिवंगत विषय पर लोगों को शिक्षा देना और उन्हें सांविदानिक मूल्यों की महत्ता के प्रति जागरूक करना हम सभी की जिम्मेदारी है। इससे ही हम अद्भुत भारतीय सांस्कृतिक विरासत को समृद्धि और समाधान की दिशा में बढ़ा सकते हैं।
नोट: यह Article सांविदानिक दृष्टिकोण से ही लिखा गया है और किसी धार्मिक या राजनीतिक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करने का उद्देश्य नहीं है।