टेनिस ने धो दिया जिले से दंगे का बदनुमा दाग
मुजफ्फरनगर। मुजफ्फरनगर में 25 हजार इनामी राशि डालर के भावना स्वरूप मैमो. अन्तर्राष्ट्रीय महिला टेनिस टूर्नामेंट भले ही समाप्त हो गया हो लेकिन इसकी चर्चा गली मौहल्लो ंसे लेकर गांव देहात तक है और सबसे बड़ा कारण तो यह है कि विदेशी खिलाड़ियों ने इस शहर को पसंद किया है और वो यहां पर लगातार आना चाह रहे है और इस स्थिति में आना चाह रहे है कि अभी तक मुजफ्फरनगर के दामन पर साम्प्रदायिक दंगों का जो दाग लगा था उससे हजारों किलोमीटर दूर बैठे लोगों में भी मुजफ्फरनगर की छवि बेहतर नहीं मानी जा रही थी और इसका सबसे ज्यादा नुकसान आर्थिक और सामाजिक पक्षों में भी पड रहा था लेकिन धीरे धीरे समय ने करवट ली एक तरफ गांव देहात में लोग नजदीक आये साम्प्रदायिक सद्भाव बना। कई गांवों में कबड्डी जैसे टूर्नामेंट भी साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए किये गये वहीं इसी कडी में अब टेनिस शहर में साम्प्रदायिक सौहार्द बढाने के लिए नई मिसाल बनकर उभरा है क्योंकि 2013 के दंगों के बाद मुजफ्फरनगर में अन्तर्राष्ट्रीय महिला टेनिस के महाकुम्भ का यह बड़ा आयोजन हुआ है जिसमें बीस से भी अधिक देशों की महिला खिलाड़ियों ने यहां आकर मुजफ्फरनगर को अच्छा महसूस किया है और कई खिलाड़ियों ने तो यह भी कहा है कि इसको आप ये मत कहे कि यह दंगों का शहर है।
कई विदेशी खिलाड़ियों ने बातचीत में स्वीकार किया है कि उन्होंने मुजफ्फरनगर के बारे में जब नेट पर सर्च किया तो 2013 के दंगे सामने आये। इससे उन्हे आने में घबराहट हो रही थी लेकिन आयोजकों ने जो सुरक्षा का भरोसा दिया और यहां पर आकर हमने मुजफ्फरनगर को कई दिन तक महसूस किया तो हमे लगा कि यह मुजफ्फरनगर तो वास्तव में बेहद प्यारा है। यहां के लोगों ने इतना प्यार किया कि हम दोबारा बार-बार आना चाहेंगे। कई खिलाड़ी मुजफ्फरनगर की इतनी अधिक तारीफ कर गयी कि उन्होंने कहा कि वो टेनिस के महाकुम्भ में हर बार आयोजन में भाग लेंगे क्योंकि उन्हे पता लग गया है कि मुजफ्फरनगर के लोग कितना प्यार, स्नेह देने के साथ-साथ मेहमाननवाजी और जिंदादिली की मिसाल कायम करते है। हालांकि मुजफ्फरनगर के दंगों को लेकर विदेशों तक इस शहर की जितनी बदनामी हुई थी अब वह टेनिस जैसे महाकुम्भ के आयोजन ने एक ही झटके में धो डाली और अब शहर देहात से लेकर गांव गांव तक हर कोई इस शहर को दंगों के शहर के रूप में भूलना चाहता है। आम तौर पर 2013 के बाद कई सामाजिक संगठनों और साम्प्रदायिक एकता की मुहिम से जुड़े लोगों ने गांव देहात में काम कर लोगों को नजदीक किया है और इसका असर भी देखने को मिल रहा है और इसमे खेलों की भी महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही है।
दंगों के बाद से ही स्थानीय प्रशासन ने भी शाहपुर, बुढ़ाना आदि में कबड्डी, कुश्ती आदि कई खेलों को कराकर लोगों में साम्प्रदायिक सद्भाव का संदेश दिया था और अन्तर्राष्ट्रीय महिला टेनिस ने तो इस संदेश में झंडे ही गाड दिये क्योंकि मुजफ्फरनगर की छवि को बेहतर बनाने में टेनिस के माध्यम से एक कामयाब संदेश मिला है और करीब बीस से भी अधिक विदेशों में मुजफ्फरनगर का नाम आज टेनिस के लिए जाना जाता है। कई विदेशी खिलाड़ियों ने कहा कि हम नहीं मानते है कि यहां पर कभी दंगे हुए होंगे और लोग एक दूसरे से दूर गये होंगे क्योंकि उन्हे ऐसा लगा ही नहीं कि इस शहर में कभी कुछ गलत हुआ हो और अब तो टेनिस के महाकुम्भ के आयोजन के बाद कई चर्चाएं जोर पकड रही है कि भावना स्वरूप मैमो. अन्तर्राष्ट्रीय महिला टूर्नामेंट के सहारे आलोक स्वरूप के परिवार ने जिस तरह से मुजफ्फरनगर में इस आयोजन को कराकर विदेशों तक मुजफ्फरनगर की छवि में चार चांद लगाये है यह अपने आप में बड़ी बात है और इसको लेकर शहर के तमाम बुद्धिजीवी भी यही कहते है कि टेनिस के खिलाड़ियों ने शहर को एक माहोल दिया है और एक नई सोच कायम की है कि वो तमाम बेकार के मुद्दे छोडकर साम्प्रदायिक सौहार्द, देश के विकास, खेलों के विकास और महिला सशक्तिकरण जैसे पहलूओं की बात करे। जिस तरह से मुजफ्फरनगर की छवि 2013 के बाद खराब होनी शुरू हुई थी वह आज अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर बदल चुकी है और उसमे टेनिस के योगदान के साथ-साथ उन बुद्धिजीवियों का योगदान भी देखा जा रहा है जो समाज के लिए हमेशा खडे रहे है। इस टेनिस आयेजन के आयोजन सचिव रविंद्र चौधरी भी इस बात से इत्तेफाक रखते है कि अन्तर्राष्ट्रीय महिला टेनिस के मुजफ्फरनगर में आयोजन होते रहने से मुजफ्फरनगर की सकारात्मक छवि में सुधार आया है वो खुद स्वीकार करते है कि सन् 2013 के बाद लगभग पांच साल का लम्बा अतंराल हो गया और अब जब टेनिस का महाकुम्भ जुडा तो लोगों की सामाजिक सोच में परिवर्तन आया और उन्होंने देखा कि किस तरह से खेल एक सामाजिक दृष्टिकोण पैदा करता है और नई सोच बनाता है।