बेवकूफों की Sex समस्याएं और समाधान: प्रथम संभोग में Hymen के रक्तस्त्राव, Small penis syndrome…..
क्या किसी कुमारी स्त्री के साथ प्रथम बार संभोग (Sex) करने पर कुमारिच्छद फटकर रक्त अवश्य निकलता है ? उत्तर : संसार में लाखों आदमी कुमारिच्छद ( Hymen) के संबंध में मूर्खतापूर्ण धारणाएं रखते हैं
1.प्रथम संभोग में रक्तस्त्राव
अधिकांश पुरुष ऐसा समझते हैं कि कुमारिच्छद अर्थात कौमार्य की झिल्ली मानो शीशियों पर लगाए जाने वाले फिल्टरप्रूफ ढक्कन की तरह योनि में मुख को सील बंद करके रखती हो . यदि आप लघु भगाठों को फैलाकर देखें तो पता चलेगा कि मूत्रद्वार के नीचे एक बड़ा सा छेद है जिसमें शिश्न प्रविष्ट हो सकता है
यह छिद्र योनि का बाहरी भाग या योनि द्वार कहलाता है . इसे ही योनि की कीप ( Funnel ) भी कहते हैं , क्योंकि यह भाग कीप की तरह आगे से चौड़ा पीछे से संकरा होता है , यह द्वार लगभग डेढ़ – दो इंच गहरा होता है और इसके अंदर के छोर पर मांस की एक पतली – सी झिल्ली इस द्वार को बंद किए रखती है, इस झिल्ली को ही कुमारिच्छद कहते हैं . इस झिल्ली के पीछे की तरफ वास्तविक योनि होती है जिसकी गहराई लगभग तीन इंच होती है . यह झिल्ली कभी भी योनि मार्ग को पूरी तरह बंद नहीं करती , क्योंकि इसमें से होकर हर महीने मासिक स्त्राव भी निकलना होता है
अतः इसमें एक छिद्र भी होता है ताकि मासिक स्त्राव इसमें से होकर निकल सके . कभी – कभी ऐसा भी होता है कि किसी लड़की की झिल्ली में छिद्र नहीं होता तो इन लड़कियों में मासिक स्त्राव का रक्त मार्ग न मिलने के कारण झिल्ली के पीछे एकत्रित होता रहता है . इन लड़कियों में मासिक स्त्राव अंदर रूक जाने के कारण हर महीने बहुत अधिक पीड़ा होती है .
इस दशा में डॉक्टर इस कुमारिच्छद में नश्तर लगा देता है तो मासिक स्त्राव का रक्त निकलने लगता है और लड़की की पीड़ा भी समाप्त हो जाती है परंतु साथ ही कुमारिच्छद भी सम्राप्त हो जाता है , कुमारिच्छद की आकृति अनेक प्रकार की होती है , किसी के कुमारिच्छद में लंबी – सी झिरी होती है , किसी के कुमारिच्छद में बहुत छोटे – छोटे छेद होते हैं परंतु आमतौर पर इसकी आकृति अर्थ- चंद्राकार होती है और यह योनि द्वार के आधे भाग में लगा होता है . इसके ऊपर के भाग में योनि द्वार में इतना बड़ा छिद्र अर्थात रास्ता बचा रहता है जिसमें से होकर उंगली का पोरूवा थोड़ा – सा योनि के अंदर जा सकता है .
किसी – किसी स्त्री में यह छिद्र इतना बड़ा भी होता है कि डॉक्टरी परिक्षण के दौरान एक इंच या इससे भी अधिक व्यास का यंत्र योनि में प्रविष्ट करने पर भी कुमारिच्छद साबुत बना रहता है . साधारणतः प्रथम संभोग में यह झिल्ली फट जाती है , लेकिन किसी – किसी लड़की की झिल्ली रबड़ की तरह लचकीली होती है . अतः शिश्न के प्रहार से फटती नहीं , पीछे को दब जाती है . यह भी स्मरण रखना चाहिए कि इस कुमारिच्छद के फटने से स्त्री को पीड़ा नहीं होती और रक्त बहुत ही कम निकलता है . कभी – कभी बिलकुल भी नहीं निकलता . पहले जमाने में 12-13 वर्ष की आयु में लड़कियों का विवाह कर दिया जाता था .
बहुत सी जातियों में तो ऐसी मान्यता थी कि रजोदर्शन होने ( पहली बार मांसिक धर्म निकलना आरंभ होने ) से पहले ही कन्या का विवाह हो जाना चाहिए . अतः उन दिनों बहुत सी लड़कियों को मासिक धर्म पहली बार ससुराल में ही शुरू होता या . इन अल्प आयु की लड़कियों में कुमारिच्छद मौजूद होने की आशा जायज तौर पर की जा सकती थी . अब जमाना बदल गया है आजकल लड़कियों का विवाह 20-21 वर्ष या इससे भी अधिक आयु में होता है और इन लड़कियों में आमतौर पर कुमारिच्छद उपस्थित नहीं होता . इसके कई कारण हैं , पहली बात तो यह है कि स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियों में खेल – कूद के दौरान अक्सर यह फट जाता है.
दूसरी बात यह है कि मासिक धर्म का रक्त सोखने के लिए अधिकांश लड़कियों घर के फटे – पुराने कपड़े की मोटी – सी बत्ती बनाकर योनि में रख लेती है । जिससे कौमार्य की यह नाजुक झिल्ली उनसे अनजाने में फट जाती है . आधुनिक सेनीटरी नैपकिनों के प्रयोग से भी भंग हो सकती है . यहां मैं एक बात उन लड़कियों को भी बता देना चाहता हूं जो अपना कौमार्य खो चुकी हैं . इन लड़कियों को आश्वस्त रहना चाहिए कि पुरुष चाहे कितना भी अनुभवी क्यों न हो , उसे यह पता नहीं लग सकता कि लड़की कुमारी है या संभोग कर चुकी है
यहां तक कि एक डॉक्टर भी योनि की सामान्य परीक्षा द्वारा यह नहीं बता सकता कि लड़की का कुमारिच्छद उपस्थित है या नहीं . केवल बहुत अनुभवी डॉक्टर स्पेकुलम नामक एक विशेष यंत्र से योनि को फैलाकर और टार्च की तेज रोशनी योनि में डालकर झांक कर देखे तो यह कह सकता है कि कुमारिच्छद मौजूद है .
2.सुहागरात की परेशानी
हमारे विवाह का आज पांचवा दिन है और इस दौरान मैं लगभग 11-12 मर्तबा संभोग करने का प्रयत्न कर चूका हूं . हर बार में मेरा शिश्न एक इंच ही योनि में जा पाता है कि मेरी पत्नी को बड़ी पीड़ा होने लगती है और वह पीछे हट जाती है , जिसके कारण मेरा उत्थान समाप्त हो जाता है . सलाह दीजिए कि मुझे इस स्थिति में कौन – सा उपाय करना चाहिए ? जिससे मेरी पत्नी को पीड़ा न हो और हम संभोग कर सकें .
उत्तर : – आप किसी केमिस्ट के यहां से ‘ जाइलोकेन ऑइंटमेंट ‘ या ‘ न्यूपरकैनाल ऑइंटमेंट ‘ खरीद लें . यह मरहम जिस स्थान पर लगाया जाता है वहां की त्वचा स्पर्श शून्य ( सुन्न ) हो जाती है अतः बवासीर , खुजली , जख्म , चोट , एक्जीमा आदि रोगग्रस्त स्थान पर • यह मरहम लगाने से जलन कम होकर चैन पड़ जाता है . शीघ्रपतन में भी यह मरहम अत्यंत उपयोगी पाया गया है . यह जरा – सा मरहम उंगली के पोरूवे पर लेकर संभोग करने से 15-20 मिनट पहले योनि के मुख पर तनिक – सा अंदर तक चारों तरफ लगा दें .
ऐसा करने से योनि सुन्न पड़ जाएगी और शिश्न प्रविष्ट होते समय आपकी पत्नी को पीड़ा नहीं होगी लेकिन थोड़ी सी कोशिश आपको भी करनी पड़ेगी . जरा – सा जोर ज्यादा लगा दीजिए . मतलब आप समझ गए होंगे , सब मामला पार हो जाएगा . मैं समझता हूं कि ऐसा होता होगा कि जब आप शिश्न प्रवेश करने की तैयारी करते होंगे उसी समय आपकी पत्नी संभावित पीड़ा की आशंका से घबराहट में अपनी योनि की पेशियों को संकुचित कर लेती होगी जिससे योनि बहुत टाइट हो जाती है .
फलस्वरूप शिश्न प्रवेश करना कठिन और पीड़ादायक हो जाता है . यह एक भावनात्मक रोग है जिसे ‘ वैजाइनिस्मय ‘ कहा जाता हैं , उसकी इस घबराहट को दूर करने के लिए आप संभोग की तैयारी से घंटा – भर पहले अपने डॉक्टर की सलाह ले लें जिससे उसकी घबराहट मिट जाएगी तथा शरीर दीला पड़ जाएगा जिससे आपको संभोग करना आसान हो जाएगा .
शायद यह सलाह देना अनावश्यक न होगा कि संभोग से पहले काफी देर तक स्त्री के शरीर पर विशेषकर स्तनों पर , जंघाओं पर तथा योनि पर हाथ फेरने , चुंबन करने तथा अन्य प्रकार का प्रेमालाप करने से स्त्री संभोग करने के लिए अच्छी तरह तैयार हो जाती है , और उसे संभोग क्रिया में कष्ट भी नहीं होता .
3.छोटा शिश्न
मेरी समस्या यह है कि मेरा शिश्न बहुत छोटा है . जबसे मेरे मित्रों ने इसे देखा है तब से वे अक्सर मेरी हंसी उड़ाते रहते हैं . क्या आप इसे बड़ा करने की कोई दवा बता सकते हैं ?
उत्तर : – आपकी समस्या आपका शिश्न नहीं बल्कि आपके यार – दोस्त है . आपको अपने शिश्न की नुमाइश लगाने की जरूरत पड़ गई थी . प्रकृति ने इस नाजुक अंग को केवल मक की वंश वृद्धि के लिए बताया है न कि इसकी प्रदर्शनी लगाने के लिए . चूंकि प्रकृति के पास हम लोगों की तरह नाप – तौल का कोई पैमाना नहीं है , अतः किसी का शिश्न छोटा होता है किसी का बड़ा
मैं समझता हूं अभी आपका विवाह नहीं हुआ हो …. आपको याद रखना चाहिए कि स्त्री की योनि एक ऐसी जगह है जिसमें ‘ सब धान सत्ताईस सेर के भाव बिकते हैं . इसमें छोटे – बड़े सब शिश्न खप जाते हैं . इस पर बड़े से बड़े शिश्न का भी कोई रोब नहीं पड़ता . आप स्वयं ही सोचिए कि जिस योनि में से होकर इतना बड़ा शिशु बाहर निकल जाता है , उस पर रोब डालने के लिए कितने लंबे – चौड़े शिश्न की जरूरत पड़ेगी और इतना बड़ा शिश्न आप कहां से लाएंगे .
वैसे आपकी आयु अभी केवल 16 वर्ष की है . अतः आपको इसके छोटेपन के संबंध में चिंता करने या कोई दवा सेवन करने की जरूरत नहीं है , क्योंकि आपके शरीर व शारीरिक अंगों में बढ़ोतरी के लिए 5 वर्ष अभी और पड़े हैं।
4. शिश्न का छेदापन मेरा शिश्न उत्थान के समय बाईं ओर को टेढ़ा हो जाता है . मैंने बचपन में बहुत अधिक हस्तमैथुन किया है . यह शायद उसी का दुष्परिणाम है . मैं कई वैध और हकीमों से ईलाज करा चुका हूं परंतु यह टेढ़ापन नहीं गया . कृपया सलाह दीजिए मैं क्या करूँ . मैं अभी तक अविवाहित हूं .
उत्तर : – मैं आपको केवल यही सलाह दूंगा कि आप शांत होकर बैठ जाइए . न तो शिश्न की ओर देखिए न कोई ईलाज कराइए . यह टेढ़ापन हस्तमैथुन के कारण नहीं होता बल्कि बिलकुल प्राकृतिक कारणों से हो जाता है , मैं आपको यह भी बता दूं कि यह टेढ़ापन सौ में 99 प्रतिशत पुरुषों के शिश्न में देखा जाता है . यह भी स्मरण रखें कि इस टेढ़ेपन से पुरुषत्वशक्ति में कोई कमी नहीं आती .
5.केवल छुआ लेने से गर्भाधान मेरी मंगनी हो गई और इस वर्ष परीक्षाएं समाप्त होने पर हमारा विवाह हो जाएगा . मैं और मंगेतर कभी – कभी एकांत में मिलते हैं तो अपने जनन अंगों को आपस में छुआ लेते हैं और बस इतने से ही हमारी तसल्ली हो जाती है . मैं आपसे पूछना चाहती हूं कि ऐसा करने से गर्भ ठहरने का डर तो नहीं है ?
उत्तर : – इससे भी आपके गर्भवती हो जाने की संभावना है . बहुत सी ऐसी कुमारी युवतियों के मामले आए हैं जो बिना मैथुन किए ही गर्भवती हो गई है . इसमें बिमारियां आपकी तरह ही थी अर्थात इनके प्रेमी एकांत में अपने शिश्न को यूं ही अपनी प्रेमिका की योनि में हुआ लेते थे
. वास्तव में तो यह है कि जब पुरुष कामोत्तेजित हो जाता है तो उसके वीर्य की एक बूंद भी छलक कर मूत्र मार्ग में गिरकर शिश्न गुण्ड के छोर पर आ जाती है . इस एक बूंद में ही इतनी संख्या में शुक्राणु देते हैं कि योनि के मुंह पर यह बूंद लग जाने से शुक्राणु तैरते ए गर्भाशय में पहुंचकर स्त्री को गर्भवती बना सकते हैं .
6. मेरी पत्नी और मैं सप्ताह में चार से सात बार तक संभोग करते हैं ; परंतु जब वह रजस्वला होती है तो उन दिनों नहीं करते , परंतु ये दिन हमें बड़े खटकते हैं . मेरी पत्नी का कहना है कि मासिक स्त्राव में बहुत गंदगी मिली होती हैं . अतः इन दिनों संभोग करने से रोग उत्पन्न हो सकते हैं . हम इस विषय में आपका विचार • जानना चाहते हैं . क्या मासिक स्त्राव के दिनों में संभोग हानिकारक है ?
उत्तर : – यह विचार बिलकुल गलत है कि मासिक – स्त्राव के दिनों में संभोग करने में कोई हानि होती है . वास्तव में मासिक – स्त्राव के रूप में जो रक्त निकलता है यह वह रक्त है जो प्रकृति बच्चे के नोजन के लिए हर महीने मां के गर्भाशय में एकत्र कर देती है . यदि गर्भ नहीं ठहरता है तो इसकी जरूरत नहीं रहती . अतः प्रकृति इस फालतू रक्त को मासिक स्त्राव के रूप में बाहर निकाल देती है .
इससे स्पष्ट है कि यह रक्त गंदा नहीं हो सकता . मासिक – स्त्राव के दिनों में स्त्री के शरीर से जो रक्तस्त्राव होता है , उसे बहुत बढ़ा – चढ़ाकर बताया जाता है . मासिक- स्त्राव के चार – पांच दिनों में कुल मिलाकर 30-40 मिलीलीटर से अधिक रक्त तथा अन्य पदार्थ बाहर नहीं निकालता . इसमें से आधे से भी अधिक उस दिन निकलता है जिस दिन स्त्राव अधिक होता है
परंतु यह स्मरण रखना चाहिए कि प्राकृतिक रूप से ही इन दिनों स्त्री में संभोग करने की कतई इच्छा नहीं होती , कुछ स्त्रियां इन दिनों अस्वस्थ जैसा अनुभव करती है . अतः इन दिनों मैथुन न करने में ही अधिक बुद्धिमानी है ..
7. क्या लिंग गर्भाशय में प्रविष्ट कराया जा सकता है ? क्या यह संभव है कि संभोग करते समय पुरुष का लिंग सीध स्त्री के गर्भाशय में प्रवेश कर जाए . मेरे एक मित्र का दावा है कि संभोग करते समय उसका लिंग गर्भाशय में प्रविष्ट हो जाता है . उत्तर : – यदि आपके मित्र की एक्स – रे की क्षमता वाली आंखें होती तो यह देख सकता था कि पुरुष का सेशन स्त्री के गर्भाशय में प्रवेश नहीं कर सकता इस तरह चाहे कुमारी हो या विवाहिता हो या कई बच्चों की मां हो उसके गर्भाशय के मुख इतना तंग होता है कि पेंसिल जैसी पतली चीज भी इसमें नहीं डाली जा सकती है।
8. स्त्री के स्तनों के आकार में वृद्धि
क्या ऐसे किन्ही उपायों की खोज की जा चुकी है जिसके प्रयोग से स्त्री के स्तनों का आकार में वृद्धि हो सके वैसे तो इनके बड़ा करने वाले तेलों और क्रीम के बहुत से विज्ञापन फिल्मी पत्रिकाओं में छपते रहते हैं। कृपया बताइए कि इन विज्ञापनों में कुछ सच्चाई भी है या यह लोगों को केवल मूर्ख ही बनाते हैं?
उत्तर : – स्त्री के स्तनों के आकार पर तीन कारणों का प्रभाव पड़ता है . पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारण वंशागत है . यदि स्त्री की मां अथवा नानी- दादी को उन युवतियों की अपेक्षा कम दूध पिला पाती है जिनके स्तन छोटे होते हैं . इसका कारण यह है कि बहुत बड़े और मोटे स्तनों में अधिकतर चरबी होती है जो ग्रन्थि के टिशुओं पर चढ़ी होती है , जबकि छोटे स्तनों वाली युवतियों में काफी मात्रा में स्तनीय टिशु होते हैं और उनमें फालतू चरबी नहीं होती . इसलिए उनमें दूध काफी अधिक रहता है
यह बात अवश्य है कि प्रणय – क्रीड़ा और सौंदर्य की दृष्टि से कुछ बड़े और उन्नत उरोज अधिक आकर्षक होते हैं परंतु बहुत बड़े उरोज अपने दूध वाले महत्व को नष्ट कर देते हैं .
9. सर्वाधिक उर्वर समय मैं गर्भवती होना चाहती हूं . ऐसा कौन – सा सबसे अधिक उर्वर समय है गर्भधारण कर सकती हूं ? मासिक धर्म से कितने दिन पहले और कितने दिन बाद यह समय होता है और क्या किन्हीं अन्य दिनों में भी गर्भ ठहर सकता है .
उत्तर : – स्त्री केवल उन्हीं दिनों में गर्भवती हो सकती है जब . उसकी डिबग्रंथि से डिंब निकलता है . इस दौरान यदि वह सहवास करती है तो वीर्य में उपस्थित करोड़ों में से कोई एक शुक्राणु डिंब में छेद करके इसके अंदर प्रविष्ट हो जाता है . इसे डिंब का निषेचित होना या गर्भ ठहर जाना कहा जाता है
जिस दिन स्त्री का मासिक धर्म निकलना आरंभ होता है , उसे मासिक चक्र का पहला दिन माना जाता है . इसे पहले दिन से गणना करने पर 11 वें से लेकर 21 वें दिन तक डिंब डिंबग्रंथि में से निकलता है . इस अवधि को ही उर्वर काल कहा जाता है . ऐसा देखने में आया है कि जिन स्त्रियों में मासिक चक्र नियमित रूप से 28 दिन का होता है , उनका सबसे अधिक उर्वर काल 11 वें से लेकर 16 वें दिन तक होता है
इन दंपतियों को इन छः दिनों तक संभोग करना चाहिए . जिन स्त्रियों का मासिक चक्र अनियमित है अर्थात 27 से लेकर 35 दिन तक का है , ये दंपती अगर 13 वें से लेकर 21 वें दिन तक एक – एक दिन बीच में छोड़कर संभोग करें । तो गर्भ ठहरने की संभावना बढ़ जाती है , क्योंकि इन स्त्रियों में इन नौ दिनों में कभी भी निकल सकता है
हिं ऐसा समझा जाता है कि वह परंपरागत आसन , जिसमें स्त्री पीठ के बल लेटती है गर्भधारण के लिए अधिक उपयुक्त है . स्त्री को चाहिए कि संभोग के समय अपने नितंबों के नीचे तकिया लगा लें ताकि वीर्य बहकर निकल न जाए तथा संभोग के बाद चुपचाप लगभग आधे घंटे तक इसी स्थिति में लेटी रहे . प्राकृतिक अवस्था में गर्भाशय पेडू की ओर मूत्राशय के ऊपर को थोड़ा सा झुका होता है . परंतु कभी – कभी यह पीछे की ओर झुक जाता है .
विपरीत दिशा में झुके हुए गर्भाशय का पता न तो स्त्री को पड़ता है और न इससे गर्भ स्थापित होने में कोई बाधा पड़ती है , लेकिन यदि इस कारण बाधा पड़ने की संभावना हो तो स्त्री को घुटनों के बल बैठकर आगे को झुक कर मुंह को तकिए पर रख लेना चाहिए ताकि उसके नितंब ऊपर उठे रहें और पति को उसके पीछे से संभोग करना चाहिए . यदि गर्भाशय प्राकृतिक अवस्था में हो भी इस आसन में संभोग करने से गर्भ ठहरने की संभावना अच्छी रहती है .
10. वीर्य का रक्त से संबंध क्या यह सही है कि पुरुष शरीर से निकलने वाले वीर्य की प्रत्येक बूंद रक्त की सौ बूंदों के नुकसान के बराबर है ?
उत्तर : – यह बात सही नहीं है कि वीर्य की एक बूंद रक्त की सौ बूंदों से बनती है . वास्तव में वीर्य और रक्त के बीच में किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं है . शरीर से निकलने वाले वीर्य की हानि ऐसी ही है जैसे मुंह से कभी – कभी लार टपक जाती है . दोनों की पूर्ति शरीर बहुत जल्दी कर लेता है .
11. छोटा वृषण और संतानोत्पादन
मेरे विवाह को आज पूरे चार साल हो चुके है परंतु अभी तक मेरे कोई संतान नहीं है . संभवतः इसका कारण यह है कि मेरा एक वृषण दूसरे की अपेक्षा छोटा है , मुझे क्या करना चाहिए ?
उत्तर : – यह आपका भ्रम है कि आपका वृषण दूसरे से छोटा होने के कारण ही आप संतान उत्पन्न करने में असमर्थ है , वास्तव में सब ही पुरुषों का दायां वृषण कुछ छोटा और बायां वृषण बड़ा तथा दाहिने से कुछ नीचे लटका होता है . कहीं इस प्राकृतिक बा से ही तो आप वहम में नहीं फंस गए हैं . दूसरी बात यह है कि जिस तरह किसी की नाक छोटी और किसी की बड़ी होती है उसी प्रकार किसी के वृषण बड़े और किसी के छोटे होते हैं .
वृषणों के इस छोटे – बड़ेपन का भी संतानोत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता . आपकी इस असमर्थता का कारण कुछ और ही होना चाहिए . इसलिए आप स्वयं अपनी और अपनी पत्नी की जांच किसी क चिकित्सक से कराइए वह आपके वीर्य की परीक्षा करके यह बताएगा कि आप संतानोत्पादन करने की क्षमता रखते हैं या नहीं और आपकी पत्नी की परीक्षा करके बताएगा कि वह गर्भ धार कर सकती हैं या नहीं .
12. वीर्य का गाढ़ापन मेरी आयु 40 वर्ष है और मेरे भावी पति की 51 वर्ष है , वे इस बात से चिंतित हैं कि उनका वीर्य गाढ़ा और पीलापन लिए हुए है . क्या उनका यह वीर्य ठीक और सामान्य है ? क्या आपका ख्याल है कि हम दोनों की आयु में जो अंतर है उसका आगे चलकर मेरे यौन जीवन पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है . मैं अभी तक अविवाहित हूं .
उत्तर : – अधिक आयु के पुरुष का वीर्य कुछ पीले रंग का हो सकता है , कम – से – कम युवकों के वीर्य की अपेक्षा यह अधिक गहरे रंग का होता है . यह वीर्य पूर्णतयां सामान्य है या नहीं , इसका निर्णय करने के लिए वीर्य की जांच किसी लेबोरेटरी में करानी चाहिए . चूंकि आपका भावी पति लगभग 11 वर्ष आपसे बड़ा है तो आपको यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि आठ – दस वर्ष बाद जबकि आपके अंदर अभी भी काफी कामवासना होगी और यौन तनाव से मुक्ति पाने के लिए आपको संतोषजनक मैथुन की आकांक्षा होगी
उस समय वह निर्बल और लगभग 5 नपुंसक हो चुका होगा . यह बात आपको स्मरण रखना चाहिए . इसके विपरीत , यदि वह काफी हृष्ट – पुष्ट और सशक्त है तो संभव है कि वह लंबे समय तक और इतनी जल्दी – जल्दी आपके साथ मैथुन कर सके जिससे आपकी कामवासना सदैव तृप्त होती रहे
13. शिश्न से चिकना स्त्राव मैंने देखा है कि अपनी प्रेमिका से बातें करते समय मेरे शिश्न में तनाव आकर इसमें पानी के रंग का चिकना – सा द्रव निकलने लगता है . मैं जानना चाहता हूं कि क्या यह रोग है या यह मेरी कमजोरी के कारण है ? उत्तर : – पुरूष के मूत्रमार्ग ( Urethra ) के किनारे – किनारे बहुत – सी नन्हीं – नन्हीं ग्रंथियां लगी होती हैं
जिन्हें ‘ काउपर ग्रंथियां ‘ कहते हैं . जब पुरुष में कामवासना जाग्रत होती है तो इस ग्रंथियों से एक पानी जैसा निरंग और बहुत चिकना स्त्राव निकलकर मूत्र मार्ग से आने लगता है . यह कोई रोग नहीं है बल्कि बिलकुल प्राकृतिक बात है . इस स्त्राव के दो उद्देश्य हैं , एक ….. तो यह कि शिश्न मूण्ड चिकना हो जाए ताकि इसे योनि में प्रविष्ट न होने में सुविधा रहे
दूसरा यह है कि मूत्रमार्ग चिकना हो जाए तथा थोड़ा सा क्षारीय हो जाए ताकि इसकी प्राकृतिक अम्लता से शुक्राणुओं को हानि न पहुंचे . यह भी देखा गया है कि किसी पुरुष में यह स्त्राव अधिक मात्रा में और किसी में कम निकलता है . स्मरण रखिए कि यह पदार्थ वीर्य नहीं है .
(All images: Courtesy-Google Images)