स्वास्थ्य

देश में अब तक करीब 42 हजार केस black fungus के, दिमाग और नासिका तंत्र में संक्रमण

 भारत में black fungus के मामले आने बंद नहीं हुए हैं. देश में कोरोना की दूसरी लहर भले ही कमजोर पड़ी है, लेकिन ब्लैक फंगस के कई मरीजों का इलाज अभी भी अस्पतालों में चल रहा है. एम्स के रिसर्च में दावा किया गया है कि कोरोना से ठीक हुए मरीज ही ज्यादातर ब्लैक फंगस की चपेट में आए हैं. डॉक्टरों के मुताबिक, ब्लैक फंगस का इलाज लंबा चलता है.

इसकी दवाई का डोज देने में ही मरीज को करीब 20 दिन लग जाते हैं. देश में अब तक करीब 42 हजार केस ब्लैक फंगस के सामने आ चुके हैं. इनमें से ज्यादातर मरीज ऐसे हैं जिनमें दिमाग और नासिका तंत्र में संक्रमण हुआ है, लेकिन बीते कुछ दिनों से यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में लोगों के जबड़ों और शरीर के दूसरे अंगों में भी ब्लैक फंगस मिलने लगे हैं.

केंद्र सरकार के डेटा के मुताबिक, पिछले हफ्ते तक देश में ब्लैक फंगस के 40, 845 मामले थे. इनमें 31, 344 मामले दिमाग या फिर नासिका तंत्र में इन्फेक्शन से जुड़े हुए थे. दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल में ब्लैक फंगस के करीब 100 मरीज भर्ती हैं, लेकिन बीते दो सप्ताह में यहां करीब 15 से 20 मरीजों को छुट्टी मिल चुकी है. दिल्ली में ब्लैक फंगस के लिए एम्स, आरएमएल, लेडी हार्डिंग और दिल्ली सरकार के अधीन एलएनजेपी, जीटीबी और राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों में इलाज हो रहा है.

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) बोर्ड के अध्यक्ष और ईएनटी डॉक्टर अचल गुलाटी कहते हैं कि देश में ब्लैक फंगस के ज्यादातर मामले आंख और दिमाग में मिल रहे थे, लेकिन बीते कुछ दिनों से लोगों के जबड़ों और शरीर के दूसरे अंगों में भी फंगस मिलने लगे हैं. गाजियाबद में जबड़े में ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या बढ़े हैं. ऐसे में उन्हें ठीक करने के लिए ज्यादातर मरीजों के जबड़े निकालने तक पड़े हैं. ब्लैक फंगस होने के अलग-अलग कारण हैं. पहले नाक में होता है और फिर नाक से सायनेसज में फिर साइनेज से आंख और दिमाग में ब्लैक फंगस फैल जाता है. जबड़ा, आंख, दिमाग सब एक दूसरे से जुड़े होते हैं. यही कराण है कि ये सारे भाग ब्लैक फंगस से संक्रमित हो जाते हैं. ब्लैक फंगस का यह नया रूप काफी गंभीर है. फंगस के कारण दांत, जबड़ों की हड्डी गलने लगती है. इसलिए इसे निकालना जरूरी हो जाता है.

देश में अब तक ब्लैक फंगस के कारण करीब 3 हजार 5 सौ लोगों की मौत हो चुकी है. ब्लैक फंगस भी कोरोना की तरह ही हर आयु वर्ग के लोगों को अपना शिकार बना रहा है. केंद्र सरकार के मुताबिक ब्लैक फंगस की चपेट में आने वाले 32 प्रतिशत मरीजों की आयु 18 से 45 साल तक थी. 17 हजार मरीज ऐसे रहें, जिनकी आयु 45 से 60 साल के बीच थी. वहीं, 60 साल से अधिक आयु के करीब 10 हजार लोग इसका शिकार हुए हैं.

 

Editorial Desk

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