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सोमवती और हरियाली अमावस्या का संयोग

सावन सोमवार यानी  20 जुलाई को सोमवती और हरियाली अमावस्या का संयोग बन रहा है। इससे पहले 31 जुलाई 2000 में सोमवती और हरियाली अमावस्या एक साथ थी।

इस साल हरियाली अमावस्या के दिन चंद्र, बुध, गुरु, शुक्र और शनि ग्रह अपनी-अपनी राशियों में रहेंगे। ग्रहों की इस स्थिति का शुभ प्रभाव कई राशियों पर देखने को मिलेगा। इस व्रत में महिलाओं द्वारा तुलसी की 108 परिक्रमाएं की जाती हैं।

सावन महीने की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरियाली अमावस्या कहा जाता हैं। इस अमावस्या का संबंध प्रकृति, पितृ और भगवान शंकर से है। तीनों लोक से संबंध होने के कारण इस अमावस्या का अपना विशेष महत्व है।

हरियाली अमावस्या व्रत कथा
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एक राजा था। उसके एक बेटा बहू थे। बहू ने एक दिन मिठाई चुरा कर खा ली और नाम चूहे का ले लिया, यह सुनकर चूहे को गुस्सा आया, और उसने मन में विचार किया कि चोर को राजा के सामने लेकर आऊंगा। एक दिन राजा के घर में मेहमान आये थे, और वह राजा के कमरे में सोये थे, चूहे ने रानी के कपड़े ले जाकर मेहमान के पास रख दिये। सुबह उठकर सब लोग आपस में बात करने लगे कि छोटी रानी के कपड़े मेहमान के कमरे में मिले।

यह बात जब राजा ने सुनी तो उस रानी को घर से निकाल दिया। वह रोज शाम को दीया जलाती और ज्वार बोती थी। पूजा करती गुडधानी का प्रसाद बाँटती थी। एक दिन राजा शिकार करके उधर से निकले तो राजा की नजर उस रानी पर पड़ी। राजा ने घर आकर कहा कि आज तो झाड़ के नीचे चमत्कारी चीज हैं, अपने झाड़ के ऊपर जाकर देखा तो दीये आपस में बात कर रहे थे।

आज किसने क्या खाया, और कौन क्या है। उस में से एक दीया बोला आपके मेरे जान पहचान के अलावा कोई नहीं है, आपने तो मेरी पूजा भी नहीं की और भोग भी नहीं लगाया बाकी के सब दिये बोले ऐसी क्या बात हुई तब दिया बोला मैं राजा के घर का हूँ उस राजा की एक बहू थी उसने एक बार मिठाई चोरी करके खा ली और चूहे का नाम ले लिया।

जब चूहे को गुस्सा आया तो रानी के कपड़े मेहमान के कमरे में रख दिये। राजा ने रानी को घर से निकाल दिया। वह रोज मेरी पूजा करती थी भोग लगाती थी। उसने रानी को आशीर्वाद दिया और कहा कि सुखी रहे। फिर सब लोग झाड़ पर से उतर कर घर आये और कहा कि रानी का कोई दोष नहीं था। राजा ने रानी को घर बुलाया और सुख से रहने लगे।

हरियाली अमावस्या की पूजा विधि 
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महिलाओं को सुबह उठकर पूरे विधि विधान से माता पार्वती एवं भगवान शंकर की पूजा करनी चाहिए तथा सुहागन महिलाओं को सिंदूर सहित माता पार्वती की पूजा करना चाहिए और सुहाग सामग्री बांटना चाहिए। ऐसा मानना है कि हरी चूड़ियां, सिंदूर, बिंदी बांटने से सुहाग की आयु लंबी होती है और साथ ही घर में खुशहाली आती है। अच्छे भाग्य के उद्देश्य से लड़के भी चूड़ियां, मिठाई आदि सुहागन स्त्रियों को भेंट कर सकते हैं लेकिन यह कार्य दोपहर से पहले कर लेना चाहिए।

हरियाली अमावस्या के दिन भक्तों को पीपल और तुलसी के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा एवं फेरे किये जाते है तथा मालपुए का भोग बनाकर चढाये जाने की परंपरा है। धार्मिक ग्रंथों में पर्वत और पेड़-पौधों में भी ईश्वर का वास बताया गया है। पीपल में त्रिदेवों का वास माना गया है। आंवले के पेड़ में स्वयं भगवान श्री लक्ष्मीनारायण का वास माना जाता है।

इस दिन कई लोग उपवास भी रखते हैं। इसके बाद शाम को भोजन ग्रहण कर व्रत तोड़ा जाता है। मान्यता है कि जो लोग श्रावण मास की अमावस्या को व्रत करते हैं, उन्हें धन और वैभव की प्राप्ति होती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान के बाद ब्राह्मणों, ग़रीबों और वंचितों को यथाशक्ति दान-दक्षिणा करनी चाहिए।

हरियाली अमावस्या का महत्व
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सावन महीने का सीधा संबंध भगवान शंकर और माता पार्वती से है। इस अमावस्या के दिन माता पार्वती के साथ भगवान शंकर की पूजा का विशेष महत्व है। कुंवारी कन्याओं को विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए भगवान शंकर और माता पार्वती को लाल वस्त्र अर्पण करके उनका फल और मिष्टान से पूजन करना चाहिए।

हरियाली अमावस्या पर महिलाओ द्वारा हरे रंग के कपड़े पहने का विशेष महत्व है, इस दिन महिलाएँ झूले झूलती है, पिकनिक मनाती है, सखियों के साथ अठखेलिय करती है। विभिन्न संस्थाओं द्वारा विशेष आयोजन भी आयोजित किये जाते है, और वृक्षारोपण का कार्य भी भारी मात्रा में किया जाता है।

वर्षो पुरानी परंपरा के निर्वाहन के लिए हरियाली अमावस्या के दिन एक नये पौधे लगाना शुभ माना जाता है। यह पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण से मुक्ति के उद्देश्य से हर साल मनाई जाती है। इस दिन सवेरे किसी पवित्र जलाशय या नदी में स्नान करके नीम, आँवला, तुलसी, पीपल, वटवृक्ष और आम के पेड़ लगाने का विशेष महत्व है।

जैसा की नाम से पता चलता है, हरियाली से संबंधित इसलिए हरियाली अमावस्या मनुष्य को प्रकृति से जोड़ने का पर्व भी कहा जाता है। भक्त को अपनी राशि के अनुसार वृक्षारोपन करना चाहिए, और यदि राशि से संबंधित पौधे ना मिले तो तुलसी, आम या शमी का पेड़ भी लगाया जा सकता है। अत: इस दिन किसी वृक्ष को किसी भी प्रकार का नुकसान नही पहुँचाया जाना चाहिए।

भगवान शिव की अराधना को समर्पित सावन के पवित्र माह में सावन सोमवार व अमावस्या के जलाभिषेक का विषेश महत्व है। लेकिन अमावस्या यदि सोमवार को हो यानी सोमवती अमावस्या हो तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।

इस बार दशकों बाद सावन के तीसरे सोमवार को विशेष मुहूर्त में आज 20 जुलाई को सोमवती अमावस्या पड़ रही है। इस अमावस्या को हरियाली अमावस्या भी कहते है। कहा जाता है कि 20 साल पहले ऐसा शुभ संयोग बना था।

सोवमती अमावस्या के दिन भगवान शिव, पार्वती, गणेजी और कार्तिकेय की पूजा की जाती है। सावन सोमवार और सावन की सोमवती अमावस्या को पूजा-पाठ करने और जलाभिषेक का विशेष फल प्राप्त होता है।

बहुत से भक्त भगवान शिव की असीम कृपा पाने के लिए सोमवती अमावस्या को व्रत भी रखते हैं। अमावस्या को महिलाएं तुलसी/पीपल के पेड़ की 108 परिक्रमा भी करती हैं।

कई इलाकों पर अमावस्या के दिन पितर देवताओं की पूजा करने और श्राद्ध करने की भी परंपरा है। मान्यता है कि इससे अज्ञात तिथि पर स्वर्गलोक वासी हुए पूर्वजों को मुक्ति मिलती है।

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धर्म के गूढ़ रहस्यों और ज्ञान को जनमानस तक सरल भाषा में पहुंचा रहे श्री रवींद्र जायसवाल (द्वारिकाधीश डिवाइनमार्ट,वृंदावन) इस सेक्शन के वरिष्ठ सामग्री संपादक और वास्तु विशेषज्ञ हैं। वह धार्मिक और ज्योतिष संबंधी विषयों पर लिखते हैं।

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