संपादकीय विशेष

विश्वकर्मा पूजा का महत्व एवं पूजा विधि

(इंजी0 अमरीश वत्स द्वारा) विश्वकर्मा जयंती इस वर्ष 17 सितंबर 2019 को मंगल के दिन मनाई जायेगी |प्रत्येक बर्ष विश्वकर्मा पूजा सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश होने पर या कन्या सक्रांति पर मनाई जाती है| इस दिन श्री विश्वकर्मा जी का जन्म दिवश होता है जिस कारण इसे विश्वकर्मा जयंती भी कहते हैं| श्री विश्वकर्मा जी को पृथ्वी का प्रथम इंजीनियर या वास्तुकार माना जाता है|
इस दिन कारखानों, उद्योगों, फेक्ट्रयों और हर प्रकार की मशीनों और ओजरों की पूजा की जाती है|इनकी पूजा सभी कलाकार, बुनकर, शिल्पकार,औद्योगिक घरानों, और फैक्ट्री के मालिकों द्वारा की जाती है|इस दिन अधिकतर कल-कारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा करते हैं| मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, दिल्ली आदि राज्यों में भगवान विश्वकर्मा की भव्य प्रतिमा स्थापित कर उनकी सेवा आराधना की जाती है|

बताया जाता है कि प्राचीन काल में जितनी भी राजधानियां थी, प्राय: सभी को विश्वकर्मा ने बनाया है |और तो और सतयुग का ‘स्वर्ग लोक’, त्रेता युग की ‘लंका’, द्वापर की ‘द्वारिका’ हस्तिनापुर’ और इन्द्रप्रस्थ आदि सभी विश्वकर्मा द्वारा ही रचित हैं|‘सुदामापुरी’ की रचना के विषय में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता विश्वकर्मा जी ही थे|विश्वकर्मा पूजा को लेकर कारीगरों की मान्यता है कि इनकी पूजा करने से काम में प्रयोग किये जाने वाली मशीनें जल्दी खराब नहीं होती और अच्छे से काम करती हैं। इसलिए इस दिन सभी काम रोककर मशीनों और औजारों की साफ-सफाई की जाती है और भगवान विश्वकर्मा की पूरी श्रद्धा के साथ पूजा की जाती है।

श्री विश्वकर्मा जी की उत्पत्ति की कथा :-

सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम एक बार ‘नारायण’ अर्थात श्री हरी विष्णु क्षीर सागर में शेषशय्या पर विश्राम कर रहे थे और उनकी नाभि पर पुष्प कमल पर चर्तुमुख ब्रह्मा जी बेठे थे | भगवान विश्वकर्मा जी के अनेक रूप दर्शाए गये हैं-
दो भुजाधारी, चार भुजाधारी एवं दस भुजाधारी तथा एक मुखी, चतुर्मुख मुखी एवं पंचमुखी वाले रूप दर्शाये गये हैं| विश्वकर्मा जी के पांच पुत्र हुये 1- मनु, 2- मय,3- त्वष्ठा,4- शिल्पी,5- दैवज्ञ

ऋषि मनु – ये “सानग गोत्र” के कहे जाते है । ये लोहे के कर्म के उध्दगाता है । इनके वशंज लोहकार के रुप मे जानें जाते है ।

ऋषि मय – ये सनातन गोत्र कें कहें जाते है । ये बढई के कर्म के उद्धगाता है। इनके वंशंज काष्टकार के रुप में जाने जाते है।

ऋषि त्वष्ठा – इनका दूसरा नाम त्वष्ठा है जिनका गोत्र अहंभन है । इनके वंशज ताम्रक के रूप में जाने जाते है ।

ऋषि शिल्पी – इनका दूसरा नाम शिल्पी है जिनका गोत्र प्रयत्न है । इनके वशंज शिल्पकला के अधिष्ठाता है और इनके वंशज संगतराश भी कहलाते है इन्हें मुर्तिकार भी कहते हैं ।

ऋषि दैवज्ञ – दैवज्ञ को सोने-चांदी एवं रत्नों के कार्य से जोड़ा जाता इन्हें स्वर्णकार भी कहते है |

भगवान विश्वकर्मा की पूजा निम्नलिखित विधि विधान से करनी चाहिए |विश्वकर्मा जयंती के दिन प्रातः काल स्नान आदि करने के बाद पत्नी सहित पूजा स्थान पर बैठे।
इसके बाद विष्णु भगवान का ध्यान करते हुये हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर-

ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयि नम:, ॐ अनन्तम नम:, ॐ पृथिव्यै नम:

कहते हुये चारों दिशाओं में अक्षत छिड़के और पीली सरसों लेकर चारों दिशाओं को बांधे ।अपने हाथ में रक्षासूत्र बांधे तथा पत्नी को भी रक्षासूत्र बांधे। पुष्प जल पात्र में छोड़े। हृदय में भगवान श्री विश्वकर्मा जी का ध्यान करें। रक्षा दीप जलाये, जल के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करें। शुद्ध भूमि पर अष्टदल (आठ पंखुड़ियों वाला) कमल बनाए। उस स्थान पर सात अनाज रखे। उस पर मिट्टी और तांबे का जल डाले।

 

इसके बाद पंचपल्लव (पाँच वृक्षों के पत्ते), सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश को ढ़क दें। एक अक्षत (चावल) से भरा पात्र समर्पित कर के ऊपर विश्वकर्मा भगवान की प्रतीमा या चित्र स्थापित करें फिर वरुण देव का आह्वान करें। पुष्प चढ़ाकर कहें – हे ब भगवान् विश्वकर्मा जी, इस प्रतिमा में विराज हो कर मेरी पूजा को स्वीकार कीजिए।
इसके बाद कथा पड़े,सुने और सुनायें |

विश्वकर्मा जी की प्रचलित कथा :-

एक बार वाराणसी में धार्मिक व्यवहार से चलने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था| वह अपने कार्य में निपुण था, परंतु अनेक नगरों में भ्रमण करने पर भी भोजन से अधिक धन प्राप्त नहीं कर पाता था|अपने पति की भांति रथकार की पत्नी भी पुत्र न होने के कारण बहुत चिंतित रहा करती थी | पुत्र प्राप्ति के लिए वे दोनों साधु-संतों एवं मंदिरों में जाते थे, किन्तु उनका मनोरथ पूर्ण नही हो रहा था |

तब एक उनके पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार की पत्नी से कहा कि तुम भगवान विश्वकर्मा जी की शरण में जाओ, तुम्हारा मनोरथ अवश्य ही पूरा होगा और अमावस्या तिथि को उनका व्रत कर भगवान विश्वकर्मा जी की कथा श्रवण करो| तब से रथकार ने अपनी पत्नी सहित अमावस्या के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा की, और विश्वकर्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ तब उसे धन-धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे|

भारत के अनेक भागों में इस पूजा का बहुत महत्व माना जाता है|

🏵 श्रीविश्वकर्मा पूजन एवं हवन सामग्री

(१)श्रीविश्वकर्मा जी को बिठाने के लिए चौकी ~१

(२)चौकी पर बिछाने के लिए पीला कपड़ा ~१

(३) कलश ~१

(४) पंचामृत ( दुध दही मधु शक्कर घी )

(५)रोली ,~५० ग्राम

(६)मौली , (नारा) ५० ग्राम

(७)लाल चन्दन ~ ५० ग्राम

(८)जनेऊ ~२

(९)गंगाजल ~

(१०)सिन्दूर ~ ५० ग्राम

(११) पीला फूल ~ ५००ग्राम

(१२)फूल माला ~ २

(१३)ईत्र (सुगंध) ~ १ शीशी

(१४)मोदक या लडडू ~२ किलोग्राम

(१५) केला झाड़ ४

(१६)सुपारी ~ ३१

(१७)लौंग ,~ ५० ग्राम

(१८)इलायची ~ ५० ग्राम

(१९)नारियल ~ २

(२०)पंच फल ~ पाॅच प्रकार के

(२१)दूर्वा – दूब ~

(२२)पंचमेवा 200 ग्राम

(२३)घी का दीपक ~

(२४)धूप , अगरबत्ती ~

(२५)कपूर ~ ५० ग्राम

(२६)अष्ट गन्ध चन्दन ५० ग्राम

(२७)चावल ५०० ग्राम

(२८) पंच रत्न पुड़िया १

(२९)आम के पल्लव १

(३०)पान पत्ते २१

(३१)दोने १ पैकेट

(३२)धोतीसेट १

(३३)पीली सरसों ५० ग्राम

(३४)अबिर गुलाल ५० ग्राम

(३५) बेलपत्र तुलसीपत्र

(३६) माचिस

(३७)रूई (कपास)

(३८)हल्दी पाउडर ५० ग्राम

(३९) गुलाब जल

(४०)गोमूत्र

(४१) पंच मिठाई

।।卐हवन सामग्री卐।।

(१)हवन पुड़ा ५०० ग्राम

(२) घी १ किलोग्राम

(३) जौ (जव) २०० ग्राम

(४) तिल सफेद १०० ग्राम

(५)तिल काला १०० ग्राम

(६) चावल १ किलोग्राम

(७) नारियल गठ १

(८) आम के लकड़ी 2 किलोग्राम

(९) टोपिया १

(१०) मखान २०० ग्राम

(११) चंदन चूड़ा १०० ग्राम

(१२) गुड़ २०० ग्राम

(१३) दालचीनी २०० ग्राम

(१ ४) लौंग इलायची १०० ग्राम

(१५) कर्पूर २०० ग्राम

(१६) धोतीसेट १

(१७) नवग्रह लकड़ी

(१८) धूप (गुगल) २०० ग्राम

(१९) पंच फल

(२०) पंच मिठाई

(२१) कुशा

(२२) पिलि सरसों 50 ग्राम

(23) शहद (मधु) २०० ग्राम

(२४) पंचमेवा २०० ग्राम

(२५) हवन कुंड शुक स्रुब

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