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Narendra Dabholkar हत्याकांड में आया फैसला, सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को आजीवन कारावास की सजा

महाराष्ट्र के पुणे की एक विशेष अदालत अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले कार्यकर्ता Narendra Dabholkar की हत्या के मामले में शुक्रवार को अपना फैसला सुनाया. अदालत ने आरोपी वीरेंद्रसिंह तावड़े, संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे को बरी कर दिया है जबकि आरोपी सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. आपको बता दें कि नरेंद्र दाभोलकर को 20 अगस्त 2013 को पुणे में गोली मार दी गई थी.

Narendra Dabholkar  हत्या की साजिश के मास्टरमाइंड बताए जा रहे डॉ. वीरेंद्र तावड़े सहित दो अन्य आरोपी को कोर्ट ने बरी कर दिया है. इन्हें सबूतों के अभाव में बरी किया गया है. वहीं दाभोलकर पर गोली चलाने वाले सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. इनपर 5 लाख का जुर्माना भी अदालत ले लगाया है.

पुणे के ओंकारेश्वर ब्रिज पर सुबह की सैर पर निकले Narendra Dabholkar की 20 अगस्त 2013 को अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. मामले में पांच लोगों को आरोपी बनाया गया था. विशेष लोक अभियोजक प्रकाश सूर्यवंशी ने गुरुवार को बताया था कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम से जुड़े मामलों की विशेष अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ए.ए. जाधव संभवत: शुक्रवार को फैसला सुनाएंगे. केस के दौरान अभियोजन पक्ष ने 20 गवाहों जबकि बचाव पक्ष ने दो गवाहों से सवाल-जवाब किए थे.

शुरुआत में इस मामले की जांच पुणे पुलिस कर रही थी, लेकिन बंबई हाई कोर्ट के आदेश के बाद 2014 में सीबीआई ने मामले को अपने हाथ में ले लिया. इसके बाद जून 2016 में हिंदू दक्षिणपंथी संगठन सनातन संस्था से जुड़े डॉ. वीरेंद्र सिंह तावड़े को गिरफ्तार किया गया. अभियोजन पक्ष के अनुसार, तावड़े हत्या के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक था.

नरेंद्र दाभोलकर की हत्या की घटना ने भारतीय समाज में गहरी चिंता और आलोचना का विषय बनाया है। दाभोलकर एक प्रमुख समाज सुधारक और अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले कार्यकर्ता थे, जिनका उद्देश्य लोगों को जागरूक करना और बुराइयों से निपटने के लिए था। उनकी हत्या का मामला गंभीर था, जो एक सामाजिक और नैतिक मुद्दे के रूप में समाज में बड़ा प्रश्न उठाता है।

दाभोलकर की हत्या में दो आरोपी, सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर, को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। इसके साथ ही, तीन अन्य आरोपी, वीरेंद्रसिंह तावड़े, संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे, को बरी कर दिया गया है। इस मामले में सुनाई गई सजा का एक महत्वपूर्ण संकेत है कि भारतीय समाज अब अंधविश्वास और उसके प्रभावों के खिलाफ ज़्यादा सहमत हो रहा है।

नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के पीछे एक बड़ा अंधविश्वास था, जिसमें कुछ लोग उन्हें जान से मारने का दोषी मानते थे। यह अंधविश्वास उस समय के भारतीय समाज की सोच का एक प्रतिनिधित्व करता है, जब लोग भूत-प्रेत, जादू-टोना और अन्य अज्ञात शक्तियों में विश्वास करते थे। यह घटना साबित करती है कि अंधविश्वास एक समाज के विकास को रोकने वाला कारक हो सकता है और उसे एक अच्छे और प्रगतिशील मार्ग पर ले जाने में बाधा डाल सकता है।

इस मामले में सुनाई गई सजा समाज में एक संदेश के रूप में काम कर सकती है। यह संदेश है कि अंधविश्वास और उसके प्रभावों के खिलाफ लड़ाई में समाज एकजुट है और इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। इससे सामाजिक और नैतिक मूल्यों की रक्षा करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा मिलती है और लोगों को सच्चाई और विज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।

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