भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के विरोध के लिए चीन ने कम्युनिस्ट पार्टियों का इस्तेमाल किया: गोखले
विजय गोखले (पूर्व विदेश सचिव) ने हाल ही में रिलीज अपनी नई किताब में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को लेकर दावा किया है कि इसके विरोध के लिए चीन ने कम्युनिस्ट पार्टियों का इस्तेमाल किया था। गोखले ने इसे भारत की घरेलू राजनीति में चीन के राजनीतिक दखल की पहली घटना कहा है।
अपनी नई किताब द लॉन्ग गेमः हाऊ द चाइनीज निगोशिएट विद इंडिया में गोखले ने लिखा है कि तत्कालीन पीएम डॉ. मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार में लेफ्ट पार्टियों के प्रभाव को देखते हुए चीन ने शायद अमेरिका के प्रति भारत के झुकाव के बारे में उनके डर का इस्तेमाल किया। भारत की घरेलू राजनीति में चीन के दखल का यह पहला उदाहरण है।
किताब में जैश-ए-मोहम्मद चीफ मसूद अजहर के मामले का भी जिक्र है। गोखले ने लिखा कि कैसे चीन ने मसूद मामले में रूसियों का इस्तेमाल किया।
गोखले का कहना है कि 1998 के न्यूक्लियर टेस्ट के मुकाबले इस दौरान चीन की भारत के साथ बातचीत के लिए अपनाई गई स्थिति बिल्कुल उलट थी। पूर्व विदेश सचिव कहते हैं कि 123 डील और एनएसजी से भारत जिस स्पष्ट छूट की मांग कर रहा था, उसका जिक्र चीनियों ने कभी भी द्विपक्षीय बैठकों में नहीं किया।
कम्युनिस्ट नेता प्रकाश करात से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि परमाणु समझौते का हमने विरोध इसलिए किया क्योंकि यह भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक संबंधों को प्रगाढ़ कर रहा था। इसके केंद्र में सैन्य सहयोग था। यही कारण था कि उन्होंने विरोध किया। इस डील के बाद जो स्थिति आज बनी है, वह सबके सामने है। परमाणु समझौते से भारत को क्या मिला।
उन्हें लगता था कि परमाणु समझौता हुआ तो भारत पूरी तरह अमेरिका पर रणनीतिक रूप से निर्भर हो जाएगा। परमाणु समझौते पर चीन के साथ किसी भी तरह के संपर्क के बारे में प्रकाश करात ने सीधे तौर पर इनकार कर दिया। उनका कहना था कि हमारी इस बारे में कोई चर्चा नहीं हुई।