आलेख: समाज में रंग का बढ़ता महत्व
बहुत विडंबना है हम आज भी एक ऐसे समाज का हिस्सा है जहां पर रंग का महत्व बहुत देखने को मिलता है रंग एक आधार है आपके व्यक्तित्व के आकलन का लेकिन एक समाज का यह भी पक्ष है कि जो बहुत काले रंग के लोग हैं जो कि ईश्वर की संरचना का एक पहलू है
बहुत अच्छी आदत वाले मिलेंगे लेकिन यह बात भी सार्वभौमिक सत्य नहीं है वैसे इसमें कोई नई बात नहीं है क्योंकि जब हम घर का सामान लेने जाते हैं तो वहां पर भी चीजों का आकलन उसकी बाहरी रूपरेखा के आधार पर कर लेते हैं
इसलिए मेरा मानना है कि हम इन चीजों से ऊपर उठे और रंग आधार ना होकर उस व्यक्ति की सोच कैसी है यह आधार होगा अवश्य ही समाज एक सकारात्मक बदलाव की ओर अग्रसर होगाll कुमार विश्वास जी की आज एक पंक्ति याद आती है जिसमें बहुत सच्चाई देखने को मिलती है…..
इतनी रंग बिरंगी दुनिया, दो आँखों में कैसे आये,
हमसे पूछो इतने अनुभव, एक कंठ से कैसे गाये.
इतनी रंग बिरंगी दुनिया….
ऐसे उजले लोग मिले जो, अंदर से बेहद काले थे,
ऐसे चतुर मिले जो मन से सहज सरल भोले-भाले थे.
ऐसे धनी मिले जो, कंगालो से भी ज्यादा रीते थे,
ऐसे मिले फकीर, जो, सोने के घट में पानी पीते थे.
मिले परायेपन से अपने, अपनेपन से मिले पराये,
हमसे पूछो इतने अनुभव, एक कंठ से कैसे गाये.
इतनी रंग बिरंगी दुनिया, दो आँखों में कैसे आये.
जिनको जगत-विजेता समझा, मन के द्वारे हारे निकले,
जो हारे-हारे लगते थे, अंदर से ध्रुव- तारे निकले.
जिनको पतवारे सौंपी थी, वे भँवरो के सूदखोर थे,
जिनको भँवर समझ डरता था, आखिर वही किनारे निकले.
वो मंजिल तक कैसे पहुंचे?, जिनको रास्ता खुद भटकाए
हमसे पूछो इतने अनुभव, एक कंठ से कैसे गाये,
इतनी रंग बिरंगी दुनिया, दो आँखों में कैसे आये…
अक्षय कुमार वत्स आज की भावी पीढी का प्रतिनिधित्व करने वाले युवा लेखक हैं। उनकी ही कृति “क्या कलाकारों की कलाकारी को गरीबी ने खा लिया?” आलोचको द्वारा बहुत ही सराही गयी हैं।
शैक्षिक स्तर पर श्री वत्स ने बीएससी रसायन विज्ञान, बीटीसी, एमएससी रसायन विज्ञान अर्जित किये हैं और निरन्तर सामाजिक मुद्दो पर अपनी राय बेबाकी से अपने लेखो के माध्यम से प्रस्तुत करते रहते हैं।
Well written article. Keep it up Akshay
बहुत ही अच्छा लिखा है भाई आपने , लोगों को यह बात समझनी चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण उसे अमल में लाना चाहिए……..