सिविल बार एसोसिएशन की आम सभा: हाई कोर्ट बेंच की मांग को लेकर की बैठक
मुजफ्फरनगर। सिविल बार एसोसिएशन मुजफ्फरनगर के महासचिव ब्रिजेंद्र सिंह मलिक ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि सिविल बार एसोसिएशन, मुजफ्फरनगर की आम सभा हाई कोर्ट बेंच स्थापना केंद्रीय संघर्ष समिति पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रस्ताव दिनांक 8 जुलाई के अनुपालन में एक सभा आहूत की गई
जिसकी अध्यक्षता श्री सुगंध जैन अध्यक्ष व संचालन ब्रिजेंद्र सिंह मलिक महासचिव सिविल बार एसोसिएशन, मुजफ्फरनगर द्वारा किया गया जिसमें मुख्यत बार काउंसिल ऑफ इंडिया पारित संशोधन जो प्रथम दृष्टया पूर्णतया संविधान के लोकतांत्रिक नियमों व उच्चतम न्यायालय के प्रतिपादित सिद्धांतों के विरुद्ध है, के बिंदु पर विचार विमर्श किया गया।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा निम्न संशोधन किए गए है
खंड क – अधिवक्ताओं का समाज और बार के प्रति कर्तव्य –
अधिवक्ता अधिनियम , १९६१ की धारा ४९ (१)(सी) के तहत एक अधिवक्ता अपने दैनिक जीवन में स्वयं को एक सज्जन पुरुष/ सज्जन महिला के रूप में आचरण करेगा और वह कोई भी गैरकानूनी कार्य नहीं करेगा
वह प्रिंट इलेक्ट्रॉनिक या सोशल मीडिया में कोई ऐसा बयान नहीं देगा जो कि किसी भी न्यायालय या अधिवक्ता अधिनियम, १९६१ की धारा ४९ न्यायाधीश या न्यायपालिका के किसी सदस्य के विरुद्ध हो या राज्य विधिज्ञ परिषद के विरुद्ध अभद्र या अपमानजनक दुर्भावनापूर्ण या शरारत पूर्ण भावना से ऐसे आचरण को कदाचार माना जाएगा और कोई वकील भारतीय विधिज्ञ परिषद के किसी आदेश या किसी भी संकल्प का किसी भी तरह से जानबूझकर उल्लंघन या अवहेलना या अवहेलना में संलग्न हो सकेगा यदि संलग्न हुआ तो उसे कदाचार माना जाएगा
उपरोक्त कार्य /आचरण को कदाचार माना जाएगा और इस प्रकार के आचरण /उल्लंघन यह अधिवक्ता अधिनियम १९६१ की धारा ३६ या ३६ के तहत कार्यवाही करने के लिए उत्तरदाई बनाएगा।
इस बिंदु पर अधिवक्ताओं द्वारा अपने विचार व्यक्त करते हुए यह कहा गया कि उपरोक्त संशोधन के अनुसार अधिवक्ता बार काउंसिल ऑफ इंडिया एवं राज्य विधिज्ञ परिषद के नियमों को चुनौती नहीं दे सकेंगे और यदि किसी अधिवक्ता द्वारा ऐसा कार्य किया जाता है तो वह प्रोफेशनल मिसकंडक्ट की श्रेणी में आएगा
अधिवक्ताओं को संविधान में प्रदत्त बोलने/ विचार करने की स्वतंत्रता को उपरोक्त संशोधनों के द्वारा समाप्त कर दिया गया है। अधिवक्ताओं द्वारा अपने विचार व्यक्त करते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा पारित किए गए संशोधनों को अविलंब वापस किए जाने पर जोर दिया गया
इस अवसर पर अशोक कुशवाह, राज सिंह रावत, प्रवीण खोकर, सुधीर गुप्ता, अनिल दीक्षित, डॉक्टर मीरा सक्सेना, विजेंद्र प्रताप, सतेंद्र कुमार, आदेश सैनी, रामवीर सिंह, सौरभ पवार, सोहनलाल, राकेश पाल आदि अधिवक्ता उपस्थित रहे।