Maternity Care: सौभाग्यसूंठी पाक (Saubhagya Sunthi Pak)- प्रसव के बाद (post delivery) कैसे करे दूर कमजोरी?
Maternity Care: इसके (Saubhagya Sunthi Pak) सेवन से 80 प्रकार के वातरोग, 40 प्रकार के पित्तरोग, 20 प्रकार के कफ़रोग, 8 प्रकार के ज्वर, 18 प्रकार के मूत्ररोग तथा नासारोग, नेत्ररोग, कर्णरोग, मुखरोग, मस्तिष्क के रोग, बस्तिशूल व योनिशूल नष्ट हो जाते हैं। सर्दिंयों में इस दैवी पाक का विधिवत् सेवन कर नीरोगता और दीर्घायुष्य की प्राप्ति कर सकते हैं।
सामग्रीः सोंठ 250 ग्राम, गाय का घी 600 ग्राम, गाय का दूध 1 लीटर, शक्कर 2 किलो, किशमिश या चिरौंजी 50-50 ग्राम, हरे नारियल का खोपरा (गिरी) 400 ग्राम, छुआरा 20 ग्राम ।
औषधि द्रव्य: स्याहजीरा (काला जीरा), धनिया, लेंडीपीपर, नागरमोथ, विदारीकंद, शंखावली, ब्राह्मी, शतावरी, वचा, गोखरू, बला के बीज, तमालपत्र, पीपरामूल, अश्वगंधा व सफ़ेद मूसली 20-20 ग्राम, नागकेसर, चंदन, लौहभस्म व शिलाजीत 10-10 ग्राम्।
सुगंधित द्रव्य: सौंफ़ व इलायची 20-20 ग्राम, जायफ़ल, जावित्री व दालचीनी 10-10 ग्राम, केसर 5 ग्राम, केसर 5 ग्राम्।
विधिः लोहे की कडाही में घी को गर्म कर उसमें सौंठ को भून लें। सौंठ के सुनहरे लाल हो जाने पर उसमें दूध व शक्कर मिला दें तथा गाढा होने तक हिलाते रहें। बाद में किशमिश, चिरौंजी, खोपरा, छुआरा तथा उपरोक्त औषधि द्रव्यों का चूर्ण मिलाकर धीमी आंच पर मिश्रण को पकाते हुए सतत हिलाते रहें।
जब मिश्रण में से घी छुटने लगे, एवं मिश्रण का पिंड (गोला) बनने लगे, तब जायफ़ल, इलायची आदि सुगंधित द्रव्यों का चूर्ण मिलायें और मिश्रण को नीचे उतार लें। सुगंधित द्रव्यों को अंत में मिलाने से उनकी सुगंध बनी रहती है|
सेवन विधिः सुबह 10 ग्राम पाक दूध या सेवफ़ल अथवा किशमिश के पानी के साथ लें। उसके चार से छ: घंटे बाद भोजन करें।
भोजन में तीखे, खट्टे, तले हुए तथा पचने में भारी पदार्थ न लें। शाम को पुन: 10 ग्राम पाक दूध के साथ लें। लाभ: इस पाक के सेवन से बल, कांति, बुद्धि, स्मृति, उत्तम वाणी, सौंदर्य, सुकुमारता तथा सौभाग्य की प्राप्ति होती है। प्रसूति (maternity) माताओं को यह पाक देने से योनि, शैथिल्य दूर होता है, दूध खुलकर आता है।
इसके (Saubhagya Sunthi Pak) सेवन से 80 प्रकार के वातरोग, 40 प्रकार के पित्तरोग, 20 प्रकार के कफ़रोग, 8 प्रकार के ज्वर, 18 प्रकार के मूत्ररोग तथा नासारोग, नेत्ररोग, कर्णरोग, मुखरोग, मस्तिष्क के रोग, बस्तिशूल व योनिशूल नष्ट हो जाते हैं। सर्दिंयों में इस दैवी पाक का विधिवत् सेवन कर नीरोगता और दीर्घायुष्य की प्राप्ति कर सकते हैं।
पहला प्रयोगः निर्गुण्डी के पत्तों का 20 से 50 मि.ली. काढ़ा अरण्डी के 2 से 10 मि.ली. तेल के साथ देने से अथवा दशमूल, क्वाथ, या देवदारव्याधि क्वाथ उबालकर पिलाने से सूतिका रोग में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः प्रसूति (maternity) के बाद अजवाइन या कपास की जड़ का 50 मि.ली. काढ़ा पिलाने से अथवा सात दिन तक तिल के 1 तोला तेल में अरनी के पत्तों का 20 मि.ली. रस देने से सूतिका रोग से बचाव होता है।इस रोग में हल्दी एवं सोंठ उत्तम औषधि है।
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