संपादकीय विशेष

Muzaffarnagar News: सौरभ स्वरूप सदर सीटर से गठबंधन प्रत्याशी, मुस्लिम राजनीति का केंद्र बने प्रमुख चेहरे चुनाव से गायब

Muzaffarnagar:मुजफ्फरनगर। सदर विधानसभा क्षेत्र में काफी रस्साकशी के बाद गठबंधन प्रत्याशी के रूप में सौरभ स्वरूप बंटी के नाम का ऐलान किया गया है।इस सीट पर लेकर सबसे अधिक पेंच फंसा हुआ था।

यहां पूर्व में चुनाव लड़ चुके गौरव स्वरूप और राकेश शर्मा व पायल माहेश्वरी के अलावा राजेश्वर त्यागी समेत कई लोग दावेदारी कर रहे थे। बताया गया कि स्वर्गीय चितरंजन स्वरूप के परिवार में गौरव स्वरूप और सौरभ स्वरूप के बीच इस मामले को लेकर रस्साकशी चल रही थी।

सूत्रों के अनुसार सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सभी से विचार विमर्श करने के बाद अंततः सौरव स्वरूप को प्रत्याशी के रूप में घोषित कर दिया।

मुस्लिम राजनीति का केंद्र बने प्रमुख चेहरे चुनाव से गायब

मुजफ्फरनगर। मुजफ्फरनगर में साढे आठ साल पहले हुए सांप्रदायिक दंगे का असर कहे या सपा रालोद गठबंधन की रणनीति! इस बार विधानसभा चुनावों में मुजफ्फरनगर में मुस्लिम राजनीति का चेहरा माने जाने वाले पूर्व सांसद कादिर राना और अमीर आलम खान या उनके परिवार का कोई सदस्य चुनाव लड़ता हुआ नजर नही आएगा।

पूर्व सांसद कादिर राना ने तो अपने पुत्र को मीरांपुर से टिकट दिलाने के लिए तीन माह पहले अक्टूबर में समाजवादी पार्टी की सदस्यता भी ली थी लेकिन उन्हें या उनके पुत्र को टिकट नही दिया गया। गठबंधन दल के नेता जानते हैं कि भाजपा को हराने के लिए अल्पसंख्यकों के पास उन्हें वोट देने के अलावा कोई विकल्प नही हैं।

मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक दंगा होने से पूर्व जिले में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मुस्लिम जनप्रतिनिधियें की सफलता का आंकड़ा बहुत अच्छा रहा। ऐसा कई बार अवसर आया जब जिले के दोनों ही सांसद (शामली जिला बनने से पूर्व) मुस्लिम रहे हो। मुजफ्फरनगर में विधानसभा चुनावों में 2017 को छोड़ दे तो एक या दो मुस्लिम विधायक जरूर निर्वाचित होते रहे हैं।

पिछले चुनावों में मुस्लिम प्रत्याशियों की उपस्थिति तो दमदार थी लेकिन भाजपा सभी छह सीटों पर जीतने के कारण कोई मुसलिम प्रत्याशी नही जीत पाया था। 2002 के विधानसभा चुनावों में भी इसी तरह की स्थिति बनी थी।

तब भाजपा रालोद का गठबंधन था उस चुनाव में रालोद ने तीन, भाजपा ने एक, बसपा ने तीन और सपा ने दो सीटे जीती थी। तब कोई मुस्लिम जिले से विधायक नही बन पाया था। जबकि 1989 के विधानसभा चुनावों में अमीर आलम खान, 1991 और 1993 के चुनाव में राम लहर के बावजूद मुनव्वर हसन, 1996 में अमीर आलम खान, 2007 के चुनाव में कादिर राना और राव अब्दुल वारिस खां, 2012 के चुनावों में नवाजिश आलम, नूरसलीम राना व मौलाना जमील अहमद कासमी विधायक चुने गए थे। इस बार पूर्व सांसद अमीर आलम रालोद से अपने पुत्र नवाजिश आलम के लिए तो पूर्व सांसद कादिर राना भी स्वयं अपने लिए या अपने बेटे के लिए टिकट के दावेदार थे।

इसी कारण वह बसपा छोडकर अक्टूबर में सैंकडों समर्थकों के साथ सपा में शामिल हुए थे। टिकट की चाह में पूर्व विधायक नूरसलीम राना ने लोकदल का दामन थामा था।वहीं पूर्व विधायक शाहनवाज राना भी रालोद से मुजफ्फरनगर या बिजनौर में टिकट की लाइन में थे। सपा रालोद गठबंधन ने जिले में किसी भी मुस्लिम नेता के नाम पर विचार तक नही किया।

बहुत वर्षो बाद यह ऐसा चुनाव होगा जिसमें स्थापित मुस्लिम नेता चुनाव लड़ता हुआ नजर नही आएगा। हालांकि बसपा ने एक बार फिर अपने 2012 के फार्मूले पर अमल करते हुए जिले में छह में से चार सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं।

इनमें मीरांपुर सीट पर मौलाना सालिम को टिकट दिया गया है। चरथावल सीट पर सलमान सईद और खतौली पर माजिद सिद्दीकी व बुढाना पर हाजी मो. अनीस को चुनाव में उतारा है। इसी समीकरण के बल पर बसपा ने 2012 में जिले में तीन विधानसभा सीटे जीत ली थी।

अब एआईएमआईएम के भी इसी मुद्दे पर अपने प्रत्याशी उतारे जाने के आसार हैं। हालांकि एमआईएमआईएम की पहली सूची में जिले से किसी को टिकट नही दिया गया है।

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