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ज्योतिष के 9 उपग्रह परिचय एवं फल

भारतीय वैदिक ज्योतिष के ग्रंथो में मुख्य रूप से नव ९ उपग्रहों का वर्णन मिलता है। ग्रहो का ग्रह ही उपग्रह कहलाता है। जिस प्रकार ग्रह जिस भाव में होता है अपने सामर्थ्यानुसार उस भाव से सम्बंधित फल देता है उसी प्रकार उपग्रह भी जन्मकुंडली के जिस भाव में होगा

उसके अनुसार शुभ और अशुभ फल प्रदान करता है। गुलिक अथवा मांदी शनिदेव का उपग्रह माना गया है। इन्हे शनिदेव का पुत्र भी कहा जाता है।

जिस प्रकार शनि देव की गणना अशुभ ग्रह के रूप में होती है उसी प्रकार गुलिक वा मांदी को भी पापी, क्रूर तथा कष्ट देने वाला ग्रह माना गया है।

1. गुलिक अथवा मांदी :- गुलिक उपग्रह का प्रभाव शनि की तरह होता है। इसे शनि का उपग्रह भी माना गया है। गुलिक का फल शुभ नहीं कहा गया है प्राय जिस भाव में बैठता है उस भाव के फल को खराब ही करता है। गुलिक केवल छठे तथा ग्यारहवे भाव में शुभ फल प्रदान करता है।

2 . यम कंटक :– यमकंटक गुरु ग्रह कि तरह ही शुभ फल प्रदान करता है। इस उपग्रह के अंदर शुभता होती है। यम कंटक जिस भाव, ग्रह इत्यादि से सम्बन्ध बनाता है उस भाव /ग्रह आदि के शुभ फलो कि वृद्धि करता है।

3 . अर्धप्रहर :– अर्धप्रहर उपग्रह का स्वभाव बुध ग्रह कि तरह होता है। अर्धप्रहर जिस भाव में हो यदि उस भाव कोअष्टक वर्ग में अधिक बिंदु प्राप्त है तब उस भाव के शुभ फलो कि वृद्धि होती है।

4 . काल :–इसका स्वभाव राहू कि ही तरह होता है या यू कहे की काल राहु का उपग्रह है।

5 . धूम :– धूम उपग्रह का गुण मंगल ग्रह की तरह होता है। इसका प्रभाव अग्नि, विस्फोट,देह में जलन ,गर्मी ,मन में घबराहट बेचैनी आदि बताता है। लग्न /लग्नेश पर यदि धूम का प्रभाव है तो उपर्युक्त फल की सम्भावना बढ़ जाती है।1. गुलिक अथवा मांदी :- गुलिक उपग्रह का प्रभाव शनि की तरह होता है। इसे शनि का उपग्रह भी माना गया है। गुलिक का फल शुभ नहीं कहा गया है प्राय जिस भाव में बैठता है उस भाव के फल को खराब ही करता है। गुलिक केवल छठे तथा ग्यारहवे भाव में शुभ फल प्रदान करता है।

2 . यम कंटक :– यमकंटक गुरु ग्रह कि तरह ही शुभ फल प्रदान करता है। इस उपग्रह के अंदर शुभता होती है। यम कंटक जिस भाव, ग्रह इत्यादि से सम्बन्ध बनाता है उस भाव /ग्रह आदि के शुभ फलो कि वृद्धि करता है।

3 . अर्धप्रहर :– अर्धप्रहर उपग्रह का स्वभाव बुध ग्रह कि तरह होता है। अर्धप्रहर जिस भाव में हो यदि उस भाव कोअष्टक वर्ग में अधिक बिंदु प्राप्त है तब उस भाव के शुभ फलो कि वृद्धि होती है।

4 . काल :–इसका स्वभाव राहू कि ही तरह होता है या यू कहे की काल राहु का उपग्रह है।

5 . धूम :– धूम उपग्रह का गुण मंगल ग्रह की तरह होता है। इसका प्रभाव अग्नि, विस्फोट,देह में जलन ,गर्मी ,मन में घबराहट बेचैनी आदि बताता है। लग्न /लग्नेश पर यदि धूम का प्रभाव है तो उपर्युक्त फल की सम्भावना बढ़ जाती है।6 . व्यतीपात :– जिस प्रकार किसी धारदार हथियार से कष्ट होता है उसी तरह व्यतिपात उपग्रह का प्रभाव होता है। व्यतिपात हमें वाहन दुर्घटना ,जानवरों से कष्ट इत्यादि की ओर संकेत करता है। यदि लग्न अथवा लग्नेश या दोनों पर व्यतिपात का प्रभाव है तो ऐसे फल कि सम्भावना बढ़ जाती है

7 . परिवेष/परिधि :– यदि परिधि का सम्बन्ध लग्न /लग्नेश से होता है तो जातक को लीवर ,किडनी कि समस्या ,जलोदर रोग, जल से दुर्घटना ,पेट में पानी भर जाना, धातु कि बीमारी ,जल में डूबने का भय ,जेल जाने इत्यादि की ओर संकेत करता है। अतः जातक को उपर्युक्त कष्ट से बचने का उपाय करना चाहिए।

8 . इंद्रचाप :– इसका प्रभाव लग्न /लग्नेश से होने पर,किसी भारी वस्तु के शरीर के ऊपर गिर जाने से या किसी वाहन से गिर कर चोट लगने कि सम्भावना होती है। ऐसे जातक को आंधी तूफान के समय किसी अधबने /कच्चे मकान के या किसी पेड़ के नीचे आश्रय नहीं लेनी चाहिए।

9 . उप केतु :- यदि उपग्रह किसी भी तरह लग्न अथवा लग्नेश से होता है तो वह जातक धोखा, षड्यंत्र , बिजली के गिरने से कष्ट इत्यादि का शिकार होता है।ज्योतिष में 9 उपग्रह कौन कौन है
फलदीपिका में उपग्रह को नमस्कार करते हुए ग्रंथकार कहते है —

नमामि मांदी यमकंटकाख्यमर्द्धप्रहारं भुवि कालसंज्ञम।
धूमव्यतीपात परिध्यभिख्यान उपग्रहानिन्द्र धनुश्च केतून।।

गुलिक | मांदी
यमकंटक
अर्धप्रहर
काल
धूम
व्यतिपात
परिवेश | परिधि
इन्द्रचाप
उपकेतुमहर्षि पाराशर द्वारा धूम आदि अप्रकाश उपग्रह संज्ञा से धूम, व्यतिपात, परिवेश, इंद्रधनु, ध्वज इन पांचो की और चर्चा कर इनके गणित का आधार स्पष्ट सूर्य बताया है।

1 – स्पष्ट सूर्य मे 4 राशि 13 अंश 20 कला जोड़ने पर धूम स्पष्ट होता है।
2 – धूम स्पष्ट को 12 राशि मे से घटाने पर व्यतिपात स्पष्ट होता है।
3 – व्यतिपात स्पष्ट मे छह राशि जोड़ने पर परिवेष स्पष्ट होता है।
4 – परिवेश स्पष्ट को 12 राशि मे से घटाने पर इंद्रचाप स्पष्ट होगा।
5 – इन्द्र चाप मे 16 अंश 40 कला जोड़ने पर ध्वज स्पष्ट होगा।
⥁ यदि ध्वज मे एक राशि जोड़ेगे तो जो सूर्य स्पष्ट है वह आ जावेगा।

गुलिकादि समूह मे चार उपग्रह काल, अर्द्ध प्रहार, यमघण्ट और गुलिक की गणना दिन या रात के आठ भागो पर ग्रहो के स्वामित्व के आधार पर की जाती है।

ये उपग्रह सूर्य, बुध, गुरु, शनि की उन विपरीत शक्तियो की और संकेत करते है, जो जीवन में अवरोध पैदा करती है।इनमे 1- गुलिक को मांदी या मन्दात्मज, 2- यमघण्ट को यमकंटक या यमकष्टक, 3- अर्द्ध प्रहार को अर्द्ध याम या अर्द्ध प्रहर, 4- काल को सूर्य, 5- धूम को मृत्यु, 6-पात को व्यतिपात, 7- परिध को परिधि, 8- इन्द्रचाप को चाप या कोदण्ड या कार्मुख, उप केतु को शिखी भी कहते है।

प्रमुख नव ग्रह के ये उपग्रह इस प्रकार है। 1- सूर्य – काल, 2-चंद्र – परिध, 3- मंगल – धूम, 4- बुध – अर्द्ध प्रहार, 5- गुरु – यमघण्ट, 6- शुक्र – इंद्रचाप, 7- शनि – गुलिक, 8- राहु – पात, 9- केतु – शिखी।

शास्त्रो मे इन उपग्रहो को मुख्यतया दो समूहो धूमादि तथा गुलिकादि मे बांटा गया है। धूमादि समूह मे धूम, व्यतिपात, परिध, इन्द्रचाप, उपकेतु ये पांच उप ग्रह आते है जिनकी गणना बृहतपाराशर होरा शास्त्र अनुसार सूर्य की स्थिति से की जाती है।

इस समूह मे धूम के धुंए मे मृत्यु का रूप छिपा है, तो व्यतिपात की छाया अचानक टूट पड़ने वाले दुःखो के पहाड़ की ओर संकेत करती है। परिध मानव जीवन मे तमस भरे आलस्य को उजागर करती है।

दशम भाव पर पड़ी छाया मे उत्पन्न जातक समय पर कोई भी कार्य नही कर पाते है। इंद्रचाप जीवन मे सुख-सुविधा की वजह से अशान्ति के भेद खोलता है

तो उपकेतु विफलता के कारण असमय मन की विरक्ति की ओर संकेत करता है। ये सभी उपग्रह जातक की जन्म कुण्डली मे मंगल, राहु, चंद्र, शुक्र, केतु के विपरीत प्रभाव को दर्शाते है।बृहतपाराशर अनुसार उपग्रहो मे शनि का अंश गुलिक, बृहस्पति का अंश यमघंट, मंगल का अंश धूम, सूर्य का अंश काल, बुध का अंश अर्द्ध प्रहार कहा है।

यानि इन उप ग्रहो को ग्रहो का अंश (पुत्र) कहा है और चन्द्र तथा शुक्र का कोई अंश नही माना है। इन उप ग्रहो को स्पष्ट करने की विधि बृहतपाराशर अनुसार इस प्रकार है।

उपग्रह स्पष्ट करने हेतु नियम :
● जो वारेश है उससे गणना की जाती है। दिन मे वारेश के उपग्रह से गणना तथा रात्रि मे वारेश से पांचवे वारेश के उपग्रह से गणना की जाती है।
● दिनमान मे 8 का भाग देने पर लब्धि घटी पल मे वारेश अनुसार उपग्रहो की गणना होती है। घटी पल अनुसार जो लग्न (राशि) स्पष्ट हो उस पर वह उपग्रह होगा।
● इसी प्रकार रात्रिमान मे 8 का भाग देने पर लब्धि घटी पल मे वारेश अनुसार उपग्रहो की गणना होगी। रात्रि मे पांचवे खण्ड से गणना होती है।
● वार सात होते है। एक एक खण्ड एक-एक ग्रह का उपग्रह है। आठवे खण्ड का कोई स्वामी नही होता है इसे निरीश भी कहते है। वारो का क्रम और उनके उपग्रहो का क्रम इस प्रकार है। 1- सूर्य – काल, 2-चंद्र – परिध, 3- मंगल – धूम, 4- बुध – अर्द्ध प्रहार, 5- गुरु – यमघण्ट, 6- शुक्र – इंद्रचाप, 7- शनि – गुलिकउदहारण : दिन मे उपग्रह

दिन मे उपग्रह सारिणी
यहा दिन रविवार और दिनमान 32 घटी माना है। दिनमान मे 8 का भाग देने पर प्रत्येक खण्ड चार-चार घटी का होगा। सूर्योदय पश्चात् 4 घटी तक जो लग्न स्पष्ट होगा वह काल उपग्रह, जो 8 घटी तक लग्न स्पष्ट आये वह परिध, 12 घटी तक जो लग्न स्पष्ट आये वह धूम, 16 घटी तक जो लग्न स्पष्ट आये

वह अर्द्ध प्रहार, 20 घटी तक जो लग्न स्पष्ट आये वह यमघण्ट, 24 घटी तक जो लग्न स्पष्ट आये वह कोदण्ड या इंद्रचाप, और 28 घटी तक जो लग्न स्पष्ट आये वह मांदी होगा।

रात्रि के समय जन्म हो, तो उपग्रह स्पष्ट करने के लिए प्रक्रिया मे अंतर है। रात्रि मे वारेश से पांचवे खंड से गणना प्रारम्भ करेगे। जैसे रात्रिमान 28 घटी है।

इसमे 8 का भाग देने पर प्रत्येक खण्ड 3 घटी 30 पल का होगा। रविवार को पहला उपग्रह खण्ड यमघण्ट का होगा।
संकेत : य = यमघण्ट, को = कोदण्ड,*

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धर्म के गूढ़ रहस्यों और ज्ञान को जनमानस तक सरल भाषा में पहुंचा रहे श्री रवींद्र जायसवाल (द्वारिकाधीश डिवाइनमार्ट,वृंदावन) इस सेक्शन के वरिष्ठ सामग्री संपादक और वास्तु विशेषज्ञ हैं। वह धार्मिक और ज्योतिष संबंधी विषयों पर लिखते हैं।

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