स्वास्थ्य

schizophrenia के मरीज को होते हैं तरह-तरह के भ्रमः डॉ. मनोज

मुजफ्फरनगर। हर साल 24 मई को विश्व सिजोफ्रेनिया दिवस मनाया जाता है। इस दिन का मनाने का उद्देश्य लोगों को इस मेंटल डिसॉर्डर के प्रति जागरूक करना है। इस schizophrenia बीमारी में व्यक्ति भ्रम की स्थिति में रहता है, उससे वह दृश्य दिखते हैं जो उसके साथ कभी घटे नहीं होते हैं। सिजोफ्रेनिया एक जटिल और गंभीर मेंटल हेल्थ डिसॉर्डर है

जो मस्तिष्क के सामान्य कामकाज को प्रभावित करता है। लोगों की मति भ्रष्ट होने लगती है, भ्रमपूर्ण विचार आने लगते हैं, अव्यवस्थित व्यवहार और सोच रखने लगते हैं। यह डिसॉर्डर व्यक्ति के दैनिक जीवन को प्रभावित करता है और इसके लिए आजीवन इलाज की जरूरत होती है।

यह जानकारी जिला अस्पताल के सीएमओ डॉ. महावीर सिंह फौजदार ने विश्व सिजोफ्रेनिया दिवस (24 मई) पर सोमवार को दी।
मनोचिकित्सक डॉ. मनोज कुमार का कहना है कि कोरोना के इस लॉकडाउन काल में स्वास्थ्य विशेषज्ञ और चिकित्सक लगातार लोगों को शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देने की सलाह दे रहे हैं।

मानसिक तौर पर खुद को मजबूत बनाए रखने के लिए अपने आप को कलात्मक और रचनात्मक गतिविधियों में व्यस्त रखने की सलाह दी जा रही है।

साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग के इस दौर में अपने दोस्तों, परिजनों से वीडियो कॉल के जरिए बात करते रहना भी इसका हल है। सिजोफ्रेनिया मानसिक स्वास्थ्य से ही जुड़ी एक बीमारी है, जिसका समय रहते इलाज बेहद जरूरी हो जाता है। इस बीमारी के मरीज काल्पनिक दुनिया में रहते हैं। वास्तविक दुनिया से इनके विचार अलग होते है।

जिदंगी में दिलचस्पी खत्म हो जाती है तथा यह लोग अपनी भावनाओं को सही तरीके से दूसरे के सामने व्यक्त नहीं कर पाते हैं और किसी भी बात को लेकर यह ज्यादा भावुक हो जाते हैं।

इसके साथ-साथ इन मरीजों को दैवीय शक्ति होने का भ्रम, खुद को सताया जाना, अमीर या ताकतवर महसूस करना आदि देखने को मिलता है। डॉ. अर्पण जैन ने बताया कि पुरुषों में, सिजोफ्रेनिया के लक्षण 15-30 वर्ष के मध्य में शुरू होते हैं

जबकि महिलाओं में यह 20 वर्ष के अंत में शुरू होते हैं। वयस्कों की तुलना में, किशोरों में भ्रम होने की संभावना कम होती है, लेकिन विजुअल मतिभ्रम होने की संभावना ज्यादा होती है।

रोगी के परिवार मे स्किजोफ्रेनिया का पारिवारिक इतिहास होना, कम उम्र मे इस बीमारी के लक्षणों का आना, सही प्रकार से इलाज न मिल पाना, इलाज बीच मे ही छोड़ देना, नशे का लगातार सेवन, तनावपूर्ण तथा कटु पारिवारिक संबंध, परिवार एवं समाज का असहयोगात्म्क रवैया इत्यादि ेबीप्रवचीतमदपं से ठीक होने की दर को प्रभावित करते हैं तथा कई बार इस बीमारी को लाइलाज भी बना देते हैं।

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