भाजपा की चिंताएं: रालोद और कांग्रेस की बडी सभाओं से किसानोें के तेवरों का संकेत
नई दिल्ली। कई महीने से चल रहे किसान आंदोलन को लेकर भाजपा की चिंताएं बढ गई हैं। सूत्रों के अनुसार गत दिवस केंद्रीय मंत्री संजीव बलियान ने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर कृषि कानूनों को लेकर जाटों और दूसरे वर्गों में भाजपा को लेकर बन रही राय को लेकर जो रिपोर्ट दी है वह परेशान करने वाली है।
इसमें कहा गया है कि आंदोलन बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकता है। इसका लाभ उठाने के लिए सपा, रालोद और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी भी जुटी है। पश्चिमी यूपी में जाटों की नाराजगी इस कारण भी बढ़ी है कि गन्ने का खरीद मूल्य नहीं बढ़ाया गया है। इसके साथ-साथ गन्ना किसानों के बकाया का भुगतान भी धीमी गति से हो रहा है
किसान आंदोलन के बीच भाकियू के अलावा रालोद और कांग्रेस की बडी सभाओं से किसानोें के तेवरों का संकेत मिल रहा है। इसे लेकर पिछले हफ्ते जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह ने हरियाणा, पश्चिमी यूपी, राजस्थान और मध्य प्रदेश की चालीस जाट बहुल सीटों से आने वाले सांसदों, विधायकों और प्रमुख नेताओं के साथ बैठक की थी।
कहा जा रहा है कि हरियाणा में जाटों की नाराजगी की असली वजह हरियाणा का नेतृत्व है और कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन ने ये नाराजगी और बढ़ी है। पश्चिमी यूपी में जाटों की नाराजगी इस कारण भी बढ़ी है कि गन्ने का खरीद मूल्य नहीं बढ़ाया गया है। बकाया का भुगतान भी धीमी गति से हो रहा.
— News & Features Network (@mzn_news) February 26, 2021
बैठक के बाद निर्देश दिए गए थे कि सांसद आम जनता के बीच जाकर कृषि कानूनों के बारे में बताएं कि किस तरह से ये कानून किसानों के लिए फायदेमंद हैं, साथ ही ये भी बताएं कि ये आंदोलन नरेंद्र मोदी सरकार को बदनाम करने की मंशा से विपक्षी दलों की ओर से चलाया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार भाजपा को किसान आंदोलन को लेकर जो फीडबैक मिला है, वह अच्छा संकेत नहीं है।
पश्चिमी यूपी में मिल रहे फीड के अनुसार अगर किसान आंदोलन लंबा चलेगा तो 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी का जाट वोट बैंक खिसक सकता है।
ऐसे में जमीनी स्तर के भाजपा के लोगों मानना है कि किसान आंदोलन जल्दी से जल्दी खत्म हो, इसके लिए सरकार को किसानों की बात सुननी चाहिए और उनकी समस्याओं का समाधान करना चाहिए। दूसरी ओर कहा जा रहा है कि हरियाणा में जाटों की नाराजगी की असली वजह हरियाणा का नेतृत्व है और कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन ने ये नाराजगी और बढ़ी है।
पश्चिमी यूपी में जाटों की नाराजगी इस कारण भी बढ़ी है कि गन्ने का खरीद मूल्य नहीं बढ़ाया गया है। इसके साथ-साथ गन्ना किसानों के बकाया का भुगतान भी धीमी गति से हो रहा है।
पश्चिमी यूपी की 36 जातियों की खाप पंचायतों का मुख्यालय मुजफ्फरनगर और शामली में हैं। यह खाप काफी हद तक सियासी हवा को प्रभावित करती हैं। इस आंदोलन के बीच पार्टी को सुझाव दिए गए हैं कि किसान आंदोलन के कारण जाटों के साथ अलग-अलग जातियों में भी नाराजगी बढ़ सकती है।
हालांकि भाजपा नेताओं का मानना है कि इन खाप पंचायतों से बातचीत करके आम लोगों की नाराजगी को दूर किया जा सकता है। यह भी कहा जा रहा है कि आंदोलन लंबा चला तो जाट और मुस्लिम वोट बैंक एकजुट होने की सम्भावना हैं। पश्चिमी यूपी समेत अन्य प्रदेशों में भी जाट हैं, वे अन्य जातियों को भी प्रभावित करने में सक्षम हैं।
पार्टी को जमीन पर लोगों समझाना पड़ेगा कि तीनों कृषि कानून किसान के लिए फायदे का सौदा हैं, इसका बड़े स्तर पर प्रचार करना होगा। दूसरी ओर पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से किसानों समेत सभी वर्गों में सरकार के नाराजगी बढ़ रही है। किसान आंदोलन को लेकर पश्चिमी यूपी की जमीनी हकीकत पर रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को मिलने के बावजूद अभी इस पर कोई निर्णय लेना बाकी है।
भाजपा को 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों के बाद से जाट वोट का भरपूर समर्थन मिला है। इसके बाद 2014 का लोकसभा चुनाव हो या 2017 का विधानसभा या फिर 2019 का लोकसभा चुनाव, जाट आरक्षण को लेकर नाराजगी के बावजूद जाटों ने भाजपा को वोट देकर यहां उसकी जमीन तैयार की है।
माना जाए तो किसान आंदोलन में सबसे बडी भूमिका अब यही वर्ग निभा रहा है। इसका लाभ उठाने के लिए रालोद, सपा और और कांग्रेस के बाद अब आम आदमी पार्टी भी मैदान में कूद चुकी है।